नींबू में लगने वाली बीमारी सिट्रस कैंकर घातक, केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय पूसा के वैज्ञानिकों ने बताया इससे फलों को बचाने का तरीका
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समस्तीपुर :- नींबू में लगने वाली बीमारी सिट्रस कैंकर अत्यंत ही घातक और जीवाणुजनित बीमारी हैं। इस बीमारी का संक्रमण नींबू की पत्तियों, टहनियों, कांटों, पुरानी शाखाओं और फलों आदि को बुरी तरह से प्रभावित करता है। इस बीमारी से संक्रमित पौधें धीरे-धीरे सूख जाते हैं। नींबू उत्पादक किसान वैज्ञानिक सुझावों को अपनाकर इस बीमारी का प्रबंधन करते हुए इससे निजात पा सकते हैं। ये जानकारी डॉ. राजेंद्र प्रसाद केन्द्रीय कृषि विश्वविद्यालय पूसा के पादप रोग विभाग के हेड सह वरीय कृषि वैज्ञानिक डॉ. संजय कुमार सिंह ने दी।
उन्होंने कहा कि नींबू की प्रजाति एसिड लाइम साइट्रस कैंकर बीमारी के लिए अतिसंवेदनशील है। इस बीमारी से रोगग्रस्त पौधों में उपज की हानि लगभग किस्म के आधार पर 5 से 35 प्रतिशत तक होती है। यह बीमारी छोटे पौधों के साथ-साथ बड़े-बड़े पेड़ों में भी आसानी से लग जाती है। नर्सरी में रखे गए युवा पौधें भी इस रोग के लगने से क्षतिग्रस्त हो जाते हैं। इस बीमारी से आक्रांत नींबू के पेड़ की पत्तियां नीचे गिर जाती हैं। साथ-साथ पूरा पौधा मर जाता है। कृषि वैज्ञानिक ने बताया कि इस रोग के लक्षणों में नींबू की पत्तियों पर सबसे पहले एक छोटे पानीदार पारभासी पीले रंग के धब्बे प्रकट हो जाते हैं।
जैसे-जैसे धब्बे परिपक्व होते हैं वह सतह सफेद या भूरे रंग का होते हुए अंत में केंद्र में टूटकर खुरदुरी, सख्त, कॉर्क जैसा और गड्ढा जैसा बन जाता है। उन्होंने बताया कि साइट्रस कैंकर नींबू के सबसे महत्वपूर्ण रोगों में से एक रोग है जो जीवाणु जैंथोमोनस एक्सोनोपोडिस के कारण होता है। हालांकि यह जीवाणु मनुष्यों के लिए हानिकारक नहीं है लेकिन नींबू के पेड़ों की जीवन शक्ति को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित करता है। कैंकर से संक्रमित फल दागदार भले दिखता है लेकिन खाने के लिहाज से यह सुरक्षित है। उन्होंने बताया कि दागदार नींबू फल दिखने के कारण ताजे फल के रूप में इसकी बिक्री न के बराबर हो पाती है।
बैक्टीरिया के संपर्क में आने के 14 दिनों में दिखने लगता है लक्षण :
कृषि वैज्ञानिक ने बताया की आमतौर पर इस बीमारी के लक्षण बैक्टीरिया के संपर्क में आने के 14 दिनों के भीतर दिखाई देने लगते हैं। इसके जीवाणु पुराने घावों और पौधों की सतहों पर कई महीनों तक रह सकते हैं। बीमारी से संक्रमित जगह व घावों से जीवाणु कोशिकाएं निकलती हैं। जो हवा और बारिश के माध्यम से फैलकर दूसरे पौधों को भी संक्रमित कर देती हैं। यह रोग उच्च वर्षा और उच्च तापमान वाले क्षेत्रों में ज्यादा पनपता है। वैसे तो नींबू की सभी प्रजातियां साइट्रस कैंकर बीमारी के लिए अतिसंवेदनशील होती हैं लेकिन यह रोग सर्वाधिक कागजी नींबू में ही पाया जाता है।
कृषि वैज्ञानिकों ने क्या कुछ कहा :
कृषि वैज्ञानिक ने बताया कि नींबू उत्पादक किसान इस रोग से ग्रसित व गिरे हुए पत्तों और टहनियों को इकट्ठा करके जला दें। नए बागों के रोपण में रोग मुक्त नर्सरी से पौधें खरीदें। नए बागों के रोपण से पहले पौधों को ब्लाइटॉक्स 50 की 2 ग्राम मात्रा प्रति लीटर पानी के साथ तथा स्ट्रेप्टोसाइकिलिन की 1 ग्राम मात्रा प्रति 3 लीटर पानी के साथ घोलकर पौधों पर छिड़काव कर दें। इसके बाद ही पौधों को खेतों में लगाएं।
किसान पुराने बागों में मानसून की शुरुआत से पहले प्रभावित पौधों के हिस्सों की छंटाई करें तथा मौसम की स्थिति के आधार पर समय-समय पर ब्लाइटॉक्स 50 एवं स्ट्रेप्टोसाइकिलिन का छिड़काव पौधों पर करते रहें। नींबू में फूल आने के तुरंत बाद ब्लाइटॉक्स 50 एवं स्ट्रेप्टोसाइकिलिन का छिड़काव जरूर करें।