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प्रियंका और राहुल गांधी के साथ लेकिन नहीं पकड़ पा रहे कांग्रेस का हाथ; पप्पू यादव पसोपेश में क्यों हैं?

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बिहार की पूर्णिया लोकसभा सीट पर इस बार राज्य का सबसे रोमांचक चुनावी मुकाबला निर्दलीय जीतकर छठी बार संसद पहुंचे राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव अजीब पसोपेश में हैं। लोकसभा चुनाव से पहले अपनी पार्टी जाप का कांग्रेस में विलय कर चुके पप्पू यादव खुलकर प्रियंका गांधी और राहुल गांधी के साथ की बात तो कर रहे हैं लेकिन कांग्रेस में शामिल नहीं हो पा रहे हैं।

जाप के विलय के बाद उन्होंने कांग्रेस की सदस्यता नहीं ली थी। पप्पू को उम्मीद थी कि 2019 की तरह 2024 में भी कांग्रेस को पूर्णिया सीट मिलेगी और उनको टिकट मिल जाएगा लेकिन लालू और तेजस्वी यादव ने लंगड़ी मार दी। आरजेडी ने जेडीयू से बुलाकर रुपौली की विधायक बीमा भारती को टिकट दे दिया जिनकी पप्पू ने जमानत जब्त करा दी। पप्पू ने जेडीयू के दो बार के सांसद संतोष कुशवाहा को 23847 वोटों के अंतर से हराया है।

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सोशल मीडिया पर लोग पप्पू यादव में बिहार कांग्रेस अध्यक्ष खोजने लगे हैं जिस पद पर इस समय आरजेडी में लालू यादव के वफादार रहे अखिलेश प्रसाद सिंह विराजमान हैं। पप्पू ने सोमवार को दिल्ली में मीडिया से बातचीत में कहा- “हम कांग्रेसी अभी हैं ही ना। अभी तक तो निकाला नहीं गया है। हम निर्दलीय हैं। जो होगा, जब होगा, तब देखा जाएगा। अभी कोई बातचीत नहीं हुई है। हमारे नेता प्रियंका गांधी और राहुल गांधी का आशीर्वाद और भरोसा मेरे साथ है। जब दोनों से मुलाकात होगी फिर बताएंगे।”

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असल में पप्पू यादव और कांग्रेस के बीच में दलबदल विरोधी कानून (एंटी डिफेक्शन लॉ) की दीवार खड़ी हो गई है। इस कानून के मुताबिक कोई निर्दलीय लोकसभा या विधानसभा का चुनाव जीतने के बाद किसी पार्टी की सदस्यता लेता है तो उसकी सांसदी या विधायकी खत्म हो जाएगी। पप्पू यादव इसी पसोपेश में हैं जिसका समाधान वो राहुल और प्रियंका से मुलाकात के बाद हासिल कर लेंगे। माना जा रहा है कि पप्पू यादव कांग्रेस में शामिल नहीं होंगे और बतौर निर्दलीय सांसद कांग्रेस और इंडिया गठबंधन के बाकी सांसदों के साथ सदन में स्टैंड लेंगे।

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इस बार लोकसभा में एक-एक सीट का कितना महत्व है, इसे इस बात से समझा जा सकता है कि जिन धर्मेंद्र प्रधान का ओडिशा में सीएम बनना तय था उनको सीएम बनाने का विचार भाजपा ने त्याग दिया है। प्रधान की लोकसभा सीट भाजपा खाली करने का रिस्क नहीं उठाना चाहती। प्रधान को एक बार फिर मोदी सरकार में कैबिनेट मंत्री बनाया गया है। उप-चुनाव में क्या नतीजा होगा, इसका भरोसा नहीं है। ऐसे में मामूली अंतर से जीते पप्पू यादव कांग्रेस में शामिल होने के चक्कर में पूर्णिया से अभी दोबारा चुनाव लड़ने का रिस्क नहीं लेंगे और बतौर निर्दलीय सांसद अपने दिल की बात करते रहेंगे।

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चलते-चलते यह भी बता दें कि पप्पू यादव की पत्नी रंजीत रंजन कांग्रेस की राष्ट्रीय सचिव और हिमाचल प्रदेश की प्रभारी हैं। सहरसा और सुपौल से क्रमशः लोजपा और कांग्रेस के टिकट पर दो बार लोकसभा पहुंच चुकीं रंजीत रंजन इस समय छत्तीसगढ़ से राज्यसभा सांसद हैं। पप्पू की कांग्रेस से नजदीकी की एक वजह उनकी पत्नी भी हैं। पप्पू यादव पूर्णिया से कुल चार बार सांसद रहे हैं जिसमें पहली बार समेत तीन बार निर्दलीय ही जीते हैं। दो बार पप्पू यादव मधेपुरा से आरजेडी के टिकट पर सांसद बने हैं। लालू चाहते थे कि पप्पू इस बार भी मधेपुरा से लड़ें लेकिन वो अपनी पुरानी सीट पूर्णिया को मां बताकर वहीं से लड़ने पर आमादा थे। पप्पू ने कहा था कि पूर्णिया से अब उनकी लाश ही निकलेगी।

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