राजीवनगर मामला: हाईकोर्ट ने कहा-जमीन खरीदने वाले मूर्ख, पर पुलिस के वेश में जो डाकू हैं उन पर कौन कार्यवाई करेगा
राजधानी पटना में राजीवनगर स्थित नेपालीनगर की 400 एकड़ जमीन पर मालिकाना हक केवल हाउसिंग बोर्ड का है। महाधिवक्ता ललित किशोर ने मंगलवार को जस्टिस संदीप कुमार की एकल पीठ के सामने अपनी दलील पेश की। उन्होंने 2010 के एक्ट का हवाला देते हुए कहा कि याचिकाकर्ता की ओर से इसी के इर्दगिर्द दलीलें पेश की गई है लेकिन किसी ने यह नहीं बताया कि जमीन कब खरीदी, कब निर्माण किया, क्या प्लॉट नम्बर था?
सरकारी वकील ने पूरक हलफनामा दायर कर कहा इसमें 400 एकड़ जमीन के बारे में पूरा विवरण दिया गया है। इसपर कोर्ट ने टिप्पणी की-जमीन खरीदने वाले तो मूर्ख हैं ही लेकिन पुलिस के वेश में जो डाकू हैं उनके खिलाफ कार्रवाई कौन करेगा? ऐसे सब डाकुओं को हटाइए। इन सबने पैसा लेकर अवैध खरीद बिक्री करने वालों का साथ दिया। आपलोगों ने सबकुछ छोड़ दिया अपने ईमानदार पुलिस और बोर्ड कर्मचारियों पर। ऐसे लोगों पर एफआईआर होना चाहिए।
हाईकोर्ट ने पूछा-जमीन जब आवास बोर्ड की तो उसने अतिक्रमण खुद क्यों नहीं हटाया
कोर्ट ने पूछा कि जब बोर्ड खुद अतिक्रमण हटाने के लिए सक्षम है तो उसने जिला प्रशासन का सहारा क्यों लिया? शाही ने जवाब दिया कि बोर्ड फेल हो गया तो भी कलक्टर को अधिकार है कि वह पब्लिक लैंड को अतिक्रमण मुक्त करा सकते हैं। कलक्टर का यह कर्तव्य है कि अगर उसे कहीं से भी जानकारी प्राप्त होती है कि किसी ने पब्लिक लैंड पर अवैध रूप से कब्जा जमा लिया है तो कलक्टर कार्रवाई कर सकता है। कोर्ट ने पूछा जमीन किसकी है? शाही ने कहा राज्य सरकार ने जमीन का अधिग्रहण किया और बोर्ड को स्थानांतरित कर दिया। अब जमीन बोर्ड की है। बहस के समय याचिकाकर्ता के अधिवक्ता उपस्थित थे। अब 4 अगस्त को ये लोग इस दलील का उत्तर देंगे।
2010 के एक्ट में सबकुछ स्पष्ट
महाधिवक्ता ने कोर्ट को बताया कि 2010 में एक्ट लाकर 1034 एकड़ जमीन को दो भागों में बांटा गया। राजीवनगर के 600 एकड़ जमीन में जितने लोगों ने घर बना लिया था केवल उन्हीं का सेटलमेंट करने का प्रावधान किया गया। 400 एकड़ के बारे में साफ तौर पर कहा गया कि इस पर कोई घर नहीं होगा। अगर किसी ने बना भी लिया है तो जांच के बाद उसे एक्स ग्रेशिया के भुगतान का प्रावधान है।
कोर्ट को हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए
2010 में विधायिका ने अपनी मंशा साफ कर दी है। इसलिए इस मामले में कोर्ट को हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए। वरीय अधिवक्ता पी के शाही ने कहा कि हुजूर अगर कोई जहर पी ले और कोर्ट से कहे कि ऑक्सीजन दिला दीजिए तो ऐसे लोगों को तो भगवान भी नहीं बचा सकते। उन्होंने कहा कि याचिकाकर्ता प्रथमदृष्टया कोर्ट को यह नहीं बता सके कि उनका कानूनी अधिकार जमीन पर कैसे है?