मानसून की दगाबाजी ने किसानों को संकट में डाल दिया है. बारिश नहीं होने से चारों तरफ हाहाकार मचा है. खरीफ की प्रमुख फसल धान की नर्सरी तैयार करने का प्रमुख नक्षत्र रोहिणी भी गुरुवार को खत्म हो गया. आषाढ़ का महीना भी अब बीतने को है. सिर्फ 17-18 दिन ही बाकी है. अब तक इक्के-दुक्के साधन संपन्न खेतिहर ही धान का बिचड़ा गिरा पाये हैं.
बारिश नहीं होने के कारण किसानों ने अब तक नर्सरी लगाने की तैयारी भी शुरू नहीं की है. उनका कहना है कि आखिर बिचड़ा कहां पर गिराये. खेत में पानी नहीं है. अधिकांश पोखर, पइन, तालाब और नदी खुद पानी के लिए तरस रहे हैं. रोहिणी नक्षत्र के खत्म होने के बाद मृगशिरा नक्षत्र शुरू हुआ है. यह नक्षत्र भी 13 दिनों का होगा और इसके बाद 22 जून से आद्रा नक्षत्र का शुभारंभ होगा. पानी की उपलब्धता के अनुरूप अधिकतर किसान मृगशिरा या आद्रा नक्षत्र में ही धान की नर्सरी तैयार कर पायेंगे. साधनहीन किसान मानसून की बाट जोह रहे हैं. लेट से बिचड़ा गिराने से उत्पादन पर असर पड़ता है.
कृषि विशेषज्ञों की मानें, तो इसके लिए 10 जून तक का ही समय उपयुक्त माना गया है. किसान यदि इस अवधि में लंबी अवधि के प्रभेद एमटीयू 7029, स्वर्णा सब 1, राजेंद्र मंसूरी 1, राजेंद्र मंसूरी 2, राज श्री तथा सुगंधित प्रजातियों में राजेंद्र कस्तूरी, राजेंद्र सुवासिनी, राजेंद्र भगवती, सबौर, सुरभित तथा सोनाचुर आदि की नर्सरी तैयार कर लेते हैं, तो अच्छे उत्पादन की उम्मीद की जा सकती है. देर से बिचड़ा गिराने पर पौधे के विकास पर असर पड़ता है.
वहीं उत्पादन में कमी आती है. मध्यम अवधि 135 से 140 दिनों में तैयार होने वाला प्रभेद सोनम, सीता, कनक, राजेंद्र श्वेता, बीपीटी 5204, सबौर अर्द्धजल, एमटीयू 1001 आदि का बिचड़ा 10 से 25 जून के बीच गिरा देना चाहिए. इसी तरह से अल्प अवधि के प्रभेद अर्द्धजल, सहभागी आदि का बिचड़ा 25 जून के बाद से लेकर 10 जुलाई के बीच गिराना चाहिए.
कृषि पदाधिकारी का कहना है कि कई प्रखंड के कितने भूभाग में अब तक नर्सरी तैयार की गयी है, यह आंकड़ा कर्मियों के हड़ताल की वजह से कृषि विभाग के पास उपलब्ध नहीं हो पाया है. वैसे पांच जून तक नर्सरी की रिपोर्ट शून्य थी. उन्होंने बताया कि अब तक बेहद कम किसानों ने नर्सरी तैयार की है.
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