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INDIA गठबंधन की बैठक टली, ममता-नीतीश-अखिलेश के इनकार के बाद खड़गे का फैसला

देश के पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव के बाद अब विपक्षी गठबंधन ‘INDIA’ की बैठक होनी है. चुनाव के पहले इन राज्यों में बेहतर नतीजों की मंशा से कांग्रेस अपनी बार्गेनिंग पावर बढ़ाने की सोच रही थी, लेकिन राजस्थान, छत्तीसगढ़ की सत्ता गंवाने और मध्य प्रदेश में मिली हार के बाद कांग्रेस के लिए सियासी जमीन तंग हो गई है. वहीं, विपक्षी गठबंधन INDIA के पक्ष में पहले जो सियासी माहौल बना हुआ था, वो अब फीका पड़ गया है. कांग्रेस को उम्मीद थी कि पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में बेहतर प्रदर्शन करके INDIA गठबंधन की ड्राइविंग सीट अपने नाम कर लेगी, पर नतीजे के बाद अब उसकी दावेदारी करने की स्थिति नहीं रह गई.

कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने विपक्षी गठबंधन INDIA के सभी 28 घटक दल की बुधवार को बैठक बुलाई थी. पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और टीएमसी मुखिया ममता बनर्जी ने अपने तय कार्यक्रम का हवाला देकर विपक्षी गठबंधन की बैठक में शामिल होने से मना कर दिया है. उन्होंने कहा कि मुझे INDIA गठबंधन की बैठक के बारे में नहीं पता और न ही कोई फोन आया. बंगाल में दो दिन का कार्यक्रम पहले से तय है, जिसमें शामिल होना है.

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ममता बनर्जी से लेकर अखिलेश यादव और नीतीश कुमार तक ने बैठक में खुद शरीक होने के बजाय अपनी पार्टी के नेताओं को भेजने का फैसला किया था, लेकिन जिस तरह से एक के बाद एक दल बैठक से अपने कदम पीछे खींच रहे थे. ऐसे में क्या यही वजह है कि कांग्रेस को ये बैठक स्थागित करनी पड़ी है. विपक्षी गठबंधन की बैठक अब कब होगी, इसकी तस्वीर साफ नहीं है.

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विपक्षी गठबंधन INDIA के शिल्पकार माने जाने वाले नीतीश कुमार खुद शिरकत करने से मना कर दिया था. ममता बनर्जी ही नहीं सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने भी खुद शिरकत करने के बजाय सपा के महासचिव राम गोपाल यादव को भेजने का फैसला किया है. बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भी अपनी जगह पर जेडीयू अध्यक्ष लल्लन सिंह और संजय झा को बैठक में भेज रहे हैं. ऐसे में ये बात साफ है कि INDIA गठबंधन में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है. मध्य प्रदेश चुनाव में सीट शेयरिंग को लेकर कांग्रेस और अखिलेश के बीच दरार पैदा हो गई थी जबकि ममता बनर्जी पहले ही लेफ्ट के साथ दोस्ती के लिए तैयार नहीं है.

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विपक्षी गठबंधन INDIA की ये बैठक 31 अगस्त और 1 सितंबर को मुंबई में हुई पिछली बैठक के बाद तीन महीने के अंतराल के बाद हो रही थी. लेकिन, विपक्षी गठबंधन के तीन प्रमुख सहयोगी दल के नेता शिरकत करने से मना कर दिया, जिसके चलते कांग्रेस को बैकफुट पर आना पड़ा और बैठक को स्थागित करनी पड़ गई.

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2024 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी का मुकाबला करने के लिए देश भर के विपक्षी दलों को एक जुट करने की कवायद 23 जून को पटना में शुरू हुई थी. नीतीश कुमार की अगुआई में हुई पहली बैठक में विपक्षी दलों को एक मंच पर लाने की पठकथा लिखी गई. विपक्षी दलों ने एक साथ मिलकर चुनाव लड़ने के लिए रजामंद हुए. इसके बाद फिर 17-18 जुलाई को बेंगलुरू में हुई दूसरी बैठक में विपक्षी गठबंधन को इंडियन नैशनल डेवलपमेंट इन्क्लूसिव अलायंस (INDIA) का नाम दिया गया था.

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अगस्त के आखिर में मुंबई में हुई तीसरी बैठक में समन्वय की विभिन्न कमिटियां बनी थीं और कुछ साझा फैसले भी हुए थे, जिन पर अभी तक जमीनी अमल नहीं हो पाया. पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव के चलते विपक्षी गठबंधन की बैठक नहीं हो रही थी, जिसे लेकर नीतीश कुमार ने अपनी नाराजगी जाहिर की थी. लोकसभा चुनाव का सेमीफाइनल कहे जा रहे पांच राज्यों के चुनाव INDIA की पहली बड़ी परीक्षा थे. इसमें ही बिखराव व टकराव सतह पर आ गया। गठबंधन में शामिल दलों ने एक-दूसरे के खिलाफ ताल ठोंकी.

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‘कांग्रेस की हार उसके ‘घमंड’ की वजह से हुई’

पांच चुनाव के नतीजे आए तो नीतीश कुमार के जेडीयू ने कहा है कि कांग्रेस की हार उसके ‘घमंड’ की वजह से हुई है. टीएमसी ने कहा है कि उसकी यह हार ‘ज़मींदारी एटीट्यूड’ की वजह से हुई है. नेशनल कॉफ्रेंस के नेता उमर अब्दुल्ला ने भी कांग्रेस को लेकर अलोचना की है. ऐसे में ममता बनर्जी से अखिलेश का किनारा करना इसी का संकेत है. ममता और अखिलेश में समन्वय भी अच्छा है. ऐसे में वह भी उनकी राह पर आगे बढ़ सकते हैं.

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हार से INIDA गठबंधन में कमजोर हुई कांग्रेस

देश में सिर्फ कर्नाटक, तेलंगाना और हिमाचल प्रदेश तक सिमटने से विपक्षी गठबंधन INIDA में कांग्रेस की स्थिति कमतर हुई है. सपा और टीएमसी समेत क्षेत्रीय शक्तियों को लग रहा है कि जब कांग्रेस लगातार कमजोर हो रही है, तो उसके साथ बने रहने या उसे लोकसभा चुनाव में ज्यादा सीटें देने से कोई फायदा नहीं है. उमर अब्दुल्ला ने भी कटाक्ष किया है कि तीन माह बाद कांग्रेस को इंडिया गठबंधन की याद आई है, जब वह तीन राज्यों का चुनाव हार चुकी है.

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यूपी में कांग्रेस की जमीन सबसे कमजोर है और निर्भरता सपा सहित दूसरे क्षेत्रीय दलों परहै. तीन राज्यों में हार के बाद संकट और गहरा गया है. ऐसे में तीन महीने पहले तक जो माहौल विपक्षी गठबंधन के पक्ष में दिख रहा था, वो तीन राज्यों में बीजेपी की जीत से फीका पड़ गया है. पीएम मोदी के सत्ता में हैट्रिक लगाने की बात विपक्ष के नेता भी दबी जुबान से करने लगे हैं. जेडीयू के सांसद सुनील कुमार पिंटू ने यहां तक कह दिया कि मोदी है तो मुमकिन है.

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