समस्तीपुर/पूसा :- आलू की फसल में पिछेता झुलसा रोग का होना आम है, और इससे होने वाले नुकसान को कम करने के लिए आलू के किसानों को उपायों की तलाश में रहना चाहिए। इस रोग के कारण होने वाले नुकसान को कम करने के लिए सही तकनीक और उपायों का प्रयोग करना आवश्यक है। आलू की फसल में पिछेता झुलसा के प्रकोप की संभावना को देखते हुए समस्तीपुर के पूसा स्थित डॉ. राजेन्द्र प्रसाद केन्द्रीय कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक ने बचाव के लिए सुझाव जारी किया है। विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक डॉ. अमन तिग्गा ने बताया कि वर्तमान समय में वर्षा के कारण आर्द्रता बनी हुई है।
बादल के साथ तापमान 09-24 डिग्री सेल्सियस के बीच रह रहा है। मौसम पूर्वानुमान के अनुसार ऐसी स्थिति बने रहने की संभावना है। ऐसे में आलू के फसल की पिछेता झुलसा बीमारी लग सकती हैै। इसके लिए किसानों को जागरूक होकर बचाव की दिशा में पहल करनी चाहिए।
वैज्ञानिक के अनुसार पिछेता झुलसा बिमारी नहीं दिखने वाले आलू की फसल में मेंकोजेब या प्रोपीनेब या क्लोरोथेलीनील युक्त फफूंदनाशक दवा का 0.2-0.25 प्रतिशत की दर से अर्थात 2.0-2.5 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोलकर छिडकाव करना चाहिए। वहीं जिन खेतों में बीमारी आ चुकी उनमें किसी भी सिस्टमिक फफूंदनाशक साईमोक्सानिल मेल्कोजेब या फेनोमिडोन मेंकोजेब या डाईमेथोमार्फ मेंकोजेब का 3.0 ग्राम प्रति लीटर पानी की दर से छिड़काव करना लाभकारी होगा।
उन्होंने बताया कि फफूंदनाशक को दस दिन के अंतराल पर दोहराया जा सकता है। लेकिन बीमारी की तीव्रता के आधार पर इस अंतराल को घटाया या बढ़ाया भी जा सकता है। उन्होंने बताया कि एक ही फफूंदनाशक का बार-बार छिड़काव नहीं करना चाहिए। इसके अलावा किसी भी परिस्थिति में खेत में पानी का जमाव नहीं लगने देना चाहिए। आलू की खेती में पिछेता झुलसा रोग से बचाव के लिए उपरोक्त उपायों का पालन करना आवश्यक है। सही समय पर उपचार करने से किसान अपनी फसल को सुरक्षित रख सकता है और बेहतर उत्पादन प्राप्त कर सकता है।
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