बिहार नगर निकाय चुनाव पर एक बार फिर खतरा! सुशील मोदी ने प्रत्याशियों को दे डाली नसीहत, ‘सोच-समझ कर करें खर्च’
बिहार नगर निकाय चुनाव की घोषणा राजू निर्वाचन आयोग ने एकबार फिर भले ही कर दी हो; मगर इस पर एक बार फिर सवाल खड़े किए जा रहे हैं और चुनाव फिर टलने का खतरा बताया जा रहा है. पिछले दिनों राज्य निर्वाचन आयोग द्वारा दो चरणों मे चुनाव की तिथि घोषित करने के बाद कई सवाल खड़े किए जा रहे हैं. पूर्व डिप्टी सीएम और राजयसभा सांसद सुशील मोदी ने सवाल उठाते हुए कहा है कि नगर निकाय चुनाव को लेकर बिहार सरकार ने जल्दीबाजी दिखाई है.
सुशील मोदी ने कहा कि राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट की आदेश की अवहेलना की है. आनेवाले दिनों में सरकार की फिर फजीहत होने वाली है. सुशील मोदी ने कहा कि जो रिपोर्ट बनाई गई है उसे सार्वजनिक किया जाना चाहिए और नए लोगों को भी चुनाव लड़ने की छूट मिलनी चाहिए. मोदी ने कहा जो चुनाव लड़ने वाले है वो पैसे खर्च न करे क्योंकि एक सप्ताह के अंदर कुछ भी हो सकता है.
सुशील मोदी के दावे पर सरकार ने उठाया सवाल
नगर निकाय चुनाव को लेकर सुशील मोदी के चुनाव टलने के दावे के बाद जेडीयू और राजद ने सवाल खड़ा करते हुए चुनाव रोकने की साजिश करार दिया है. जेडीयू संसदीय दल के नेता उपेंद्र कुशवाहा ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के अनुसार आयोग को रिपोर्ट बनाकर दिया गया. राज्य निर्वाचन ने तारीखों की घोषणा की है; इसमें सुशील मोदी को क्या तकलीफ. सुशील मोदी चुनाव को टालना चाहते हैं इसलिए ऐसे बयान दे रहे हैं. सुशील मोदी का लक्ष्य चुनाव को रोकना है. वहीं वित्त मंत्री विजय चौधरी ने बताया कि सुशील मोदी नहीं चाहते कि चुनाव हो और अति पिछड़ों को आरक्षण मिले. बीजेपी हमेशा अतिपिछड़ों के खिलाफ रही है इसलिए ऐसे बयान दे रहे हैं. बिहार सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के मुताबिक रिपोर्ट तैयार की गई है.
जानिए नगर निकाय चुनाव में कहां है पेंच
नगर निकाय चुनाव को लेकर बिहार में राजनीति गरमाई हुई है. नगर निकाय चुनाव की घोषणा पहले ही की गई थी, लेकिन कोर्ट के फैसले के बाद निर्वाचन आयोग ने चुनाव को अगले आदेश तक रद्द करने की घोषणा कर दी थी. बिहार सरकार ने सुप्रीम कोर्ट कोर्ट के आदेश के बाद आयोग बनाया और रिपोर्ट राज्य निर्वाचन आयोग को सौंपी. इसके बाद चुनाव की तिथियों की घोषणा हुई. अब सरकार द्वारा सौपीं गई रिपोर्ट पर सवाल खड़ा किया जा रहा है और नए लोगों को चुनाव नहीं लड़ने के बजाय पुराने नामांकन करने वाले लोगों को ही चुनाव लड़ने की अनुमति देने पर सवाल खड़ा किया जा रहा है.






