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ऐसा ‘पावर बैंक’ जिसके बिना यूपी-बिहार में नहीं होती बहुतों की सुबह…

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आज हम जिस पावर बैंक (Power Bank) की बात कर रहे हैं, वह है खैनी की चुनौटी (Khaini ki Chunauti)। दरअसल, यूपी और बिहार में तंबाकू सभी वर्गों में समान रूप से लोकप्रिय है। चाहे कोई इसका उपयोग खैनी के रूप में कर रहा है तो कोई जर्दा, बीड़ी या सिगरेट के रूप में। कोई कोई तो तंबाकू से बने गुल से मंजन भी करते हैं। शायद इसलिए तंबाकू पर पूर्ण प्रतिबंध अभी तक नहीं लग पाया है। देश का कानून बनाने वाले सांसदों और विधायक तक इसके कद्रदां है। कई राज्यों के मुख्यमंत्री, केंद्र और राज्य सरकार के मंत्री रह चुके व्यक्ति भी इसके मुरीद रहे हैं या हैं। इसमें भी कोई शक नहीं है कि यह करोड़ों लोगों की रोजी रोटी का जरिया भी है। आइए, जानते हैं इसके कारोबार के बारे में..

दुनिया का दूसरे बड़े उत्पादक हैं हम

यदि तंबाकू की खेती की बात करें तो दुनिया भर में हमारा स्थान दूसरा है। हमसे ज्यादा तंबाकू की खेती चीन ही कर पाता है। भारत में इसकी खेती लगभग 0.45 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्र में होती है। मतलब कुल जितनी जमीन पर खेती की जाती है, उसमें से 10 फीसदी जमीन पर तंबाकू की ही खेती होती है। पिछले 5 वर्षों के दौरान हमारा तंबाकू की औसत उपज 80 करोड़ किलो रही है।

3.5 करोड़ से भी ज्यादा लोगों को मिलता है रोजगार

एक मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक भारत में तंबाकू की खेती, श्रम गतिविधियों, मैन्यूफैक्चरिंग, प्रोसेसिंग और निर्यात गतिविधियों में लगभग 3.6 करोड़ लोगों को रोजगार मिला हुआ है। अन्य तंबाकू उत्पादक देशों की तुलना में, भारत में उत्पादन या खेती की लागत कम है। इसलिए यहां से इसका निर्यात भी सस्ता पड़ता है। इसलिए वैश्विक बाजार में भी हमारे तंबाकू की भारी मांग है।

कहां होती है तंबाकू की खेती

भारत के प्रमुख तंबाकू उत्पादक राज्यों में गुजरात, आंध्र प्रदेश, उत्तर प्रदेश, कर्नाटक, पश्चिम बंगाल, तेलंगाना और बिहार शामिल हैं। इनमें से गुजरात, आंध्र प्रदेश और उत्तर प्रदेश का देश के कुल उत्पादन में क्रमशः लगभग 45%, 20% और 15% का योगदान है। कर्नाटक में लगभग 8% और शेष राज्यों में देश के कुल तंबाकू उत्पादन का लगभग 2-3% हिस्सा है। बिहार के मुजफ्फरपुर, समस्तीपुर, वैशाली और दरभंगा तो इसकी खेती के लिए देश भर में विख्यात है। क्योंकि वहीं सरैसा खैनी की खेती होती है। बिहार के मुंगेर में भी इसकी खेती होती है।

तम्बाकू निर्यात में भी हम दूसरे पोजिशन पर

तंबाकू निर्यात में भी हम ब्राजील के बाद दूसरे स्थान पर हैं। साल 2021-22 के दौरान, हमने 1.11 लाख टन तंबाकू FCV tobacco का निर्यात किया। इससे हमें 359 मिलियन डॉलर मिले। हम सभी तरह के तंबाकू का निर्यात करते हैं, जिनमें Stripped, Wholly Stemmed, Cigar Cheroots, Smoking Tobacco, Homogenized, Flue-Cured, Sun-Cured, Extract and Essence, FCV Tobacco, Unmanufactured Tobacco and Various Tobacco शामिल हैं।

इसकी खेती में गेंहू से कई गुना ज्यादा फायदा

यदि आप बिहार में गेहूं की खेती करते हैं और बढ़िया फसल है तो औसतन कट्ठे मन उपज होती है। मतलब कि एक बीघा में 20 मन यानी आठ क्विंटल। इस साल गेहूं कटने के बाद बिहार में गेहूं करीब 2,000 रुपये क्विंटल बिका था। मतलब एक बीघा में 16,000 रुपये की आमदनी। इतनी ही जमीन में यदि तंबाकू की खेती की जाए तो करीब ढाई क्विंटल तंबाकू की उपज होगी। खेत में ही तंबाकू 20 हजार रुपये क्विंटल आराम से बिक जाता है। मतलब 50 हजार रुपये की आमदनी। आप खुद जोड़ लीजिए कि कितना गुना फायदा हुआ। रिटेलर तो इसे 100 से 250 रुपये किलो तक बेचते हैं। पैक्ड तंबाकू तो हजारों रुपये किलो बिकता है।

बिहार में कहलाता है बुद्धि व‌र्द्धक चूर्ण :

बिहार में एक कहावत है-‘अस्सी चुटकी नब्बे ताल, तब खैनी रगड़ के मुंह में डाल’। वहां लोग प्यार से इसे बुद्धिव‌र्द्धक चूर्ण कहते हैं। अंग्रेजी में शॉर्टकट नाम बीबीसी। कई बड़े नेता से लेकर बड़े ब्यूरोक्रेट्स, कई नामचीन से लेकर रिक्शावाले और ऑटोवाले तक में मशहूर है खैनी। लोकल ट्रेन में चढ़ने के बाद देखिए खैनी की उस्तादी। आप छींकते रहिए, खैनी के कद्रदान खैनी ठोंक कर खा ही लेंगे। आप कहिएगा कैंसर हो जाएगा। जवाब मिलेगा जब मरना होगा, तभिए मरेंगे। आप कहिएगा हानिकारक है। जवाब मिलेगा खैनी से हानि नहीं है, गुटखा से है।

यह पावर बैंक न हो तो कई काम मुश्किल

जिन लोगों को खैनी खाने की आदत लग जाती है, उनमें एक जैसी समानता देखी जाती है। वह सुबह-सुबह जब तक हथेली पर रगड़ कर खैनी न खा लें, तब तक उनका प्रेशर नहीं बनता। आम भाषा में कहें तो बिना खैनी खाए वो वॉशरूम नहीं जा सकते। इसी तरह जो बीड़ी या सिगरेट पीते हैं, उन्हें भी शौचालय जाने से पहले इसका सेवन करना पड़ता है। इसी को बड़े दिलचस्प तरीके से फिल्म ‘बरेली की बरफी’ में फिल्माया गया है।

बौद्धिक वर्ग भी चपेट में

बिहार और यूपी के बौद्धिक वर्ग भी इसके चपेट में हैं। चाहे कॉलेज यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर हों या बड़े बड़े डॉक्टर इंजीनियर, इसका उपयोग हर जगह होता है। एक जमाने में तो इसी पावर बैंक से पावर लेकर बड़े बुजुर्ग राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मसलों पर चर्चा शुरू करते थे। बात चाहे अर्थव्यवस्था की हो किसी अन्य विषय की, सबमें इस पावर बैंक का अहम स्थान होता था। बिहार और यूपी के कई मुख्यमंत्री और अनगिनत मंत्री भी खैनी के कद्रदां रहे हैं। केंद्र सरकार के भी कई मंत्रियों की इससे मैत्री रही है।

Avinash Roy

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