पूर्व केंद्रीय मंत्री और राष्ट्रीय लोक जनता दल के अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा दिल्ली में केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह से मिलने पहुंचे हैं। गृह मंत्रालय में शाह के दफ्तर में चल रही इस मुलाकात से एक बार फिर कुशवाहा की नई पार्टी आरएलजेडी के बीजेपी के साथ आने और एनडीए में शामिल होने की अटकलें शुरू हो गई हैं। कुशवाहा के साथ बिहार बीजेपी के पूर्व अध्यक्ष और सांसद संजय जायसवाल भी मीटिंग में मौजूद थे जो करीब 45 मिनट तक चली।
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू छोड़कर रालोजद बनाने के तुरंत बाद उपेंद्र कुशवाहा को लेकर बीजेपी कैंप में काफी पॉजिटिव हलचल दिखी थी। लेकिन बीजेपी ने बिहार में जब से कुशवाहा बिरादरी के ही सम्राट चौधरी को प्रदेश अध्यक्ष बनाया है तब से उपेंद्र कुशवाहा का एनडीए या बीजेपी में भाव कम होने की आशंका जताई जा रही है।
कुशवाहा पहली बार बीजेपी के साथ अपनी पुरानी पार्टी राष्ट्रीय लोक समता पार्टी यानी रालोसपा 2014 का लोकसभा चुनाव लड़े थे। तब बीजेपी ने कुशवाहा की पार्टी को एनडीए गठबंधन में 3 सीट लड़ने के लिए दी थी और रालोसपा तीनों सीट जीत गई थी। कुशवाहा केंद्र में मंत्री बनाए गए थे। लेकिन 2017 में नीतीश के महागठबंधन छोड़कर वापस बीजेपी से हाथ मिलाने और एनडीए में आने के बाद से कुशवाहा का समीकरण बिगड़ता गया और 2018 के आखिर में वो सरकार से इस्तीफा देकर निकल लिए।
कुछ महीने पहले तक नीतीश को पीएम कैंडिडेट बताने वाले कुशवाहा अब नरेंद्र मोदी का गुणगान कर रहे हैं। बिहार में बदले हुए समीकरण में एनडीए में कोई ताकतवर पार्टी नहीं बची है। बीजेपी अपनी शर्तों पर ही सीट बांटना चाहती है। इस वजह से दो धड़ों में बंट चुकी रामविलास पासवान की लोजपा और कुशवाहा सब बीजेपी नेतृत्व की ओर टकटकी लगाए बैठे हैं।
बीजेपी ने 2019 के लोकसभा चुनाव में लोजपा को 6 सीटें दी थीं और उसने सारी सीटें जीती थीं। अब चिराग पासवान और पशुपति पारस दोनों को मिलाकर भी बीजेपी शायद इतनी सीट देने के मूड में नहीं है। उपेंद्र कुशवाहा भी कम से कम 3 सीट खोज रहे हैं जितनी 2014 में मिली थी। पीएम मोदी के नाम पर चुनाव दर चुनाव लड़ और जीत रही बीजेपी इस बार बिहार में 9-10 सीट गठबंधन में देने को तैयार नहीं दिख रही है।
उपेंद्र कुशवाहा की अमित शाह से गुरुवार शाम की मुलाकात सीट बंटवारे को लेकर बीजेपी को सरसरी तौर पर अपनी मांग रखने की कोशिश है। अमित शाह और बीजेपी दोनों बिहार में महागठबंधन की चुनौती को समझ रहे हैं और जवाब में जिताऊ गठबंधन बनाने में कोई कमी नहीं रखेंगे। लेकिन सीटों की कहानी को लेकर अभी चर्चा और बैठकों का दौर इस साल के अंत तक चलता ही रहेगा।
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