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जानें बिहार में कब है सतुआन और जुड़ शीतल, क्या है इस पर्व का महत्व…

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सतुआन उत्तरी भारत के कई सारे राज्यों में मनाया जाने वाला एक प्रमुख पर्व है. यह पर्व गर्मी के आगमन का संकेत देता है. मेष संक्रांति के दिन ही सतुआन का पर्व मनाया जाता है. इस दिन सूर्य मीन राशि से मेष राशि में प्रवेश करता है. इस दिन भगवान को भोग के रूप में सत्तू अर्पित किया जाता है और सत्तू का प्रसाद खाया जाता है. यह खास त्यौहार बिहार, झारखंड, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल हिस्से में मनाया जाता है.बिहार में मिथिलांचल में इसे जुड़ शीतल नाम से जाना जाता है. कहा जाता है इस दिन से ही मिथिला में नए साल की शुरुआत हुई थी.

कब मनाया जाता है सतुआन

सतुआन पर्व बैसाख माह के कृष्णा पक्ष की नवमी को मनाया जाता है. माना जाता है कि इस दिन सूर्य भगवान अपनी उत्तरायण की आधी परिक्रमा को पूरी कर लेते हैं. हर साल यह पर्व 14 अप्रैल को मनाया जाता है. यह पर्व गर्मी के मौसम का स्वागत करता है. इस पर्व में प्रसाद के रूप में सत्तू खाया जाता है इसलिए इसका नाम सतुआन है. हम सभी जानते हैं कि गर्मी के मौसम में सत्तू कितना लाभदायक होता है. सत्तू हमारे शरीर को ठंडा रखने में मदद करता है. गर्मी के मौसम में अगर आप सत्तू खाते हैं तो ये आपके पेट को भरा- पूरा रखता है और आपको लू के चपेट से भी बचाता है.

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दक्षिण भारत में अलग नाम से मनाया जाता है यह पर्व

तमिलनाडु और कर्नाटक में इस खास दिन को विषु कानी पर्व के तौर पर मनाया जाता हैं. यह दक्षिण भारत में नव वर्ष का प्रतीक होता है. विषु कानी पर्व में कृषि खेतों में बुआई का उत्सव मनाते हैं. इस दिन श्रद्धालु सुबह उठकर स्नान के बाद सबसे पहले आस-पास के मंदिर में विष्णु देव के दर्शन करने जाते हैं. घरों में इस दिन नए अनाज से भोजन बनाया जाता है और विष्णु देव को 14 प्रकार के व्यंजनों का भोग लगाया जाता है.

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