सुप्रीम कोर्ट का बिहार सरकार को आदेश, ‘सार्वजनिक डोमेन में रखें जाति सर्वेक्षण डेटा का ब्रेकअप…’
बिहार सरकार को सुप्रीम कोर्ट से बड़ी राहत मिली है. कारण, कोर्ट ने मंगलवार को बिहार सरकार को जाति आधारित सर्वेक्षण आंकड़ों के आधार पर आगे निर्णय लेने से रोकने से इनकार कर दिया. हालांकि कोर्ट ने पब्लिक डोमेन में डाले गए आंकड़ों के विभाजन की सीमा पर भी सवाल उठाया और कहा कि जाति आधारित सर्वे के आंकड़े सार्वजनिक होने चाहिए.
न्यायमूर्ति संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता की पीठ ने कहा, “अगर कोई निकाले गए किसी विशेष निष्कर्ष को चुनौती देने को इच्छुक है तो वह उस डेटा प्राप्त करने में सक्षम होना चाहिए.”
संक्षिप्त सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता राजू रामचंद्रन ने अंतरिम निर्देश की मांग की और कहा कि रिपोर्ट को लागू करने और आरक्षण को 50 से बढ़ाकर 70 प्रतिशत करने की तत्काल आवश्यकता है और इसे पटना हाईकोर्ट के समक्ष चुनौती दी गई है.
इस पर जस्टिस खन्ना ने कहा, “सर्वेक्षण रिपोर्ट से ज्यादा मुझे इस बात की चिंता थी कि यह डेटा का विभाजन है, जो आम तौर पर जनता के लिए उपलब्ध नहीं कराया जाता है और इससे बहुत सारी समस्याएं पैदा होती हैं. एक बार आप सर्वेक्षण करने के हकदार हैं, लेकिन फिर डेटा के विश्लेषण को किस हद तक रोक सकते हैं.”
बता दें कि बिहार सरकार ने पिछले साल अक्टूबर में अपने सर्वेक्षण के नतीजे सार्वजनिक किए थे. बिहार सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ वकील श्याम दीवान ने पीठ को बताया कि सर्वेक्षण पब्लिक डोमेन में उपलब्ध है.
न्यायमूर्ति खन्ना ने मामले की सुनवाई 5 फरवरी तय करते हुए कहा, “लेकिन डेटा का विवरण आम तौर पर उपलब्ध कराया जाना चाहिए क्योंकि जब लोग किसी विशेष अनुमान को चुनौती देना चाहते हैं, तो उन्हें यह दिया जाना चाहिए, अगर कोई निकाले गए विशेष अनुमान को चुनौती देने को तैयार है तो उसे वह डेटा प्राप्त करने में सक्षम होना चाहिए.”
सुप्रीम कोर्ट पटना हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी. पटना हाईकोर्ट ने जाति-आधारित सर्वेक्षण करने के बिहार सरकार के फैसले को बरकरार रखा था.