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पटना हाईकोर्ट ने गर्भाशय घोटाला मामले पर की सुनवाई, पीड़ित महिलाओं को दिए क्षतिपूर्ति का राज्य सरकार से माँगा ब्यौरा

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पटना हाईकोर्ट में बिहार के गर्भाशय घोटाले के मामलें पर आज सुनवाई की गयी। चीफ जस्टिस के वी चन्द्रन की खंडपीठ ने वेटरन फोरम की जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए राज्य सरकार को पीड़ित महिलाओं को दिये गये क्षतिपूर्ति का विस्तृत ब्यौरा देने का निर्देश दिया है। पिछली सुनवाई में कोर्ट ने राज्य सरकार को पीडितों की सूची और क्षतिपूर्ति देने की जानकारी देने के लिए राज्य सरकार को समय दिया था।

याचिकाकर्ता के अधिवक्ता दीनू कुमार ने हाईकोर्ट को बताया कि राज्य में अवैध रूप 27 हज़ार महिलाओं के गर्भाशय हटाने के मामलें पर राज्य सरकार ने कोई जांच नहीं कराई। इस सम्बन्ध में राज्य मानवाधिकार आयोग ने जांच कराने का आदेश दिया था।

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उन्होंने बताया कि 40 साल तक आयु की पीड़ित महिलाओं को दो लाख रुपये, जबकि 40 वर्ष आयु के ऊपर की पीड़ित महिलाओं को सवा लाख रुपये बतौर क्षतिपूर्ति देने का आदेश राज्य सरकार को देने का निर्देश दिया था। उन्होंने बताया कि राज्य के आठ जिलों के 540 में से 204 पीड़ित महिलाओं को क्षतिपूर्ति नहीं दी गई है। उन्होंने कहा कि राज्य ने इस बात को अब तक रिकॉर्ड पर नहीं लाया कि कितनी पीड़ित महिलाओं को क्षतिपूर्ति की धनराशि दे दी गई है और कितनों को देना बाकी है।

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याचिकाकर्ता के अधिवक्ता दीनू कुमार ने बताया कि सबसे पहले ये मामला मानवाधिकार आयोग के समक्ष 2012 में लाया गया था। 2017 में पटना हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका वेटरन फोरम ने दायर किया गया था। इसमें ये आरोप लगाया गया था कि राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना का गलत लाभ उठाने के लिए बिहार के विभिन्न अस्पतालों/डॉक्टरों द्वारा बड़ी तादाद में बगैर महिलाओं की सहमति के ऑपरेशन कर गर्भाशय निकाल लिए गए।

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पूर्व की सुनवाई में कोर्ट ने ये भी जानकारी देने को कहा था कि कितने आपरेशन किये गए और कितनी महिलाओं के उनकी सहमति के बगैर उनके गर्भाशय निकाले गए और उनकी उम्र कितनी थी। पीड़ितों को दिए गए मुआवजे का भी ब्यौरा तलब किया गया था। याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता दीनू कुमार और रितिका रानी व राज्य सरकार की ओर से महाधिवक्ता एस डी यादव ने कोर्ट के समक्ष पक्षों को प्रस्तुत किया। इस मामलें पर अगली सुनवाई 26 जून,2023 को की जाएगी।

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