बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पार्टी की सीटों पर 2020 के विधानसभा चुनाव में कैंडिडेट उतारकर जेडीयू को 43 सीट पर समेट देने वाले लोजपा-रामविलास के अध्यक्ष और जमुई के सांसद चिराग पासवान की मांग और पूछ फिर बढ़ रही है। खुद को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का हनुमान घोषित कर चुके चिराग भले सब काम भाजपा के हिसाब का ही करते हों लेकिन उनकी पार्टी लोजपा-रामविलास अभी तक एनडीए का हिस्सा नहीं हैं क्योंकि वहां उनकी पार्टी तोड़कर मंत्री बन बैठे उनके चाचा पशुपति पारस की पार्टी रालोजपा बैठी हुई है।
अब 2023 आधा निकल चुका है और 2024 बस आने को है। अगले साल इस समय तक अगली सरकार के शपथ की तैयारी हो रही होगी या हो चुकी होगी। ऐसे में बीजेपी से लेकर आरजेडी तक चिराग पासवान का भाव चढ़ा हुआ है। दलितों और उसमें भी पासवान के वोट पर जो पकड़ और प्रभाव चिराग का है वो पांच सांसद तोड़कर नई पार्टी बनाने वाले उनके चाचा पशुपति पारस का नहीं है। ये बात भाजपा भी जानती है और राजद भी।
2020 में जब चिराग एनडीए में पसंद भर सीट नहीं मिलने पर बीजेपी का साथ छोड़ गए थे और अपने पोस्टर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का फोटो लगा रहे थे तो भाजपा ने उनको फोटो लगाने से रोक दिया था। लोजपा के 6 में 5 सांसद को लेकर चाचा पशुपति पारस ने पहले पार्टी पर दावा किया बाद में नई पार्टी बना ली और केंद्र सरकार में मंत्री बन गए। चिराग पासवान से केंद्र सरकार ने 12 जनपथ का बंगला खाली करा लिया जिसे वो अपने पिता की याद के तौर पर रखना चाहते थे।
इन तीन सालों में बीजेपी और चिराग के बीच बहुत कुछ हुआ है लेकिन नीतीश के धुर विरोधी के तौर पर उभरे चिराग जमीनी हकीकत और उनके सामने मौजूद राजनीतिक विकल्पों से वाकिफ हैं। इसलिए चिराग पासवान खुद या उनकी पार्टी का कोई नेता बीजेपी के लिए ऐसी-वैसी बात नहीं करता। सबके निशाने पर जेडीयू के सुप्रीम नेता नीतीश कुमार ही रहते हैं जो लालू यादव और तेजस्वी यादव की आरजेडी, कांग्रेस, हम के साथ लेफ्ट के समर्थन से सरकार चला रहे हैं।
बुरे समय में बीजेपी का साथ नहीं मिलने से दुखी चिराग को मनाना शुरू हो चुका है। पिछले साल दिसंबर में गृहमंत्री अमित शाह से मुलाकात के बाद चिराग को जेड कैटेगरी सिक्योरिटी दी गई। लेकिन अप्रैल में जब अमित शाह ने बिहार में कहा कि 2024 में बिहार की 40 सीट लड़ेंगे और जीतेंगे तो चिराग ने भी जवाब में कहा कि उनकी पार्टी भी 40 सीट लड़ने की तैयारी कर रही है। कुढ़नी और गोपालगंज उप-चुनाव में बीजेपी की जीत में पासवान वोट का अहम रोल माना जाता है।
चिराग पासवान भाजपा और उसकी टॉप लीडरशिप से संबंध अच्छा रखना चाहते हैं क्योंकि उन्हें भी अकेले लड़ने का हश्र पता है। 2020 के चुनाव में 135 सीट लड़ने के बाद वो मात्र एक सीट जीत सके थे भले उनकी पार्टी ने जेडीयू को कई सीटों पर हरा दिया। लालू यादव की आरजेडी और तेजस्वी यादव से चिराग के अच्छे संबंध हैं लेकिन नीतीश से उनका 36 का आंकड़ा है, ऐसे में महागठबंधन में चिराग की दाल गलने के आसार ना के बराबर हैं।
एलजेपी-रामविलास के सूत्रों का कहना है कि चिराग पासवान ने 2024 के चुनाव में गठबंधन के लिए अपनी शर्तें बीजेपी के सामने रख दी है। सबसे पहली शर्त है कि चाचा पशुपति पारस को सरकार और गठबंधन से विदा किया जाए। उसके बाद चिराग को लड़ने के लिए लोकसभा की 6 सीट के साथ-साथ 1 राज्यसभा सीट और 2 विधान परिषद की सीट भी चाहिए। चिराग का कहना है कि 2019 में उनकी पार्टी को जितनी सीटें मिली थीं, उसमें कोई कमी वो मंजूर नहीं करेंगे।
बिहार में लोजपा के प्रधान महासचिव और चिराग के करीबी संजय पासवान कहते हैं कि सम्मानजनक सीट नहीं मिलने पर 2020 में लोजपा अकेले लड़ी थी और 2024 में भी सम्मानजनक सीट नहीं मिले पर अकेले ही लड़ सकती है। संजय पासवान ने कहा कि लोजपा के लिए 6 लोकसभा, 1 राज्यसभा और 2 विधान परिषद की सीट सम्मानजनक समझौता होगा। जब उनसे पूछा गया कि अगर बीजेपी ये सब ना दे तो चिराग क्या करेंगे तो पासवान ने कहा कि पार्टी के हित में जो उचित निर्णय होगा वो सही समय पर लिया जाएगा।
सूत्रों का कहना है कि बीजेपी बिहार में इस बार लोकसभआ की 40 में 30-32 सीट लड़ना चाहती है। भाजपा के सामने संकट ये है कि बची 8-10 सीटों में उसे चिराग पासवान, पशुपति कुमार पारस, उपेंद्र कुशवाहा और मुकेश सहनी को भी लड़ाना है। जैसे चिराग 6 सीट मांग रहे हैं वैसे ही पारस भी अपनी पार्टी के मौजूदा 5 सांसदों के लिए सीट मांग रहे हैं।
उपेंद्र कुशवाहा जब एनडीए में रहकर 2014 का चुनाव लड़े थे तब उस समय की उनकी पार्टी रालोसपा को 3 सीटें मिली थीं और वो तीनों जीत भी गई थी। कुशवाहा मंत्री बने थे लेकिन जब जेडीयू वापस एनडीए में आ गई तो उनका समीकरण बिगड़ता गया और वो आखिर में एनडीए से निकल गए। कुशवाहा से जुड़े सूत्रों का कहना है कि अब उनकी नई पार्टी रालोजद को 2024 के चुनाव में भी 3 सीट चाहिए। सूत्रों का यह भी कहना है कि कुशवाहा 2 लोकसभा और 1 विधान परिषद की सीट मिलने पर भी गठबंधन कर सकते हैं।
मुकेश सहनी जातीय गोलबंदी में मल्लाह वोट के बहुमान्य नेता के तौर पर उभरे हैं और 2020 के विधानसभा चुनाव में एनडीए के साथ थे तो 11 सीट पर लड़कर चार जीते थे। वैसे खुद की सीट मुकेश सहनी हार गए थे। यूपी में विधानसभा का चुनाव बीजेपी के खिलाफ लड़ने की सहनी को कीमत चुकानी पड़ी। मुकेश सहनी ने जब इस्तीफा देने से मना कर दिया तो नीतीश कुमार ने उनको मंत्रिमंडल से बर्खास्त कर दिया। इससे पहले उनके बचे हुए तीनों विधायकों को भाजपा ने शामिल कर लिया।
वीआईपी के एक विधायक मुसाफिर पासवान का निधन हो चुका था। मुसाफिर पासवान की बोचहां सीट पर उप-चुनाव में विधायक के बेटे अमर पासवान को आरजेडी ने कैंडिडेट बनाकर सीट झटक ली। साहनी के साथ बीजेपी का अनुभव चिराग से ज्यादा खराब रहा है लेकिन अब वो भी 2024 में गठबंधन के लिए बीजेपी के दरवाजे पर हैं। सहनी की शर्त है कि जितनी सीटें चिराग पासवान को मिले, उतनी ही उनको भी चाहिए।
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