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आज ही के दिन हुआ नेपाल राजपरिवार का नरसंहार, प्रिंस ने राजा-रानी समेत 9 लोगों को गोली मारी

1 जून 2001 यानी आज से ठीक 22 साल पहले। नेपाल के शाही महल में एक पार्टी चल रही थी। राजा बीरेंद्र, रानी ऐश्वर्या समेत राजपरिवार के एक दर्जन से ज्यादा लोग मौजूद थे। रात करीब 8 बजे इस पार्टी के होस्ट राजकुमार दीपेंद्र भी हाल में आ गए। वो पूरी सैनिक वर्दी में थे। उनके एक हाथ में MP5K सबमशीन गन और कोल्ट एम-16 राइफल थी। उनकी वर्दी में एक 9 एमएम पिस्टल लगी थी। दीपेंद्र ने अपने पिता राजा बीरेंद्र की तरफ देखा और दाहिने हाथ में पकड़ी हुई सबमशीन गन का ट्रिगर दबा दिया। इसके बाद अगले कुछ मिनटों में वहां मौजूद राजपरिवार के 9 लोगों की लाशें बिछ चुकी थी। आखिर में राजकुमार दीपेंद्र ने खुद को भी गोली मार ली।

एक लोक कथा और नेपाल की राजशाही पर संन्यासी का श्राप

नेपाल में एक लोक कथा प्रचलित है। कहते हैं 1769 ईस्वी की बात है। जब पृथ्वी नारायण शाह ने नेपाल की तीन रियासतों को जीतकर खुद को राजा घोषित कर दिया। एक बार वो काठमांडू जा रहे थे। रास्ते में उनकी मुलाकात एक सन्यासी से हुई। संन्यासी भूखा है ये सोचकर राजा ने एक कटोरे में उसे दही दिया। संन्यासी ने दही चखा और फिर कटोरा वापस राजा को दे दिया। राजा ने जूठा दही जमीन पर फेंक दिया। उस दही पर राजा के पांव की दसों उंगलियां पड़ गईं।

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ये देखकर सन्यासी क्रोधित हुआ और राजा से पूछा कि दही क्यों फेंका। राजा ने जवाब दिया- जूठा दही खाना राजा को शोभा नहीं देता। तब सन्यासी ने राजा को धिक्कारते हुए कहा- अगर तूने दही खा लिया होता तो तेरी सारी मनोकामनाएं पूरी हो जाती। चूंकि गिरा दही राजा की दसों उंगलियों पर लगा था, इसलिए उसी दिन 10 पुश्तों बाद राजशाही खत्म होने का श्राप मिला था। नेपाल के कुछ लोग मानते हैं कि 1 जून 2001 को हुआ राजपरिवार का नरंसहार उसी श्राप का फल था।

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नेपाली राजपरिवार के नरसंहार की कहानी…

तारीख 1 जून। दिन शुक्रवार। जगह काठमांडू में नारायणहिती पैलेस। पैलेस के गार्डेन में एक पार्टी चल रही थी। नेपाल के राजपरिवार में हर सप्ताह ऐसी पार्टियां होती थीं। पार्टी में राजपरिवार के सभी मेंबर्स थे। छोटे बच्चों से लेकर बड़े बूढे़ सभी। इसमें से एक राजकुमार दीपेंद्र भी थे। वो शाम 6.45 पर पार्टी में पहुंच चुके थे और पास ही एक कमरे में बिलियर्ड्स खेल रहे थे। थोड़ी देर में महारानी एश्वर्या तीन ननदों के साथ पहुंची। महाराजा बीरेंद्र एक पत्रिका को इंटरव्यू देकर थोड़ी देर से पहुंच गए। दीपेंद्र के चचेरे भाई राजकुमार पारस भी मां और पत्नी के साथ पहुंचे हुए थे।

पार्टी में सब हंसी खुशी से मशगूल थे, लेकिन राजकुमार दीपेंद्र के साथ सब सामान्य नहीं था। उन्होंने इतनी ज्यादा शराब पी ली थी ठीक से खड़े भी नहीं हो पा रहे थे। नशे में लड़खड़ा कर गिरे तो उनके छोटे भाई निराजन और चचेरे भाई पारस ने कुछ लोगों की मदद से उन्हें उनके कमरे में पहुंचाया।

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थोड़ी देर बाद दीपेंद्र आर्मी की वर्दी पहने कमरे से बाहर निकले। उनके एक हाथ में जर्मन मशीन गन MP5K थी और दूसरे हाथ में कोल्ट M16 राइफल थी। एक 9MM पिस्टल भी उनकी पैंट में लगी थी। दीपेंद्र को इस हाल में बाहर आते देख पार्टी में मौजूद लोग हैरान रह गए।

दीपेंद्र आगे बढ़े और पिता बीरेंद्र शाह की ओर देखा। कोई कुछ समझ पाता तब तक दीपेंद्र ने मशीन गन पिता की तरफ कर ट्रिगर दबा दिया। कुछ सेकेंड बाद नेपाल के महाराजा जमीन पर पड़े थे। दीपेंद्र के चाचा उन्हें रोकने के लिए बढ़े लेकिन दीपेंद्र ने पॉइंट ब्लैक रेंज से उनके सिर में गोली मार दी। गोली उनके सिर को छेदते हुए पार कर गई।

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दीपेंद्र कमरे से निकलकर गार्डन में गए। अब तक वहां मौजूद लोगों को अनहोनी का अंदाजा लग चुका था। महारानी एश्वर्या उनके पीछे भागी, छोटे भाई प्रिंस निराजन भी मां के साथ दौड़े। पर दीपेंद्र ने पहले अपनी मां और फिर भाई निराजन को भी गोली से छलनी कर दिया। 3 से 4 मिनट में दीपेंद्र 12 लोगों पर गोली चला चुके थें। आखिर में गार्डन से होते हुए बाहर तालाब पर बने ब्रिज पर खड़े हुए और जोर-जोर से चीखने लगे। फिर खुद को भी सिर में गोली मार ली।

कातिल दीपेंद्र और उनके पिता बीरेंद्र को एक ही कार में ले जाया गया

मिनटों के कत्लेआम के बाद भी महाराजा बीरेंद्र की सांसे चल रही थी। दीपेंद्र भी अभी जिंदा थे। कुछ मिनट बाद कार से घायलों को ले जाया जाने लगा। संयोग ऐसा हुआ कि गोली चलाने वाले दीपेंद्र और जख्मी पिता बीरेंद्र को एक ही कार में हॉस्पिटल ले जाया गया।

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9:15 बचे रात में घायलों को लेकर कारें अस्पताल पहुंची। थोड़ी ही देर में नेपाल के सर्वश्रेष्ठ हार्टसर्जन, न्यूरोसर्जन और प्लास्टिक सर्जन पहुंच गए। रानी को कार से उतारते ही डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया। थोड़ी देर बार महाराज बीरेंद्र को भी मृत घोषित कर दिया गया। एक बार में हॉस्पिटल में इतने घायल पहुंचे थे कि ट्रामा में कोई बिस्तर नहीं बचा था।

दीपेंद्र को स्ट्रेचर पर अंदर लाया गया तो उनके लिए कोई बेड नहीं बचा था। उन्हें जमीन पर गद्दा बिछाकर लिटाया गया। फिर थोड़ी देर में दीपेंद्र को ऑपरेशन थियेटर में ले जाया गया। तीन दिन बाद 4 जून को दीपेंद्र की भी मौत हो गई।

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आखिर राजकुमार दीपेंद्र ने अपने ही परिवार को क्यों मारा? इसका जवाब आज तक नहीं मिल पाया। नेपाल की सरकारी रिपोर्ट से लेकर मीडिया और इंडिपेंडेंट इंवेस्टिगेशन करने वाले ने अलग-अलग थ्योरी सामना रखी…

थ्योरी- 1: दीपेंद्र की प्रमिका देवयानी राणा राजपरिवार को स्वीकार नहीं थी

इस हत्याकांड के 19 दिनों बाद नेपाल टाइम्स में एक खबर छपी। इसमें दावा किया गया कि प्रिंस दीपेंद्र ने ऐसा इसलिए किया क्योंकि उन्हें उनकी प्रेमिका देवयानी राणा से शादी नहीं करने दिया जा रहा था। यहां तक कि उनके पिता महाराजा बिरेंद्र ने गद्दी से बेदखल करने की बात कह दी थी।

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दीपेंद्र की मां एश्वर्या को देवयानी से शादी मंजूर नहीं थी। वो अपने ही राज परिवार में दूर की रिश्तेदार से दीपेंद्र की शादी कराना चाह रही थीं। खबर के मुताबिक देवयानी के घरवाले भी इस रिश्ते को लेकर राजी नहीं हो रहे थे। चूंकि नेपाली राजघराने के मुकाबले देवयानी के परिवार का परिवार अधिक संपन्न और धनाढ्य था। ऐसे में, देवयानी की मां को इस बात की चिंता थी कि हमेशा से इतने सुख समृद्धि में रही उनकी बेटी कम संपन्न घर में कैसे रह पाएगी।

इंग्लैंड में 1987 से 1990 के बीच पढ़ाई के दौरान मिले दीपेंद्र और देवयानी घरवालों की बात दरकिनार कर मिलते रहे। राजकुमार अपने परिवार के सामने देवयानी से शादी करने की मिन्नतें करते रहें। उस समय की खबरों की माने तो 2001 वो साल था जब राजकुमार दीपेंद्र का सब्र जवाब दे गया था।

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थ्योरी- 2: नेपाल के राजपरिवार को तबाह करने के पीछे RAW और CIA की साजिश

हत्याकांड के एक साल बाद 6 जून 2001 को नेपाल में अंडरग्राउंड माओवादी नेता बाबूराम भट्टाराई का एक कांतिपुर अखबार में एक लेख छपा। इसमें कहा गया कि ये पूरी घटना एक ‘पॉलिटिकल कॉन्सपिरेसी’ थी।

लेख में कहा गया कि राजपरिवार को तबाह करने के पीछे भारत की इंटेलिजेंस एजेंसी R&AW (रिसर्च एंड एनालिसिस विंग) और अमेरिका की इंटेलिजेंस एजेंसी CIA (सेंट्रल इंटेलिजेंस एजेंसी) का हाथ है। इस कॉलम के छपने के तुरंत बाद अखबार के तीन एडिटर्स को गिरफ्तार कर लिया गया।

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2009 में नेपाल के पूर्व पैलेस मिलिट्री जनरल बिबेक शाह ने एक किताब लिखी ‘माइले देखेको दरबार’ (राजमहल, किसने देखा) और दावा किया कि मुमकिन है इस हत्याकांड के पीछे भारत का हाथ हो। नेपाल के ही एक और नेता पुष्प कमल दहाल (उस समय माओवादी नेता) ने भी दावा किया कि इस हत्याकांड के पीछे RAW की साजिश थी।

थ्योरी-3: सिंहासन पाने के लिए ज्ञानेंद्र और पारस ने इस हत्याकांड को अंजाम दिया

अस्पताल से महाराजा बीरेंद्र के डॉक्टर और उनके छोटे भाई के दामाद राजीव शाह ने एक प्रेस कांफ्रेंस की। उन्होंने बताया कि उस रोज नशे की हालत में दीपेंद्र पार्टी में आए और राजा-रानी समेत 9 लोगों को मार गिराया। डॉ राजीव शाह ने दीपेंद्र के चचेरे भाई पारस की खूब तारीफ की थी।

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बहरहाल, घटना के तीन दिन बाद दीपेंद्र की भी मृत्यु हो गई। तब पारस के पिता और राजा बीरेंद्र के छोटे भाई ज्ञानेंद्र को नेपाल नरेश बनाया गया। ज्ञानेंद्र उस दिन काठमांडू में न होकर कहीं और थे। राजकुमार पारस समेत ज्ञानेंद्र के परिवार के सभी लोगों की जान बच गई थी। इसलिए ये अफवाह भी उड़ी कि गद्दी पाने के लिए ज्ञानेंद्र और पारस ने मिलकर इस हत्याकांड को अंजाम दिया।

इस नरसंहार की जांच के लिए नेपाल के चीफ जस्टिस केशव प्रसाद उपाध्याय और नेपाली संसद के स्पीकर तारानाथ राणाभट की एक कमेटी बनाई। एक हफ्ते की जांच के बाद रिपोर्ट सामने आई। रिपोर्ट में सैकड़ों गवाहों के बयान से बताया गया कि इस हत्याकांड के पीछे राजकुमार दीपेंद्र ही थे।