मनरेगा में बीते वित्तीय वर्ष 2023-24 में महिलाओं की भागीदारी घट गयी है. दिव्यांगों की संख्या भी कम हो गयी है. एससी-एसटी परिवारों की संख्या बढ़ी है. मगर, इसमें मामूली इजाफा है. किसी परिवार को सौ दिनों तक काम करने का औसत इस साल भी एक फीसदी से कम है. बीते पांच वर्षों से एक फीसदी से भी कम परिवारों को सौ दिनों तक काम मिला. वित्तीय वर्ष 2023-24 में 0.69 फीसदी परिवारों ने ही सौ दिनों तक काम किया. इस वर्ष 47 लाख 46 हजार 59 में 32578 ने ही सौ दिनों तक काम किया. 2022-23 में 50 लाख 14 हजार 363 में 39 हजार 678 को हो सौ दिनों तक काम मिला. यह कुल संख्या का 0.79 प्रतिशत है. वर्ष 2021-22 में 47 लाख 75 हजार 783 में 21975 को ही सौ दिनों का काम मिला. यह कुल संख्या का 0.46 फीसदी है.
महिलाओं व दिव्यांगों की रुचि घटी
वित्तीय वर्ष 2022-23 में मनरेगा में महिलाओं के काम करने का प्रतिशत 56.19 था. जबकि वित्तीय वर्ष 2023-24 में यह घटकर 54.28 हो गया. इसमें लगभग दो फीसदी की कमी हुई है. 2021-22 में 53.19, 2020-21 में 54.63 प्रतिशत महिलाओं की भागीदारी थी. वित्तीय वर्ष 2023-24 में कुल 8971 दिव्यांगों को काम मिला. जबकि इसके पूर्व के वर्ष में 9281 दिव्यांगों ने काम किया था. वर्ष 2021-22 में 8548 दिव्यांगों ने काम किया. वर्ष 2023-24 में 20. 85 फीसदी एससी-एसटी परिवारों ने मनरेगा में काम किया. इससे पूर्व के साल में इनकी संख्या 19.22 प्रतिशत ही थी.
कम और देर से मजदूरी मिलने के कारण घटी दिलचस्पी
मनरेगा मजदूरों को इस साल लगभग जनवरी माह से मजदूरी नहीं मिली है. राज्य में मनरेगा मजदूरी इस साल 245 रुपये की गयी है. बीते चार वर्षों में 57 रुपये ही बढ़ाये गये हैं. बक्सर जिले के इटाढ़ी के मनरेगा मजदूर रामअवधेश प्रसाद ने बताया कि मनरेगा में मजदूरी काफी कम है. काम करने के बाद भी पैसे के लिए राह देखनी पड़ती है. भोजपुर के राजापुर गांव के विष्णु कुमार ने बताया कि मनरेगा में मजदूरी कम होने की वजह से उन्होंने काम करना छोड़ दिया.
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