जब से राज्यसभा के डिप्टी चेयरमैन और जेडीयू सांसद हरिवंश नारायण सिंह पटना आकर बिहार के सीएम नीतीश कुमार से मिलकर दिल्ली लौटे हैं, तब से बिहार में एक नई हवा बनाई जा रही है कि जेडीयू एक बार फिर बीजेपी से हाथ मिलाकर एनडीए में लौट सकती है। यही सवाल बिहार में महागठबंधन की सबसे बड़ी पार्टी आरजेडी के अध्यक्ष से पूछा गया तो लालू यादव ने कहा- नीतीश जी कहीं नहीं जा रहे हैं। बीजेपी धीरे-धीरे कमजोर हो रही है और खत्म हो जाएगी। हरिवंश के पहले यह हवा तब से बन रही थी जब 28 जून को नीतीश और बीजेपी नेता सुशील मोदी राज्यपाल से मिलने एक ही दिन राजभवन पहुंचे थे और दोनों के आने-जाने के बीच में अंतराल कम था।
नीतीश जब 2022 में बीजेपी को छोड़ महागठबंधन में आ गए थे तो नई सरकार बनने के बाद 17 अगस्त को पहली बार पटना पहुंचे लालू यादव से मिलने राबड़ी देवी के आवास गए थे। तब लालू ने नीतीश से कहा था- अब ऐने-ओने मत जईह, तुही सबके गार्जियन बाड़अ, सबके साथ लेके चलिहा। भोजपुरी में कही गई इस बात का मतलब है कि लालू ने नीतीश से कहा था कि अब इधर-उधर मत जाइएगा, आप सबके गार्जियन हैं और आपको सबको साथ लेकर चलना है।
नीतीश के फिर से बीजेपी से हाथ मिलाने की ताजा हवा चलने से एक साल पहले से ही जेडीयू में टूट के दावे चल रहे हैं जो अब तक टूट नहीं पाई है। अगस्त 2022 में आरसीपी सिंह जेडीयू से निकले तो लगा जेडीयू से कुछ लोग तो उनके साथ निकलेंगे लेकिन कोई चमकता चेहरा साथ नहीं गया। तब से जेडीयू में टूट के दावे किए जा रहे हैं।
नए संसद भवन के उद्घाटन के मौके पर जेडीयू के बहिष्कार के ऐलान के बाद भी संवैधानिक पद पर होने के कारण समारोह में शामिल हुए हरिवंश को कुछ दिनों से बीजेपी की तरफ झुका माना जाने लगा। इसलिए जब हरिवंश नीतीश से मिलने गोपनीय तरीके से पटना पहुंचे तो चर्चा उड़ गई कि वो बीजेपी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का नीतीश के लिए संदेशा लेकर आए थे। जेडीयू ने इन अटकलों को खारिज कर दिया और कहा कि नीतीश पार्टी के विधायकों और सांसदों से एक-एक करके मिल रहे थे और हरिवंश भी उसी सिलसिले में मिलने आए थे। जेडीयू के नेताओं ने बीजेपी के साथ वापस जाने के सवाल को हवाई बताते हुए कहा था कि नीतीश कुमार भाजपा को हराने के लिए शिद्दत से विपक्ष को एकजुट कर रहे हैं।
नीतीश कुमार पहली बार लालू यादव से 1994 में अलग हुए जब वो पटना में कुर्मी चेतना रैली में मना करने के बाद भी गए। तब लालू यादव जनता दल में थे और बिहार के ताकतवर मुख्यमंत्री थे। फिर नीतीश ने जॉर्ज फर्नांडीस के साथ मिलकर समता पार्टी बनाई। तब से 2015 तक नीतीश हमेशा लालू के खिलाफ रहे। 2015 में नीतीश और लालू दो साल से कुछ कम वक्त के लिए साथ आए जब आरजेडी और जेडीयू ने महागठबंधन बनाकर चुनाव लड़ा, चुनाव जीतकर सरकार बनाई। पांच साल बाद 2022 के अगस्त में लालू-नीतीश दूसरी बार साथ आए। दोनों इस समय विपक्षी एकता के अगुआ बने हुए हैं और देश के दूसरे विपक्षी दलों के सामने बिहार के महागठबंधन का मॉडल पेश करके कह रहे हैं कि सब एक साथ लड़ें तो बीजेपी हार सकती है।
नीतीश का बीजेपी से बहुत लंबे समय तक गठबंधन रहा है और ज्यादातर समय वो एनडीए विधायक दल के नेता के तौर पर ही मुख्यमंत्री रहे हैं। 1994 में समता पार्टी बनाने के बाद नीतीश की पार्टी 1995 का बिहार विधानसभा चुनाव लड़ी लेकिन मात्र 7 सीट जीत पाई। फिर बीजेपी के साथ गठबंधन हुआ और 1996 के लोकसभा चुनाव में समता पार्टी 8 सीट जीत गई। उसके बाद के सारे विधानसभा और लोकसभा चुनाव दोनों पार्टी साथ ही लड़े।
2003 में जब समता पार्टी का जेडीयू में विलय हो गया तो भाजपा-समता गठबंधन बदल कर भाजपा-जेडीयू गठबंधन हो गया। 17 साल के साथ के बाद नीतीश ने पहली बार बीजेपी का साथ 2013 में छोड़ा जब बीजेपी ने नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद का कैंडिडेट बनाया था। चार साल बाद बीजेपी और जेडीयू ने 2017 में वापस हाथ मिला लिया। इसके पांच साल बाद अगस्त 2022 में नीतीश ने दूसरी बार भाजपा के साथ गठबंधन तोड़ा।
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