बिहार में कराई गई जातिगत जनगणना भाजपा को कतई रास नहीं आ रही है। इस मामले को भाजपा केंद्रीय स्तर पर ज्यादा भाव नहीं दे रही है। हालांकि बिहार के भाजपा नेताओं ने इसकी खामियां जरूर बताई हैं। उनका कहा है कि इसमें वर्तमान सामाजिक और आर्थिक स्थितियां नहीं दिखाई गई हैं। 2024 के चुनाव में भाजपा सवर्ण वोट के दम पर ही अपना प्रदर्शन दोहराने का प्लान बना रही थी। हालांकि 2019 के मुकाबले इस बार स्थितियां काफी बदल गई हैं। 40 लोकसभा सीटों वाले बिहार में एनडीए ने नीतीश कुमार और लोक जनशक्ति पार्टी को साथ लेकर 39 सीटों पर कब्जा कर लिया था। हालांकि अब ऐसा करने के लिए उसे छोटे दलों की जरूरत होगी।
बीते दिनों आरजेडी सांसद मनोज झा ने राज्यसभा में एक कविता सुना दी। कविता का शीर्षक था ‘ठाकुर का कुआं।’ इस कविता को लेकर तब बवाल हो गया जब आनंद मोहन के बेटे ने इसे जातीय रंग दे दिया। उन्होंने कहा कि यह कविता सुनाकर मनोज झा ने ठाकुरों का अपमान किया है। आरजेडी नेता आनंद मोहन के बेटे चेतन आनंद ने कहा था कि झा ब्राह्मण हैं इसलिए ठाकुरों पर कविता पढ़ी है। मनोज झा के बचाव में लालू यादव भी आ गए। फिलहाल भाजपा की बात करें तो इस तरह से सवर्ण वोट बैंक में फूट पड़ सकती है। अब अगर भाजपा को फायदा लेना है तो इस स्थिति से बेहद संभलकर निपटना होगा और ब्राह्मण, ठाकुर दोनों का साथ बनाए रखना होगा।
जातिगत जनगणना को लेकर राज्य में भाजपा इकाई के अध्यक्ष सम्राट चौधरी ने कहा, हम पहले इन आंकड़ों का विस्तार से विश्लेषण करेंगे। इसके बाद ही नीति को लेकर कोई बात कही जा सकती है। सूत्रों का कहना है कि इस मामले को लेकर राज्य के नेता केंद्रीय नेतृत्व के संपर्क में हैं। उसे उम्मीद है कि केंद्र की तरफ से ही रोहिणा कमीशन की सिफारिश पर भी कुछ ऐक्शन लिया जा सकता है जिसमें जातिगत संख्या के आधार पर केंद्र की नौकरियों में ओबीसी और ईबीसी का कोटा निर्धारित करने की बात कही गई थी।
वहीं बिहार में असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी भी भाजाप के लिए मुश्किल बन सकती है। विधानसभा चुनाव के दौरान एआईएमआईएम ने 6 सीटें जीती थी। वह अलग बात है कि बाद में उनके विधायक आरजेडी के साथ हो लिए। हालांकि ओवैसी ध्रुवीकरण का काम करते हैं और ऐसे में वे मुस्लिम वोट पर हाथ मार सकते हैं। वहीं जो छोटी पार्टियां अब एनडीए में नहीं हैं उनसे निपटने के लिए भी भाजपा का ज्यादा प्रयास करना होगा। इसमें विकासशील इंसान पार्टी भी शामिल है। जनगणना के आधार पर बिहार में मल्लाह का प्रतिशत 3.3 है। ऐसे में सहनी की पार्टी इस वोट बैंक पर हाथ साफ करने की कोशिश करेगी।
अब भाजपा को अपने सहयोगी दलों के साथ अच्छी केमिस्ट्री के लिए रणनीति तैयार करनी होगी। वहीं बात करें अनुसूचित जाति की कुछ महादलित जातियों की तो इनपर बीएसपी की भी पकड़ मजबूत हो सकती है। उनको बिहार में 5.3 फीसदी आबादी का सपोर्ट मिल सकता है।
बता दें कि जातिगत जनगणना के आंकड़ों के मुताबिक हिंदू आबादी 81.99 फीसदी, मुस्लिम 17.70 फीसदी, ईसाई 0.05, सिख 0.01, बौद्ध 0.08, जैन 0.009 और अन्य धर्मों के लोग 0,12 फीसदी हैं। इसमें अति पिछड़ा वर्ग की आबादी सबसे ज्यादा 36.01 फीसदी है। पिछड़ा वर्ग 27.12 फीसदी और अनुसूचित जाति की आबादी 19.65 फीसदी है। वहीं सामान्य वर्ग 15.52 फीसदी है। यह सामान्य वर्ग भाजपा का मजबूत वोट बैंक हुआ करता था। वहीं अति पिछड़ा वर्ग पर नीतिश कुमार की पकड़ है।
राजनीतिक पंडितों का कहना है कि जातिगत जनगणना करवाकर आरजेडी और जेडीयू ने बड़ा गेम खेल दिया है। राज्य में हिंदू मुस्लिम की राजनीति को भी बड़ा झटका लग सकता है। भाजपा की पकड़ ओबीसी वोटों पर मजबूत नहीं है। ऐसे में भाजपा के लिए नई चुनौती खड़ी हो गई है। अगर विपक्ष जातिगत जनगणना को ही मुद्दा बना लेता है तो लोकसभा चुनाव में भाजपा को नुकसान हो सकता है।
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