यूनिवर्सिटी की कार्यशैली को लेकर कुलाधिपति और बिहार सरकार अब आमने सामने है. बिहार सरकार ने स्पष्ट कर दिया है कि पैसा अगर सरकार देगी तो सरकार का दिया दिशा-निर्देश भी मानना होगा. अगर यूनिवर्सिटी के पदाधिकारियों को सरकार की ओर से दिया गया दिशा-निर्देश नहीं मानना है तो यूनिवर्सिटी अपने फंड का इंतजाम खुद करे. शुक्रवार को यूनिवर्सिटी के वीसी और प्रोवीसी के वेतन रोकनेवाले केके पाठक के आदेश पर कुलाधिपति ने रोक लगा दी थी. लेकिन अब सरकार केके पाठक के समर्थन में उतर आयी है. सरकार ने कहा है कि अगर यूनिवर्सिटी को अपने तरीके से काम करना है, तो वह सरकार से पैसा लेना बंद कर दे. शिक्षा विभाग के अपर मुख्य सचिव केके पाठक ने समीक्षा बैठक बुलाई थी, जिसमें बिहार यूनिवर्सिटी के वीसी और प्रो वीसी शामिल नहीं हुए थे. इसके बाद केके पाठक के निर्देश पर शिक्षा सचिव वैजनाथ यादव ने वेतन रोकने और वित्तीय अधिकार निलंबित करने का आदेश जारी कर दिया था. राजभवन ने केके पाठक के इस आदेश को खारिज कर दिया है.
पूर्व शिक्षामंत्री व भवन निर्माण मंत्री अशोक चौधरी शनिवार को केके पाठक के समर्थन में खुलकर सामने आ गये. राजभवन ने बिहार के यूनिवर्सिटी को ऑटोनॉमस बडी यानि स्वायत्त संस्था करार दिया था, जिसका जवाब अशोक चौधरी ने दिया है. अशोक चौधरी ने पत्रकारों से बात करते हुए कहा कि जो पैसा देगा वो हिसाब भी लेगा. अशोक चौधरी ने आज कहा कि ऑटोनॉमस बॉडी का मतलब होता है कि 10 साल तक सरकार उसे मदद करेगी, फिर वह अपना खर्च खुद उठायेगा. लेकिन राज्य सरकार विश्वविद्यालयों को लगातार फंडिंग कर रही और उसी से विश्वविद्यालय का काम चल रहा है. राज्य सरकार अगर फंडिंग करेगी तो उसके गाइडलाइंस तो मानना ही पड़ेंगे. अगर कुलाधिपति यह चाहते हैं कि विश्वविद्यालय में राज्य सरकार का दखल न हो तो वह सरकार से फंड न लेकर खुद पैसे का इंतजाम करे.
राज्यपाल ने जतायी थी आपत्ति
अशोक चौधरी का यह बिहार के राज्यपाल और यूनिवर्सिटी के चांसलर के उस आदेश के बाद आया है जिसमें उन्होंने सरकार के फैसले को बदल दिया है. बिहार के राज्यपाल राजेंद्र विश्वनाथ अर्लेकर ने शुक्रवार को शिक्षा विभाग के आदेश पर कड़ी आपत्ति जताई थी. शिक्षा विभाग ने बिहार विश्वविद्यालय (मुजफ्फरपुर) के प्रभारी वीसी और प्रो-वीसी के वेतन को रोक कर उनकी वित्तीय शक्तियों और बैंक खातों को फ्रीज कर दिया गया था. इसके बाद राज्यपाल के प्रधान सचिव रॉबर्ट एल चोंगथु ने पत्र लिखकर कहा था कि बिहार सरकार के पास विश्वविद्यालयों का ऑडिट करने का अधिकार है, लेकिन वह यूनिवर्सिटी की वित्तीय शक्तियों और बैंक खातों को जब्त नहीं कर सकती है. बिहार राज्य विश्वविद्यालय अधिनियम, 1976 की धारा 54 में ये स्पष्ट है.
राजभवन की ओऱ से जारी पत्र में कहा गया था कि कुलपति और प्रतिकुलपति का वेतन रोकने, बैंक खातों को फ्रिज करने का फैसला मनमाना और अधिकार क्षेत्र से परे है. ये विश्वविद्यालय की स्वायत्तता पर हमला है और शिक्षा विभाग ने कुलाधिपति की शक्तियों का अतिक्रमण किया है. राजभवन ने स्पष्ट किया था कि यूनिवर्सिटी के प्रमुख कुलाधिपति होते हैं. वीसी या प्रो वीसी का वेतन रोकना राज्य सरकार के अधिकार में नहीं है. इसलिए शिक्षा विभाग आपना आदेश वापस ले और कुलपति के अधिकार क्षेत्र में घुसने या यूनिवर्सिटी के काम में दखलअंदाजी करने से परहेज करे. राज्यपाल के प्रधान सचिव ने बैंकों को पत्र लिख कर यूनिवर्सिटी के खातों को फ्रीज करने के शिक्षा विभाग के सचिव के आदेश को लागू नहीं करने का भी निर्देश दिया था.
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