फूल-मालाओं से लाद निवर्तमान SP को समस्तीपुर शहरवासियों ने दी विदाई, सोशल मीडिया पर IPS ने लिखा भावुक कविता
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समस्तीपुर : निवर्तमान पुलिस अधीक्षक विनय तिवारी के सम्मान में शनिवार की देर शाम एक भव्य विदाई समारोह का आयोजन शहर के एक निजी उत्सव भवन में किया गया। समारोह में समस्तीपुर के विभिन्न प्रशासनिक और पुलिस अधिकारियों के साथ-साथ समाज के विभिन्न क्षेत्रों से जुड़े लोग भी मौजूद थे। समारोह में विनय तिवारी के कार्यकाल की प्रशंसा और उनके उज्जवल भविष्य की शुभकामनाएं देते हुए उन्हें विदाई दी गई। इसके बाद वे रविवार को रेल एसपी का कार्यभार संभालने के लिये समस्तीपुर से मुजफ्फरपुर के लिये रवाना हो गये। रविवार की दोपहर भी समस्तीपुर शहर के कई जगहों पर लोगों द्वारा रोक-रोककर फूल-माला-पाग पहनाकर उन्हें विदाई दी गई। इस दौरान विनय तिवारी भी भावुक दिखे। उन्होंने अपने फेसबुक पर समस्तीपुर में बिताए पलों को याद करते हुए कविता भी लिखी है।
विदाई समारोह में SP विनय तिवारी ने दलसिंहसराय के लोगों के प्रति व्यक्त की कृतज्ञता; कहा- पिछले वर्ष लगातार हो रही चोरी की घटना के दौरान ग्रामीणों का काफी सहयोग मिला…@vinayomtiwari#dalsinghsarai#samastipur#samastipur_town pic.twitter.com/yvOXG15MG2
— Samastipur Town (@samastipurtown) September 15, 2024
यहां पढ़े कविता :
प्रिय समस्तीपुर
जुड़ना प्रवृत्ति है। हम सब जन जब एक जैसे हों तो सबसे पहले जुड़ाव होता है। और हम सब तो एक ही हैं। सर्वस्व अस्तित्व के अंग। हम सब में वही एक परम तत्व है। जो सबको एक दूसरे से जोड़ देता है। इसलिए जुड़ जाता हूं। लोगों से। नदियों से। शहरों से। कस्बों से। नगरों से। पानी से। पहाड़ से। पत्थर से। पदार्थ से। वनस्पतियों से। जड़ चेतन सब से जुड़ जाता हूं। जिससे जुड़ जाओ उससे दूर जाने पर कष्ट तो होता ही है। वैसे जुड़ना नहीं चाहिए। विरक्त होना चाहिए । यह जानते हुए भी जुड़ जाता हूं। कुछ कुछ आसक्तियां अभी शेष हैं। शहरों नगरों से बहुत आसक्ति है। जन्मस्थान ललितपुर से शुरू होकर काशी जैसे शहरों में रहकर पूरी तरह आसक्त शहरों से हो गई थी। वैसे काशी की तो आसक्ति भी अनासक्ति जैसी ही है। बिहार में जिन जिन नगरों में अब तक रहने का अवसर मिला वो सारे नगर कुछ कुछ अंदर तक रमे हुए हैं। गंगा किनारे बसे सिमरिया घाट पर स्थित मेरे लेखन के प्रेरक रश्मिरथी के रचियता राष्ट्रकवि के बेगूसराय से शुरू हुई यात्रा, नारायणी के बाल गोपाल प्रिय गोपालगंज, भारत की चेतना की राजधानी पटना, सोन और गंगा के अदभुत ऊर्जित संगम भोजपुर, फिर पटना के रास्ते बूढ़ी गंडक, बागमती, बाया, बलान की अद्भुत धरती समस्तीपुर तक आई थी।
समस्तीपुर आपसे जुड़ चुका हूं। अब जुड़ा ही रहूंगा। पर अब जाने का समय आ गया है। नई चुनौतियों का समय आ गया है। समस्तीपुर सदैव अटल स्मृतियों में रहेगा। यहां व्यतीत कालखंड जीवन के श्रेष्ठ काल खंडों के रूप में अमिट हो चुका है। जीवन के ये ऊर्जावान दिन और ये महान नगर और यहां के महान नागरिक हमेशा स्मृतियों में रहेंगे।
समस्तीपुर के लगभग दो वर्ष के कार्यकाल में युवाओं की अनंत ऊर्जा, बुजुर्गों का आशीर्वाद, व्यवसायियों का विश्वास, मां बहनों का अनंत स्नेह, सहकर्मियों और साथ कार्य करने वाले अधिकारियों/साथियों का अभूतपूर्व सहयोग, ग्रामीण क्षेत्र के लोगों की अटूट आस्था , वरिष्ठों का मार्गदर्शन सतत बना रहा।
समस्तीपुर जिले के सभी लोगों और सभी समूहों का भरपूर सहयोग मिला।
यहां के सभी जन निज जन जैसे लगे।।
जैसे सभी मेरे जैसे ही हैं
और मैं सबके जैसा हूं।
यहां समानताएं दिखी। ललितपुर से आया था और समस्तीपुर में काम किया। छोटे नगर में पैदा हुआ वहीं पढ़ा लिखा इसलिए अब तक नगरों में ही काम करने में आनंद आया। छोटे छोटे नगरों में, टोलों में, गलियों में रहने वाले को वहीं काम करना ही पसंद आया।
वास्तव में हम सभी का सम्पूर्ण जीवन अस्तित्व के प्रति पूर्ण समर्पण करने का ही है। अनवरत संघर्ष करते हुए व्यक्तित्व का निर्माण करना और फिर उसे अस्तित्व के सामने समर्पित कर देना। पिछले 2 वर्षों से समस्तीपुर ही मेरा अस्तित्व रहा है। यहां आने के पूर्व जो व्यक्तित्व बना था उसे सम्पूर्ण साधना के साथ समस्तीपुर को समर्पित करना था और यहां कार्य करते हुए नित नया सीखना था। समस्तीपुर के साथ व्यतीत यह काल खंड अब पूर्ण हो गया है और आप सभी के साथ कार्य करके बहुत कुछ नया सीख कर व्यक्तित्व में कुछ नया समावेश भी हुआ है। जिससे जीवन के पथ पर आगे आने वाले दायित्वों का निर्वाह करने में अत्यधिक सहायता मिलेगी। सेवा के दौरान त्रुटियां भी होती हीं हैं। सहकर्मी से और स्वयं से भी। त्रुटि ही अवसर होता है कुछ सुधार करने का। जो त्रुटियां ज्ञात हो पाईं उनको सुधारने का प्रयास किया गया था। अन्य सभी प्रकार की ज्ञात अज्ञात सभी त्रुटियों पर भी समस्तीपुर का विशाल हृदय अपना प्रेम ही देगा।
वैसे जीवन तो बहाव है। बहता रहता है। बहने की बात हो तो सबसे पहले बेतवा। बचपन उसी में बहते हुए निर्वाह किया है। बेतवा ने बहाया और गंगा में लाके छोड़ दिया , काशी ने गंगा से उठा कर गंडक में डुबकी लगवाई, गंडक ने गंगा सोन के संगम की उथल पुथल में तैरना सिखाया, सोन – गंगा के संगम से बूढ़ी गंडक, बागमती , बाया ,बलान की धरती समस्तीपुर तक का रास्ता अब पूरा हो गया है।
अब तक में जीवन में कुछ कुछ ही सीख पाया है। बहुत कुछ अभी भी सीखना बाकी है। जीवन है ही सीखने का दूसरा नाम। आने वाले रास्ते में जो भी चुनौतियां /दायित्व सामने आयेंगे वो और कुछ अलग और कुछ नया सिखाएंगे।
प्रिय समस्तीपुरवासियों आप सभी के अभूतपूर्व सहयोग और अनंत प्रेम हेतु कोटि कोटि धन्यवाद।
आप से जो सीखने को मिला, आप के जिस महान सदाचार से प्रेरणा मिली, आप के जिस अटल विश्वास से कठोर संकल्प बन पाए , आप ने जितना अधिक सहयोग किया वो अकल्पनीय और अनिर्वाचनीय है।
समस्तीपुर में मिला अनुभव और यहां प्रकट हुईं अनुभूतियां जीवन को नई दिशा अवश्य प्रदान करेंगी।
इस महान अनुभव हेतु अनंत धन्यवाद।
नगरों की श्रृंखला नदियों के रास्ते होते हुए अब अगले पड़ाव की ओर।
जय हिंद
विनय तिवारी
यहां देखें Shorts Video :
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