विलुप्त होने की कगार पर दूधिया मालदह आम, पानी नहीं दूध से होती थी इसके पेड़ों की सिंचाई
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दीघा के दूधिया मालदह जैसा स्वाद दूसरे में कहां? अफसोस कि अब यह विलुप्त होने लगा है। रामजी राय कहते हैं कि कभी हमलोग दूधिया मालदह के लिए आम के दिनों का इंतजार करते थे। बाग से तोड़कर खाने में भरपूर आनंद मिलता था। पतली गुठली, ज्यादा गुदा और पतला छिलका इसकी पहचान है। दीघा इलाके में इसके अब केवल गिनती के पेड़ ही बचे हैं। जो बचे भी हैं उन पर अब पहले जैसे फल नहीं लगते।
इलाके में प्रचलित कथा के अनुसार लखनऊ के नवाब फिदा हुसैन घूमते हुए दीघा इलाके में पहुंचे। गंगा किनारे की यह जगह उन्हें पसंद आई तो उन्होंने यहां अपना आशियाना बनवाया। क्षेत्र के बुजुर्ग बताते हैं कि नवाब साहब दूध और आम के बहुत शौकीन थे। उन्होंने बहुत सारी गाय पाल रखी थीं। जब खाने से ज्यादा दूध हुआ तो आम के पौधे को दूध से सींचने का आदेश दिया। काफी दिनों बाद आम की नई प्रजाति विकसित हुई। स्वाद भी लाजवाब। दूध जैसा सफेद होने के कारण इसका नाम पड़ा दूधिया मालदह।
पटना के दीघा, कुर्जी, राजीव नगर इलाके में दूधिया मालदह के ज्यादा पेड़ थे। करीब एक हजार एकड़ में फैले दूधिया मालदह के बाग समय के साथ सिकुड़ते चले गए। बाग सिकुड़कर अब कुछ एकड़ तक में रह गया है। वर्तमान में दूधिया मालदह के बाग राजधानी पटना में राजभवन, बिहार विद्यापीठ एवं संत जेवियर कॉलेज में बचे हैं। गंगा किनारे मनेर इलाके में भी इससे मिलते-जुलते रंग रूप के दुधिया मालदह के बाग हैं। इसके अलावा कुछ लोग अपने घरों में एक-दो पेड़ लगाए हुए हैं।
पटना सदर प्रखंड के पूर्व उपप्रमुख नीरज कुमार ने कहा कि दूधिया मालदह विरासत की तरह है। इसके संरक्षण की जरूरत है। सरकार को चाहिए कि ज्यादा से ज्यादा संख्या में पेड़ लगवाकर इसका संरक्षण करे।
राष्ट्रपति भवन जाता था दूधिया मालदह आम
दूधिया मालदह फलों के राजा आम की सभी प्रजातियों में खास है। दीघा के मालदह आम की खुशबू और मिठास के दीवाने देश-विदेश तक फैले हैं। इस आम की खेप विदेशों में भी भेजी जाती है। दीघा का दूधिया मालदह पूर्व के वर्षों में राष्ट्रपति भवन एवं प्रधानमंत्री को भेजा जाता था। इस साल भी विपक्षी दलों की बैठक में आए दूसरे दलों के प्रतिनिधियों को यह आम भेंट किया गया।
निर्माण की भेंट चढ़ गए बाग
जिस इलाके में कभी दूधिया मालदह थे, अब वहां मकान बन गए हैं। दीघा, कुर्जी, राजीवनगर इलाके में ऊंचे-ऊंचे भवन बन गए। इलाके में तेजी से हुए भवन निर्माण के कारण दीघा मालदह के बाग और पेड़ बहुत ही कम हो गए हैं। अब जो पेड़ बचे हैं वे रखरखाव के अभाव में लगातार सूख रहे हैं। दीघा-आशियाना रोड स्थित तरुमित्र आश्रम और सेंट जेवियर कॉलेज के बाग के करीब 400 पुराने पेड़ सूख गए थे। उसके बाद इसके बचाव के उपाय किए गए।