Bihar

बिहार: 9 साल से छठ करने वाली नजमा खातून की कहानी:बोलीं- छठी मैया ने पूरी की मेरी मुराद; आज मेरे 5 बच्चे हैं

बिहार-यूपी में हिंदू समाज द्वारा बड़े उत्साह से छठ महापर्व मनाया जाता है। लेकिन कुछ मुस्लिम परिवार भी हैं जो पूरी श्रद्धा और उत्साह से छठ पूजा करते हैं। पटना के बैंक रोड में पीर बाबा की मजार है। मुरादें पूरी होने के बाद यहां लोग चादरपोशी कर रहे हैं। सजदे में सिर झुका रहे हैं। मजार के ठीक बगल से एक संकरी गली नजमा खातून के घर जा रही है। मजार की दीवार से सटा है नजमा का घर, जहां वो छठ प्रसाद के लिए गेहूं सुखा रही है। कुछ वक्त पहले वो मजार वाली इसी गली से गंगा स्नान कर घर आईं और नहाय-खाय पूरे विधान के साथ संपन्न की।

अगले तीन दिनों तक नजमा अपने इसी घर में लोक आस्था के महापर्व की हर विधान को पूरी पवित्रता से करेंगी। एक संतान की चाह लिए नजमा दरगाह से लेकर कई पीर के स्थानों पर भटकीं, हर जगह से हारने के बाद नजमा ने छठ मैया के सामने अपना आंचल फैलाया। तब मां ने उनकी मुराद पूरी की। आज वह 5 बच्चों की मां हैं। पिछले 9 वर्षों से वो दरगाह के पीछे अपने घर में छठ व्रत कर रहीं हैं। आस्था ऐसी है कि अब वह कहती हैं कि अंतिम सांस तक छठ करती रहेंगी।

नजमा का कहना है कि छठ मइया की कृपा से आज उनके 5 बच्चे हैं। अब वो आखिरी सांस तक इस व्रत को नहीं छोड़ेंगी। उन्होंने ये भी कहा कि लोग धर्म के नाम पर सिर्फ खून बहा रहे हैं। किस धर्म में लिखा है कि हिंदू के भगवान मुस्लिमों की पुकार नहीं सुनते हैं। या मुस्लिम के पीर फकीर हिंदू की आवाज नहीं सुनते हैं।

एक तरफ मजार की दीवार दूसरी तरफ प्रसाद

नजमा के घर से सटे ही मजार की दीवार है। मजार से सटे रास्ते के पास ही नजमा अपने घर के बाद प्रसाद के लिए गेंहू सुखाती हैं। खरना से शुरु होने वाले छठ महापर्व के पहले ही नजमा पूरी सफाई का ध्यान रखती हैं। नजमा का कहना है कि छोटा सा घर है, लेकिन किचन से लेकर पूरा घर साफ रखती हैं। खरना से पहले ही घर को पूरी तरह से साफ करती हैं। परिवार को कोई भी सदस्य प्रसाद के सामान को बिना नहाए नहीं छूता है। किचन में जहां प्रसाद बनता है, वहां भी बिना नहाए कोई नहीं जाता है।

मुस्लिम होने के बाद भी नहीं खाते प्याज नजमा छठ करती हैं। इस दौरान हिंदू परिवारों की तरह उनके घर में कोई लहसन प्याज नहीं खाता है। घर में कोई ऐसा भोजन नहीं बनता है जिसमें लहसन प्याज डाला जाए। इतना ही नहीं जिन बर्तनों में उनके घर हर दिन खाना पकाया जाता है, उसमें प्रसाद बनाने से परहेज किया जाता है।

नजमा बताती हैं कि छठ में पूरी व्यवस्था बदल जाती है। सब कुछ छठ के हिसाब से चलता है, छठ महापर्व के लिए खाना पीना सब हिंदू रीति रिवाज से ही होता है। जिस तरह से हिंदू परिवार की महिलाएं प्रसाद बनाती हैं, खानों को लेकर परहेज करती हैं, इसका पूरा काम किया जाता है।

नजमा को नहीं थी एक भी संतान

हिंदू आस्था के महापर्व छठ व्रत को लेकर नजमा बताती हैं कि उनके पास कोई संतान नहीं थी। संतान की चाह में वह जहां भी जाती थी, मन्नत मांगती थीं। लेकिन कहीं से भी मुराद पूरी नहीं हुई। संतान की आस में निराश हुई नजमा को किसी ने छठ व्रत रहने की सलाह दी। नजमा को शुरु में तो छठ करना थोड़ा अटपटा लग रहा था, डर था समाज और परिवार के विरोध का। इसके बाद भी संतान की चाह में छठ व्रत किया और लाख लोगों ने समझाया लेकिन नहीं मानी, क्योंकि संतान के लिए कुछ भी करने को तैयार थी।

नजमा का कहना है कि घर वालों का सहयोग रहा, किसी ने विरोध नहीं किया। छठ व्रत के लिए हिंदू समाज के लोगों ने भी खूब सहयोग किया। आस्था और विश्वास के साथ पूरे विधि विधान से पहली छठ किया। छठी मैया ने मुराद सुन ली और संतान दे दीं। इसके बाद से ऐसी आस्था जगी कि फिर लगातार छठ कर रही हैं। नजमा का कहना है कि वह एक संतान के लिए दर दर भटकी लेकिन अब छठी मैया ने उसे 5 संतान दे दी है।

विधि विधान से करती हैं पूजा

नजमा हिंदू महिलाओं की तरह ही छठ व्रत करती हैं। जिस तरह से व्रती महिलाएं भगवान सूर्य को अर्घ्य देती हैं, ऐसे ही नजमा भी अर्घ्य देती हैं। अस्ताचलगामी सूर्य उपासना के साथ वह छठ के हर महात्म को अच्छे मानती हैं, उस हिसाब से ही पूजन अर्चन करती हैं। नजमा का कहना है कि वह शुरु में हिंदू व्रती महिलाओं को देखकर छठ सीखीं लेकिन अब तो इतना कुछ जान गईं हैं कि दूसरों को बताती हैं।

गंगा में स्नान करने के साथ पूरी उपासना वह विधि पूर्वक करती हैं। नजमा बताती हैं कि उनको अब छठ मैया पर काफी भरोसा है, अब तक उन्हें जो भी मिला है छठ मैया से ही मिला है। इस कारण से उन्होंने ठान लिया है कि हजब तक सांस रहेगी छठ व्रत करती रहेंगी। नजमा का कहना है कि किसी भी दशा में छठ मैया को नहीं भूल सकती हैं, जब भी कोई मुश्किल होती है वह मां को याद करती हैं, काम पूरा हो जाता है। एक संतान की चाह में मुराद पूरी हुई तो आस्था भी बढ़ती चली गई, आज 5 संतान के बाद आस्था भी अपार हो गई है।

नजीर बन गई हैं नजमा

नजमा नफरत फैलाने वालों के लिए नजीर बन गई हैं। नजमा का कहना है कि जो लोग धर्म के नाम पर बवाल करते हैं, उनके खूून लाल ही होते हैं। धर्म के नाम पर लड़ने का कोई मतलब नहीं है, ऐसा कहां लिखा है कि हिंदू के भगवान मुस्लिमों की पुकार नहीं सुनते हैं या मुस्लिम के पीर फकीर हिंदू की आवाज नहीं सुनते हैं।

आस्था श्रद्धा और विश्वास जहां भी रहेगा वहां मनोकामना पूरी होगी। नजमा का कहना है कि उसकी भी मुराद ऐसे ही पूरी हुई है। वह पहले दरगाह से लेकर कई स्थानों पर संतान के लिए मन्नत मांगने गई, लेकिन जब छठी मैया से आवाज लगाई तो वह सुन लीं। एक मुस्लिम की पुकार छठी मैया ने सुना और आज वह खुश है कि उसकी हर मनोकामना पूरी होती है।

Avinash Roy

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