बिहार के बेगूसराय में आलू का समर्थन मूल्य देने के लिए गुरुवार को किसानों का अनोखा प्रदर्शन देखने को मिला. यहां किसानों ने सैकड़ों बोरा आलू को एनएच पर फेंक कर उसे गाड़ियों से रौंद कर आलू को बर्बाद कर दिया. इस दौरान आलू उत्पादक किसान सरकार विरोधी नारे लगाते रहे. यह मामला बछवारा एनएच-28 की है. बछवारा प्रखंड के किसानों के द्वारा लगातार सरकार से मांग की जा रही थी कि सरकार आलू का समर्थन मूल्य तय करें.
किसानों सड़क पर फेंका आलूः
किसान समर्थन मूल्य तय करने की सरकार से मांग कर रहे हैं, ताकि वह अपने आलू को उचित भाव पर बेच सकें. इसी के विरोध में आलू उत्पादक किसानों ने एनएच-28 पर सैकड़ों बोरे आलू फेंक कर अपनी नाराजगी जाहिर की है. इस दौरान किसानों ने केंद्र और राज्य सरकार के विरुद्ध नारेबाजी भी की है. दरअसल, बेगूसराय जिले के विभिन्न इलाकों में बड़े पैमाने पर आलू की खेती की जाती है, लेकिन इस बार ना तो किसानों को व्यापारी मिल रहे हैं और न ही कोल्ड स्टोर के मालिक किसानों के आलू को रख रहे हैं. आलम यह है कि अब आलू खेत पर आलू निकालने के लिए किसानों को मजदूर भी नहीं मिल रहा है.
केरल की तर्ज पर आलू का न्यूनतम समर्थन मूल्य तय करने की मांगः
थक हार कर किसानों ने लिखित रूप से अपने प्रदर्शन के माध्यम से कई बार सरकार और जिला प्रशासन का ध्यान आकृष्ट करने की कोशिश की. लेकिन जब किसी प्रकार का फायदा नहीं मिला. तब थक हार कर किसानों ने अपनी नाराजगी जाहिर की है और मांग किया है केरल की तर्ज पर हरी साग सब्जियों एवं आलू का न्यूनतम समर्थन मूल्य तय किया जाए. दूसरी ओर किसानों ने कहा है कि पहले फसल क्षति का मुआवजा भी किसानों को दिया जाता था, लेकिन अब सरकार ने वह भी बंद कर दी है. इससे कि अब किसान भुखमरी की कगार पर पहुंच गए हैं.
400 रुपये क्विंटल भी आलू लेने वाला कोई नहींः
इस मामले मे किसानों ने कहा कि बेगूसराय में हजारों हजार एकड़ में आलू की खेती होती है. लेकिन जब आलू की उगाही होने लगे तो आलू का दाम 400 रुपया क्विंटल हो गया. हालत यह है कि 400 रुपया क्विंटल आलू भी लेने वाला कोई नहीं है. इस कारण किसानों की फसल उसकी खेत में ही पड़ा हुआ सड़ रहा है. लोगों ने यह तय किया है कि अब अपने खेतो में ही आलू को सड़ने के लिए छोड़ दिया जाय. उमेश कुमार ने सरकार से मांग की है कि प्रति एकड़ सोलह हजार रुपया सहायता राशि किसानों को मिलनी चाहिए, ताकि थोड़ी सी राहत किसानों को मिल पाए. इनका कहना है कि जब तक उनकी मांगे पूरी नहीं होगी तब तक आलू किसान लड़ते रहेंगे लड़ते रहेंगे. चाहे इसकी कीमत जितनी भी चुकानी पड़े.
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