बिहार में बंदरों और लंगूरों के प्रति ग्रामीणों की सहानुभूति होती है। गांव में बंदर और लंगूर के दिख जाने पर लोग उसे प्रणाम करते हैं। लोग उसे खाने के लिए भी दे देते हैं। यहां तक कि गांव में लंगूर की बकायदा पूजा होती है। लंगूर गांव में जाते हैं, तो लोग उन्हें खाने के लिए कई तरह की सामग्री देते हैं। ताजा मामला नवादा के कौआकोल प्रखंड के फुलडीह गांव का है। जहां लंगूर के मौत के बाद उसका अंतिम संस्कार किया है।
लंगूर को मानते हैं हनुमान
लंगूर को हनुमान का रूप मानते हुए ग्रामीणों ने गाजे-बाजे के साथ उसकी अंतिम यात्रा निकाली। उस यात्रा में बकायदा ग्रामीण शामिल हुए। राम-नाम सत्य के बोल के साथ अंतिम संस्कार यात्रा निकाली गई। ग्रामीण सह पंचायत समिति सदस्य ताजेन्द्र कुमार उर्फ तेजो साह ने बताया कि गुरुवार को गांव में ही ताड़ के पेड़ से लंगूर गिर गया। जिसमें उसकी मौत हो गई। उसके बाद रविवार को बकायदा उसके अंतिम संस्कार की तैयारी की गई।
अंतिम यात्रा का आयोजन
उसके बाद ग्रामीणों ने सोमवार को लंगूर की अंतिम यात्रा निकाली। इस दौरान उसे पूरे गांव में घुमाया गया। लोगों ने लंगूर को प्रणाम किया और उसे विदाई दी। लंगूर के अंतिम संस्कार में ढोल के साथ गाजे-बाजे का प्रयोग किया गया। गाना बजाते हुए ग्रामीण उसे लेकर अंतिम संस्कार को रवाना हुए।लंगूर की अंतिम यात्रा निकालकर रीति रिवाज के साथ शव का संस्कार किया गया। ग्रामीण उदय साह, विकास कुमार, विक्रम कुमार, अजय दास, राजू विश्वकर्मा आदि ने बताया कि मनुष्य हो और जीव-जंतु, ये सब धरोहर हैं। हम लोगों को सभी का सम्मान करना चाहिए।
भोज का होगा आयोजन
ग्रामीणों ने लंगूर का विधि-विधान के साथ अंतिम संस्कार कर लोगों को एक संदेश देने का काम किया है। ताकि लोगों में पशु-पक्षियों के प्रति भी स्नेह और प्यार बना रहे। 3 दिसम्बर को ग्रामीणों के सहयोग से खीर-पूड़ी का सामूहिक भोज का भी आयोजन किया जाएगा। ग्रामीणों के इस भक्तिभाव की पूरे प्रखण्ड में चर्चा की जा रही है।
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