बिहार की 40 लोकसभा सीटों में कम से कम 30 सीट लड़ने की चाहत के साथ बीजेपी ने एनडीए गठबंधन का रूप-स्वरूप मोटा-मोटी तय कर दिया है। पशुपति पारस पहले से एनडीए में थे। जीतन राम मांझी और नागमणि भी शामिल हो गए। चिराग पासवान की लोजपा-रामविलास और उपेंद्र कुशवाहा की रालोजद की एनडीए में शामिल होने की औपचारिक घोषणा तो नहीं हुई है लेकिन बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने दोनों को एनडीए का सहयोगी बताते पत्र भेजकर 18 जुलाई को दिल्ली की एनडीए मीटिंग का न्योता भेजा है। बिहार में अब बस मुकेश सहनी की वीआईपी इकलौती पार्टी है जिसे एनडीए में शामिल होना है लेकिन उसे अभी तक 18 जुलाई की मीटिंग के लिए नड्डा की चिट्ठी या अमित शाह का बुलावा नहीं गया है।
बीजेपी सूत्रों ने बताया कि मुकेश सहनी बीजेपी से गठबंधन के लिए जो शर्त रख रहे हैं वो भाजपा के नजरिए से बहुत ज्यादा है। सूत्र ने बताया कि मुकेश सहनी ने बीजेपी से साफ कहा है कि उन्हें चिराग पासवान की पार्टी से एक भी सीट कम मंजूर नहीं है। चिराग बीजेपी से 6 लोकसभा सीट, 1 राज्यसभा सीट और 2 विधान परिषद सीट मांग रहे हैं। लोकसभा ही गिनें तो मुकेश सहनी को चिराग के बराबर 6 सीट चाहिए।
दूसरी शर्त है कि सीटों की संख्या 3 से कम ना हो। तीसरी बात जिस पर मामला फंसा है वो है कैंडिडेट का नाम। मुकेश सहनी कह रहे हैं कि बीजेपी उन्हें सीट की संख्या और सीट बताए। बीजेपी की तरफ से हर सीट पर कैंडिडेट का नाम मांगा जा रहा है। बीजेपी चाहती है कि गठबंधन में सीट भले सहयोगी लड़े लेकिन कैंडिडेट जिताऊ है या नहीं, ये भाजपा के कंट्रोल में रहे। मुकेश सहनी कैंडिडेट का नाम बताने को तैयार नहीं हैं।
बस एक सीट मुजफ्फरपुर है जो क्लीयर है। अगर मुकेश सहनी एनडीए में आते हैं तो मुजफ्फरपुर लोकसभा सीट उनको खुद लड़ने के लिए दी जाएगी। कहा जा रहा है कि बीजेपी की रणनीति है कि जिस पार्टी के पास मजबूत कैंडिडेट ना हो, वो अपने कोटे की सीट पर बीजेपी के ही नेता को चुनाव लड़ाए। मुकेश सहनी की पार्टी वीआईपी के साथ ये दिक्कत है कि पार्टी में उनके बाद कोई बड़ा चेहरा नहीं है। बीजेपी को लगता है कि मुकेश सहनी के पास लोकसभा लड़ने लायक कैंडिडेट नहीं हैं। मुकेश सहनी को जो भी सीट दी जाएगी वहां कैंडिडेट चयन में भाजपा की नहीं चली तो महागठबंधन को उस सीट पर कमजोर कैंडिडेट के कारण फायदा हो सकता है।
एनडीए में वापसी के लिए बेकरार मुकेश सहनी मुंबई में बैठे हैं और दिल्ली की फ्लाइट का टिकट कटाकर अमित शाह के फोन और जेपी नड्डा की चिट्ठी का इंतजार कर रहे हैं। बीजेपी की तरफ से नित्यानंद राय को मुकेश सहनी को मनाने और लाने का काम सौंपा गया है जो मुकेश सहनी से लगातार बात कर रहे हैं लेकिन सहनी की एक भी शर्त बीजेपी मानने को तैयार नहीं है। इसलिए सहनी को अभी तक ना तो अमित शाह का फोन गया है और ना ही जेपी नड्डा की चिट्ठी के साथ एनडीए की मीटिंग का बुलावा। हालांकि सहनी ने खुले तौर पर कह रखा है कि उनकी पार्टी वीआईपी 25 जुलाई को फूलन देवी की पुण्यतिथि पर एक कार्यक्रम आयोजित करेगी और उसी दिन गठबंधन पर फैसला लेगी।
एनडीए में मुकेश सहनी की बात नहीं बन पाई तो उनके सामने मुश्किल ये है कि महागठबंधन के दरवाजे पर वो खुद ही ताला मारकर निकले हैं। दोबारा महागठबंधन की तरफ गए तो गिरे हुए भाव में उनको एक या ज्यादा से ज्यादा दो सीट पर समझौता करना पड़ेगा। मुकेश सहनी को अंदाजा है कि जिस मल्लाह वोटर के दम पर वो सन ऑफ मल्लाह बने घूम रहे हैं वो आज की तारीख में भाजपा के साथ है। मुकेश सहनी अगर एनडीए में रहते हैं तो सहनी वोट कन्फ्यूज नहीं होगा। लेकिन मुकेश सहनी महागठबंधन की ओर जाते हैं तो मल्लाह वोट बंटेगा जिसका नुकसान बीजेपी और महागठबंधन दोनों को हो सकता है।
एनडीए और महागठबंधन दोनों तरफ से चुनाव लड़ चुके हैं मुकेश सहनी
मुकेश सहनी 2018 से पहले तक मल्लाह को एससी का दर्जा देने की मांग के साथ बीजेपी के लिए काम कर रहे थे। बीजेपी ने सहनी को 2014 के लोकसभा और 2015 के विधानसभा चुनाव में इस्तेमाल किया। एससी दर्जा पर बात बढ़ी नहीं तो मुकेश सहनी ने 2018 में अपनी पार्टी विकासशील इंसान पार्टी बना ली। 2019 के लोकसभा चुनाव में सहनी महागठबंधन के साथ लड़े। तीन सीट मिली, तीनों हारे, खुद मुकेश सहनी भी नहीं जीत पाए। 2020 के विधानसभा चुनाव में आरजेडी नेता तेजस्वी यादव के प्रेस कॉन्फ्रेंस में ही महागठबंधन का साथ छोड़कर चले गए। फिर बीजेपी ने 11 सीट देकर एनडीए में बुलाया। चार विधायक भी जीते।
लेकिन पहले स्थानीय निकाय की 24 विधान परिषद सीटों के चुनाव में एनडीए के खिलाफ उतरना और फिर उत्तर प्रदेश जाकर विधानसभा चुनाव लड़ना उन्हें बहुत महंगा पड़ा। बीजेपी ने उनके बचे हुए तीन विधायक को भाजपा में शामिल कर लिया। तीनों विधायकों ने शामिल होने के बाद कहा था कि वो बीजेपी के नेता थे, वीआईपी के सिंबल पर लड़े और जीते थे। मुकेश सहनी ने गठबंधन धर्म के खिलाफ काम किया इसलिए वो अपने मूल घर भाजपा लौट आए हैं। और इस तरह मुकेश सहनी की पार्टी विधानसभा में जीरो हो गई।
बीजेपी के हाथों सारे विधायक गंवा चुके मुकेश सहनी के वापस महागठबंधन की तरफ जाने की अटकल थी लेकिन फरवरी में जब उनको केंद्र सरकार ने वाई प्लस कैटेगरी की सुरक्षा दी गई तो संकेत मिला कि सहनी बीजेपी के संपर्क में हैं और 2024 के चुनाव में वो नरेंद्र मोदी के लिए वोट मांगते नजर आ सकते हैं। तब से सहनी एनडीए गठबंधन के दरवाजे पर खड़े दिख रहे हैं लेकिन उनकी शर्तें ऐसी है कि बीजेपी गेट नहीं खोल रही है। मौजूदा हाल यही है कि मुकेश सहनी को भले बीजेपी की मेहरबानी से वाई प्लस सिक्योरिटी मिल गई हो लेकिन एनडीए में एंट्री मिलना श्योर नहीं है।
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