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बिहार में एवोकैडो के खेती की संभावना तलाशेगा समस्तीपुर का केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय पूसा, होगा अनुसंधान

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बिहार में डॉ. राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय, पूसा, समस्तीपुर में जल्द ही एवोकैडो की खेती और इस पर अनुसंधान का कार्य शुरू होगा। अनुसंधान का यह कार्य जुलाई से अगस्त माह के दौरान शुरू होने की संभावना है। विश्वविद्यालय के सह निदेशक अनुसंधान और प्रधान अन्वेषक, अखिल भारतीय समन्वित अनुसंधान परियोजना (फल) प्रोफेसर एस के सिंह ने बताया कि बिहार की कृषि जलवायु में इस फल की खेती से संबंधित पैकेज एंड प्रैक्टिसेज दे पाना संभव होगा।

उन्होंने बताया कि अनुसंधान का यह कार्य जुलाई से अगस्त माह के दौरान शुरू होगा। एवोकैडो का फल स्वास्थ्य के लिए अत्यंत ही लाभकारी माना जाता है। उन्होंने बताया कि दक्षिण अमेरिका और लैटिन देश से जुड़े बहुत से व्यंजनों जैसे चिपोतले चिलीस, गुयाकमोल, चोरीजो, ब्रेकफास्टस और टोमेटिल्लो सूप आदि में एवोकैडो फल का उपयोग अधिक किया जाता है।

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इसका प्रचलन आजकल भारत में भी अधिक देखने को मिल रहा है। सिंह ने बताया कि एवोकैडो अधिक पौष्टिक फल है जिसमें पोटेशियम केले से भी अधिक पाया जाता है। उन्होंने कहा कि इसके फलों में स्वास्थ संबंधित पोषक तत्व मौजूद होते है जो हमें तनाव से लड़ने में सहायता प्रदान करते हैं। उन्होंने बताया कि दक्षिण मध्य मैक्सिको में इसकी खेती मुख्य रूप से की जाती है, लेकिन अब भारत के महाराष्ट्र, तमिलनाडु, केरल और कर्नाटक के कुछ भागों में भी इसकी खेती काफी जोरशोर से की जाने लगी है।

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उन्होंने बताया कि हिमाचल एवं सिक्किम में तकरीबन 800 से 1600 मीटर की ऊंचाई पर एवोकैडो की खेती सफलतापूर्वक की जा रही है। उन्होंने बताया कि इस वर्ष जुलाई, अगस्त से अखिल भारतीय समन्वित फल परियोजना के अंतर्गत इसके कुछ पेड़ पूसा में लगा कर इसकी खेती की संभावना को परखने का प्रयास किया है। इसमें फल आने में 5 से 6 वर्ष लगते हैं, उसके बाद ही बिहार की कृषि जलवायु में इस फल की खेती से संबंधित पैकेज एंड प्रैक्टिसेज दे पाना संभव होगा।

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एवोकैडो की पैदावार उन्नत किस्म, खेत प्रबंधन और पेड़ की उम्र पर निर्भर करती है। सामान्य तौर पर एक पेड़ से 250 से 500 फल प्राप्त किए जा सकते है जबकि 10 से 12 वर्ष पुराने पेड़ से 350 से 550 फल प्राप्त हो सकते हैं। इस समय महानगरों में एवोकैडो का बाजार मूल्य गुणवत्ता के अनुसार 350 से लेकर 550 रूपए प्रति किलो है।

इधर, विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ पीएस पांडेय ने डॉ एस के सिंह, प्रधान अन्वेषक, अखिल भारतीय समन्वित अनुसंधान परियोजना (फल) एवं इस परियोजना से जुड़े वैज्ञानिक डॉ एके पांडा के प्रयासों की सराहना करते हुए कहा कि विश्वविद्यालय ने सही समय पर सही शुरूआत की है। उन्होंने कहा कि इस फल पर शुरू किया गया अनुसंधान आने वाले समय में मील का पत्थर साबित होगा।

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