मिसाल: बिहार विधान परिषद के भावी सभापति ने 20 वर्षों में कभी नहीं लिया वेतन.., पैतृक भवन व भूमि भी स्कूल के नाम किया दान
यूं तो राजनेताओं की संपत्ति 5 साल में दो सौ गुना से ज्यादा बढ़ जाती है। भ्रष्टाचार के आरोप भी राजनेताओं पर लगते रहे हैं लेकिन भीड़ में कुछ ऐसे नेता भी हैं, जो लोकतंत्र के लिए मिसाल हैं। राजनीति की दुनिया को आईना दिखा रहे हैं। बिहार विधान परिषद में सभापति पद के लिए नामांकन के बाद विधान पार्षद देवेश चंद्र ठाकुर की जीत लगभग तय है। नेता व कार्यकर्ता गुरुवार को उनके शपथ ग्रहण को लेकर आशान्वित हैं और इसके लिए उनके स्वागत की तैयारी के लिए पटना पहुंच चुके हैं। जदयू के वरिष्ठ नेता व अधिवक्ता विमल शुक्ला का कहना है कि राजनीति में एमएलसी देवेश चंद्र ठाकुर लोकतंत्र के लिए एक मिसाल हैं। उन्होंने अपने 20 वर्ष के राजनीति करियर में अपना वेतन नहीं लिया। पद को लेकर कभी उनके मन में कोई लोभ-लालच नहीं रहा।
देवेश चंद्र ठाकुर चौथी बार तिरहुत स्नातक निर्वाचन क्षेत्र से विधान पार्षद निर्वाचित हुए हैं। पहली बार साल 2002 में निर्वाचित हुए। इतना ही नहीं विधान पार्षद रुन्नीसैदपुर के अथरी गांव में अपना पैतृक भवन व भूमि एक स्कूल के नाम दान कर दिया है। अब उनके मकान में सरस्वती शिशु मंदिर स्कूल संचालित हो रहा है। पिछले साल नवंबर महीने में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के 15 साल बेमिसाल कार्यकाल के अवसर पर उन्होंने अपने पैतृक भवन व भूमि को दान किया। जदयू की ओर से विधान मंडल में सदन के उपनेता भी रह चुके हैं।
आदर्श स्थापित करने के लिए नहीं लेते वेतन
देवेश चंद्र ठाकुर के द्वारा वेतन नहीं लेने के सवाल पर उनका कहना है कि अक्सर मैंने लोगों के मुंह से सुना था कि वो नेताओं के बारे में क्या बोलते हैं। लोग कहते हैं कि कल तक साइकिल से चलने वाला आज सूमो-स्कार्पियो से चल रहा है। लोग जन प्रतिनिधियों से नाराज रहते हैं। मैं कोई व्यवसायी नहीं हूं। उन्होंने कहना है कि कि जनता उनके ऊपर दोषारोपण न करे कि कल उनकी हैसियत क्या थी और क्या हो गई है इसलिए जनता से किया वादा कि जब तक विधान पार्षद रहूंगा, अपना वेतन नहीं लूंगा उसको निभाने का प्रयास कर रहा हूं।
उन्होंने बताया कि पहले कार्यकाल का पैसा मुख्यमंत्री राहत कोष में दे दिया था। उसके बाद वेतन मद में जो रकम आई, उसका उपयोग स्कूल और कालेज के विकास में किया। विधान परिषद के तत्काल सभापति जाबिर हुसैन से उन्होंने यह इच्छा जाहिर करते हुए जब अनुरोध किया कि वेतन का पैसा नहीं लेना चाहते तो सभापति ने उनसे बताया कि यह प्रावधान ही नहीं है। हां, इसे आप किसी दूसरे मद में दे सकते हैं। इसके बाद उन्होंने खुद वेतन न उठाते हुए इसे अन्य मदों में देने का काम किया।
इनपुट: दैनिक जागरण