बिहार में कृष्ण जन्माष्टमी कब है, आज या कल कब मनाया जाएगा पर्व? यहां देखें सही जानकारी…
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इस साल श्रीकृष्ण जन्माष्टमी कब है? यह सवाल आपके भी मन में कौंध रहा होगा। क्योंकि बिहार समेत देशभर में 6 और 7 सितंबर, दोनों दिन जन्माष्टमी मनाने की बात कही जा रही है। ऐसे में भक्तों में जन्माष्टमी की तारीख को लेकर संशय है। बिहार में जन्माष्टमी का पर्व कब मनाया जाएगा, इस बारे में अगर कंफ्यूजन है तो इस खबर में उसे दूर करने की कोशिश की गई है। यहां देखें कि बिहार में जन्माष्टमी कब मनाई जाएगी, शुभ मुहूर्त क्या है, चंद्रोदय का समय क्या है और वृत का पारणा कैसे करना है।
जन्माष्टमी पर इस बार द्वापर जैसे योग बन रहे हैं। जो योग श्रीकृष्ण जन्म के समय थे ठीक वैसे ही। इसमें महत्वपूर्ण भूमिका बुधवार की है। बुधवार, भाद्रमास की कृष्णपक्ष की अष्टमी और रोहिणी नक्षत्र। इन्हीं मंगलकारी योग में श्रीकृष्ण का जन्मावतार हुआ था। यह सभी योग इस बार 6 सितंबर को हैं। जन्माष्टमी का पर्व सदा से दो दिन का होता है। इसलिए 6 और 7 सितंबर दोनों दिन श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का पर्व होगा।
अष्टमी के साथ रोहिणी नक्षत्र
इस बार 6 सितंबर बुधवार को दोपहर 3.37 बजे से अष्टमी तिथि का प्रारंभ होगा। अष्टमी तिथि 7 सितंबर को शाम 4.14 बजे तक व्याप्त रहेगी। इसी प्रकार रोहिणी नक्षत्र (इसी नक्षत्र में भगवान श्रीकृष्ण का जन्म हुआ था) 6 सितंबर की सुबह 9.19 बजे से 7 सितंबर को 10.24 बजे तक रहेगा। बुधवार का सुयोग भी 6 सितंबर को ही मिल रहा है। इसलिए अधिकांश ज्योतिषियों की राय में 6 सितंबर को ही जन्माष्टमी का पर्व मनाना उचित है।
जन्माष्टमी पर चंद्रोदय और छुट्टी कब है?
6 सितंबर को चंद्रोदय रात 10.57 बजे और 7 सितंबर को रात्रि 11.45 बजे होगा। व्रत परायण और चंद्रोदय के समय मध्यरात्रि अष्टमी 6 सितंबर को होगी। यूं तो जन्माष्टमी दो दिन होती है। लेकिन इस बार सरकारी कैलेंडर और पंचांग में मेल नहीं है। जन्माष्टमी की सरकारी छुट्टी 7 सितंबर की है जबकि जन्माष्टमी का व्रत 6 सितंबर को है। ठाकुर जी का अभिषेक और शृंगार 6 सितंबर को अष्टमी के शुभारंभ पर अपराह्न 3.37 बजे भगवान मधुसूदन यानीश्रीकृष्ण का शृंगार किया जाना चाहिए। यह स्वागत होगा भगवान श्रीकृष्ण का। रात को 12 बजे जन्मोत्सव के समय लड्डूगोपाल जी का पहले गंगाजल और उसके बादपंचामृत से स्नान कराना चाहिए। फिर श्रृंगार करके आरती करें और व्रत परायण करें।
जन्माष्टमी पर इस बार द्वापर जैसे योग बन रहे हैं। जो योग श्रीकृष्ण जन्म के समय थे ठीक वैसे ही। इसमें महत्वपूर्ण भूमिका बुधवार की है। बुधवार, भाद्रमास की कृष्णपक्ष की अष्टमी और रोहिणी नक्षत्र। इन्हीं मंगलकारी योग में श्रीकृष्ण का जन्मावतार हुआ था। यह सभी योग इस बार 6 सितंबर को हैं। जन्माष्टमी का पर्व सदा से दो दिन का होता है। इसलिए 6 और 7 सितंबर को श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का पर्व होगा।
6 सितंबर को मध्यरात्रि में भगवान श्रीकृष्ण का प्रकाट्योत्सव के बाद ही जन्माष्टमी के व्रत का परायण होता है। यह सबसे बड़ा और लंबा व्रत होता है। इस बार व्रत के परायण समय चंद्रमा अपनी उच्च राशि वृष में रहेंगे। ज्योतिषियों की राय में वैष्णवजन उदयकालीन अष्टमी के मुताबिक 7 सितंबर को जन्माष्टमी का पर्व कर सकते हैं।
दो दिन का शुभ मुहूर्त
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी को लेकर इस बार भी तिथि भ्रम है। चूंकि यह पर्व दो दिन होता आया है इसलिए स्मार्त के लिए 6 और वैष्णव के लिए 7 सितंबर को जन्माष्टमी का पर्व मनाने की व्यवस्था दी जा रही है। पंडितों के अनुसार मध्यरात्रि में अष्टमी के संयोग से ही जन्माष्टमी होती है क्योंकि भगवान श्रीकृष्ण का जन्म रात के 12 बजे माना गया है।