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बिहार में हर कोई अपने पड़ोसी की जाति से परिचित तो जाति गणना निजता का हनन कैसे: सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता से पूछा सवाल

बिहार में जातीय गणना को लेकर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हो रही है। शुक्रवार को मामले में सुनवाई के दौरान शीर्ष अदालत ने सवाल किया कि क्या बिहार में जातीय गणना से संविधान के अनुच्छेद-21 के तहत लोगों के निजता का अधिकार प्रभावित होगा। कोर्ट ने यह भी पूछा, जब बिहार जैसे राज्य में हर कोई अपने पड़ोसियों की जाति जानता है, तो क्या राज्य सरकार द्वारा किए जा रहे जाति सर्वे से लोगों की निजता का उल्लंघन होगा।

न्यायमूर्ति संजीव खन्ना और एसवीएन भट्टी की पीठ ने बिहार में जातीय गणना जारी रखने के पटना हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ दाखिल अपील पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की। इससे पहले, बिहार सरकार की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता श्याम दीवान ने पीठ को बताया कि छह अगस्त को जातीय सर्वेक्षण का काम पूरा हो गया। इसके बाद पीठ ने कहा कि हम इस मामले में किसी तरह का नोटिस जारी नहीं करेंगे बल्कि विस्तार से सुनेंगे।

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न्यायमूर्ति खन्ना ने कहा, हम यदि बिहार सरकार को नोटिस जारी करते हैं तो अंतरिम आदेश पारित करने का सवाल सामने आएगा। जबकि सर्वेक्षण का काम पूरा हो गया है, इसलिए बेहतर होगा कि आप सभी (दोनों पक्षों के वकील) बहस के लिए तैयार रहें। कोर्ट ने कहा कि नोटिस जारी करने पर अक्तूबर, नवंबर में सुनवाई संभव होगा, ऐसे में अंतरिम आदेश पारित करने का दवाब होगा। इसलिए बेहतर होगा कि जल्द सुनवाई पूरी की जाए।

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…तब संक्षिप्त आदेश जारी करेंगे

न्यायमूर्ति खन्ना ने कहा कि यदि हमें लगता है कि अपील में कुछ आधार है, तो समुचित आदेश पारित करेंगे। अगर हमें लगता है कि कोई मामला नहीं बनता है, तो हम स्वीकृति में एक संक्षिप्त आदेश पारित करेंगे। यह टिप्पणी करते हुए पीठ ने मामले की सुनवाई सोमवार तक के लिए स्थगित कर दी। इसके बाद अपीलकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता अपराजिता सिंह ने सरकार को सर्वेक्षण का रिपोर्ट प्रकाशित करने पर रोक लगाने की मांग की। पीठ ने इस बारे में किसी तरह का आदेश पारित करने से इनकार कर दिया।

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याचिकाकर्ता- सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता की ओर से कहा गया कि सर्वेक्षण की रिपोर्ट प्रकाशित करने पर रोक लगाई जाए, क्योंकि इससे लोगों की निजता के अधिकार का हनन हो रहा है।

सुप्रीम कोर्ट- जस्टिस खन्ना ने कहा कि प्रथम दृष्टया मामला बनता है या नहीं, यह तय किए बगैर हम किसी तरह का रोक लगाने का आदेश पारित नहीं करेंगे। सर्वेक्षण का काम पूरा हो गया है, आप इसे पसंद करें या नहीं, डाटा अपलोड कर दिया गया है।

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बिहार सरकार- बिहार सरकार की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता दीवान ने कहा कि सर्वेक्षण से किसी की निजता का हनन नहीं होगा क्योंकि जाति का आंकड़ा प्रकाशित नहीं होगा।

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हाईकोर्ट के फैसले में दखल से सुप्रीम कोर्ट कर चुका है इनकार

सुप्रीम कोर्ट 14 अगस्त को भी बिहार में जातीय गणना को जारी रखने के पटना हाईकोर्ट के फैसले में किसी तरह का दखल देने से इनकार कर दिया था। शीर्ष न्यायालय ने मामले की सुनवाई 18 अगस्त तक के लिए स्थगित करते हुए कहा था कि दूसरे पक्ष को सुने बगैर हम मामले में किसी भी तरह से सर्वेक्षण या इसके रिपोर्ट प्रकाशित करने पर पर रोक लगाने या यथास्थिति बनाए रखने का आदेश पारित नहीं कर सकते। इससे पहले, कोर्ट ने सात अगस्त को यथास्थिति बनाए रखने या बिहार सरकार को नोटिस जारी करने से इनकार कर दिया था। पीठ ने गैर सरकारी संगठन ‘एक सोच एक प्रयास’ की ओर से दाखिल याचिका को पटना हाईकोर्ट के उसी फैसले को चुनौती देने वाली अन्य याचिकाओं के साथ सुनवाई कर रही है।

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पटना हाईकोर्ट खारिज कर चुका है याचिका

पटना हाईकोर्ट ने एक अगस्त को याचिकाकर्ता संगठन ‘एक सोच, एक प्रयास’ एवं अन्य की ओर से दाखिल याचिकाओं को खारिज कर दिया था। बिहार सरकार को जातीय गणना का काम जारी रखने को कहा था। हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि राज्य सरकार योजनाएं तैयार करने के लिए सामाजिक आर्थिक और शैक्षणिक स्थिति को ध्यान में रखकर गणना करा सकती है।

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इस आधार पर फैसले को दी चुनौती

याचिकाकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट में कहा है कि हाईकोर्ट ने उन तथ्यों पर विचार किए बगैर ही उनकी रिट याचिका को खारिज कर दिया कि बिहार सरकार द्वारा छह जून, 2022 को जारी अधिसूचना के माध्यम से जातीय आधारित गणना को अधिसूचित करने की क्षमता नहीं है।