अखिरकार मिथिला के मखाने को मिला जीआई टैग, जानिए कैसे और किसे मिलता है यह सम्मान
बिहार के मिथिला में एक कहावत मशहूर है- पग-पग पोखरि माछ मखान। केंद्र सरकार ने मिथिला के मखाना को जियोग्राफिकल इंडिकेशन टैग (Geographical Indication Tag) दे दिया है। इससे मखाना उत्पादकों को अब उनके उत्पाद का और भी बेहतर दाम मिल पाएगा। मिथिला के मखाने अपने स्वाद, पोषक तत्व और प्राकृतिक रूप से उगाए जाने के लिए प्रख्यात है। भारत के 90% मखानों का उत्पादन यहीं से होता है। इससे पहले बिहार की मधुबनी पेंटिंग, कतरनी चावल, मगही पान, सिलाव खाजा, मुजफ्फरपुर की शाही लीची और भागलपुर के जरदालू आम को जीआई टैग दिया जा चुका है।
इसकी जानकारी देते हुए केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल (Union Minister Piyush Goyal) ने कहा, ‘जीआई टैग से पंजीकृत हुआ मिथिला मखाना, किसानों को मिलेगा लाभ और आसान होगा कमाना। त्योहारी सीजन में मिथिला मखाना को जीआई टैग मिलने से बिहार के बाहर भी लोग श्रद्धा भाव से इस शुभ सामग्री का उपयोग कर पाएंगे।’ आमतौर पर उपवास में इस्तेमाल होने वाले मखाने हेल्दी स्नैकिंग का हिस्सा रहे हैं। यह ऐसी फसल है, जिसे पानी में उगाया जाता है। मखाने में करीब 9.7 ग्राम प्रोटीन और 14.5 ग्राम फाइबर होता है। यह कैल्शियम का बहुत अच्छा स्रोत है।
GI Tag से पंजीकृत हुआ मिथिला मखाना,
किसानों को मिलेगा लाभ और आसान होगा कमाना।त्योहारी सीजन में मिथिला मखाना को Geographical Indication Tag मिलने से बिहार के बाहर भी लोग श्रद्धा भाव से इस शुभ सामग्री का प्रयोग कर पाएंगे। pic.twitter.com/SzSOlsugRB
— Piyush Goyal (@PiyushGoyal) August 20, 2022
क्या है जीआई टैग
वर्ल्ड इंटलैक्चुअल प्रॉपर्टी ऑर्गेनाइजेशन (WIPO) के मुताबिक जियोग्राफिकल इंडिकेशंस टैग एक प्रकार का लेबल होता है जिसमें किसी प्रॉडक्ट को विशेष भौगोलिक पहचान दी जाती है। ऐसा प्रॉडक्ट जिसकी विशेषता या फिर प्रतिष्ठा मुख्य रूप से प्राकृति और मानवीय कारकों पर निर्भर करती है। भारत में संसद की तरफ से सन् 1999 में रजिस्ट्रेशन एंड प्रोटेक्शन एक्ट के तहत ‘जियोग्राफिकल इंडिकेशंस ऑफ गुड्स’ लागू किया था। इस आधार पर भारत के किसी भी क्षेत्र में पाए जाने वाली विशिष्ट वस्तु का कानूनी अधिकार उस राज्य को दे दिया जाता है। ये टैग किसी खास भौगोलिक परिस्थिति में पाई जाने वाली या फिर तैयार की जाने वाली वस्तुओं के दूसरे स्थानों पर गैर-कानूनी प्रयोग को रोकना है।
किसे मिलता है GI टैग
जीआई टैग से पहले किसी भी सामान की गुणवत्ता, उसकी क्वालिटी और पैदावार की अच्छे से जांच की जाती है। यह तय किया जाता है कि उस खास वस्तु की सबसे अधिक और ओरिजिनल पैदावार निर्धारित राज्य की ही है। इसके साथ ही यह भी तय किए जाना जरूरी होता है कि भौगोलिक स्थिति का उसके उत्पादन में कितना योगदान है। कई बार किसी खास वस्तु का उत्पादन एक विशेष स्थान पर ही संभव हो पाता है। इसके लिए वहां की जलवायु से लेकर उसे आखिरी स्वरूप देने वाले कारीगरों तक का बहुत योगदान होता है।
कौन देता है GI टैग
भारत में वाणिज्य मंत्रालय के तहत आने वाले डिपार्टमेंट ऑफ इंडस्ट्री प्रमोशन एंड इंटरनल ट्रेड की तरफ से जीआई टैग दिया जाता है। भारत में ये टैग किसी खास फसल, प्राकृतिक और मैन्युफैक्चर्ड प्रॉडक्ट्स को दिया जाता है। कई बार ऐसा भी होता है कि एक से अधिक राज्यों में बराबर रूप से पाई जाने वाली फसल या किसी प्राकृतिक वस्तु को उन सभी राज्यों का मिला-जुला GI टैग दिया जाता है। उदाहरण के लिए बासमती चावल जिस पर पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, पश्चिमी उत्तर प्रदेश और जम्मू-कश्मीर के कुछ हिस्सों का अधिकार है।
कितनी वस्तुओं को मिला टैग
जीआई टैग को हासिल करने के लिए सबसे पहले चेन्नई स्थित जीआई डेटाबेस में अप्लाई करना पड़ता है। इसके अधिकार व्यक्तियों, उत्पादकों और संस्थाओं को दिए जा सकते हैं। एक बार रजिस्ट्री हो जाने के बाद 10 सालों तक यह ये टैग मान्य होते हैं, जिसके बाद इन्हें फिर रिन्यू करवाना पड़ता है। देश में पहला जीआई टैग साल 2004 में दार्जिलिंग चाय को मिला था। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर WIPO की तरफ से जीआई टैग जारी किया जाता है। इस टैग वाली वस्तुओं पर कोई और देश अपना दावा नहीं ठोक सकता है।