आज शुक्रवार को पटना में आयोजित गैर भाजपा दलों के महाकुंभ में अगर एकजुट होकर एनडीए का मुकाबला करने पर सहमति बनी तो देश में एक नया सियासी समीकरण आकार लेगा। परस्पर विरोधी और समान विचारधारा के दलों का यह समीकरण बना तो एनडीए को आगामी लोकसभा चुनाव में करीब 351 लोकसभा सीटों पर कड़ी टक्कर देगा। यह तय किया जाना है कि बीजेपी के खिलाफ विपक्षी दल वन अगेन्स्ट वन की पॉलिसी पर काम करेंगे। मतलब यह कि बीजेपी के खिलाफ विपक्षी दलों में से किसी एक दल का एकमात्र उम्मीदवार चुनाव लड़ेगा।
जिन राज्यों के प्रमुख नेताओं की इस बैठक में जुटान हो रही है उनमें बिहार, यूपी, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, महाराष्ट्र, झारखंड, पंजाब और दिल्ली को मिलाकर कुल 283 लोकसभा सीटें हैं। वहीं कांग्रेस शासित चार राज्यों में 68 लोस सीटें हैं। इस महामंथन के केंद्र में कांग्रेस पार्टी है जिससे बड़ा दिल दिखाने की उम्मीद सभी दलों को है।
बैठक में छह राज्यों के मुख्यमंत्री शामिल हो रहे हैं। बिहार के अलावा, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, दिल्ली, पंजाब और झारखंड के मुख्यमंत्री। इन छह प्रदेशों को मिलाकर कुल 155 लोकसभा सीटें हैं। वहीं विपक्षी एकता की बैठक में चार पूर्व मुख्यमंत्री भी शामिल हो रहे हैं और ये सभी अपने-अपने राज्यों में प्रभावी हैं। पीडीपी की महबूबा मुफ्ती और नेशनल कॉन्फ्रेंस के फारुख अब्दुल्लाह का जम्मू-कश्मीर में प्रभाव रहा है। इन दोनों के साथ कांग्रेस के आने से यह गठबंधन भाजपा को बराबरी का टक्कर देगा।
महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री शरद पवार, उद्धव ठाकरे पहले से ही कांग्रेस के साथ महाअघाड़ी गठबंधन में हैं। इस प्रदेश में कुल 48 लोकसभा सीटें हैं। इसमें भाजपा 41 जबकि यूपीए 5 सीटों पर काबिज है। 2019 में शिवसेना एनडीए के साथ थी। अब शिवसेना (बाला साहेब) भी विपक्षी गठबंधन में है। कांग्रेस सात राज्यों में सरकार में है। बिहार, झारखंड और तमिलनाडु में वह सत्ताधारी गठबंधन में शामिल है, जबकि हिमाचल, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और कर्नाटक में उसकी अपनी सरकार है। इन चार राज्य को मिलाकर कुल 68 सीटें हैं। तमिलनाडु की 39 में से 36 सीटों पर क्रमश डीएमके (28), कांग्रेस (8), सीपीएम तथा सीपीआई (क्रमश 2-2) का कब्जा है।
दिल्ली, पश्चिम बंगाल और पंजाब में सत्तासीन क्षेत्रीय दलों के विरोध में कांग्रेस चुनाव लड़ती रही है। दिल्ली व पंजाब में आप व पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस के साथ कांग्रेस, वाम दल व अन्य गैर भाजपा दल साथ आएंगे तो यह बड़ी गोलबंदी होगी। इन तीन राज्यों में लोकसभा की 62 सीटें हैं। इनमें अभी एनडीए के पास 27, जबकि शेष अन्य दलों के पास हैं। कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, वामदल और आप के अलग-अलग लड़ने का लाभ एनडीए को पिछले चुनाव में मिला था। तमिलनाडु में डीएमके व कांग्रेस का 40 साल पुराना संबंध है। यहां वाम दलों के साथ से यह और मजबूत हो जाएगा।
उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के साथ मुख्य विपक्षी दल सपा चुनाव लड़ती रही है और उनके बीच गहरा तालमेल भी रहा है। इस प्रदेश में देश में सबसे अधिक 80 लोकसभा सीटें हैं। झारखंड में पहले से झामुमो कांग्रेस की साझा सरकार है। वहीं बिहार सरकार में भी कांग्रेस है। 2015 के विस में जदयू, राजद तथा कांग्रेस के महागठबंधन ने शानदार सफलता पाई थी। अब तो इस गठबंधन में वाम दल भी हैं। फिलहाल बिहार की 40 में से 16 सीट जदयू जबकि एक सीट कांग्रेस के पास है, शेष एनडीए के पास। बहरहाल सब मिल जायेंगे तो एक बड़ा समीकरण आकार लेगा जो 2024 के चुनाव में एनडीए को मजबूत चुनौती देगा।
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