काराकाट से लोकसभा चुनाव हारने के बाद RLM के राष्ट्रीय उपेंद्र कुशवाहा को अब एनडीए की ओर से राज्यसभा के लिए उम्मीदवार बनाया गया है। एक मीडिया चैनल से बात करते हुए बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष और डिप्टी सीएम सम्राट चौधरी ने इसकी पुष्टि की है।
लोकसभा में पाटलिपुत्र से मीसा भारती और नवादा से विवेक ठाकुर के सांसद बनने के बाद राज्यसभा की दो सीटें खाली हुई है। उपेंद्र कुशवाहा ने भी राज्यसभा उम्मीदवार बनाए जाने पर पीएम मोदी और NDA के सहयोगी दलों को धन्यवाद दिया है।
नीतीश कुमार और उपेंद्र कुशवाहा बिहार की सियासत में वो दो नाम हैं, जिन्होंने लव-कुश (कोइरी-कुर्मी) सियासत को एक नई ऊंचाई दी। कॉलेज की पढ़ाई पूरी कर उपेंद्र कुशवाहा अपने गृह जिले वैशाली के जंदाहा कॉलेज में लेक्चरर बन गए थे, लेकिन नीतीश कुमार की राजनीति का उन पर इतना गहरा असर पड़ा कि उपेंद्र सिंह से वे उपेंद्र कुशवाहा बन गए।
2000 में पहली बार जंदाहा से विधानसभा का चुनाव लड़े और जीते भी। इस जीत के बाद वे नीतीश कुमार के करीबी में शूमार हो गए। 2004 में उन्हें नेता प्रतिपक्ष का जिम्मा मिला, लेकिन 2005 में सत्ता में आते ही उपेंद्र कुशवाहा और नीतीश कुमार के बीच दरार पड़ गई।
2005 में नीतीश कुमार से अलग होकर समता नाम की अपनी पार्टी बनाई। 2009 का चुनाव भी इसी पार्टी के बैनर तले लड़ा। हालांकि, उनके एक भी कैंडिडेट जमानत तक नहीं बचा पाए। 2010 में नीतीश के कहने पर वापस जदयू में शामिल हुए। इनाम में राज्यसभा की सीट मिली। लेकिन, तीन साल बाद फिर नीतीश से दूर हो गए। 2013 में रालोसपा नाम से अपनी नई पार्टी बनाई। 2014 में एनडीए में शामिल होकर चुनाव लड़े। काराकाट से खुद जीते और मोदी सरकार में मानव संसाधन राज्य मंत्री बने।
5 साल बाद फिर पाला बदले और 2019 का चुनाव महागठबंधन के साथ लड़े, लेकिन खुद दो जगह से लड़े और दोनों जगह से हार गए। 2020 के विधानसभा चुनाव में महागठबंधन से भी नाता टूटा। यहां भी मुंह की खाए। हार कर फिर लौटे और 2021 में रालोसपा का जदयू में विलय करा दिया। इनाम में एमएलसी की सीट और जदयू संसदीय दल का अध्यक्ष का पद मिला। पहले डिप्टी सीएम बाद में मंत्री का पद नहीं मिलने पर फिर जदयू से अलग होकर 2023 में राष्ट्रीय लोक मोर्चा नाम की नई पार्टी बना ली।
क्या है कुशवाहा की ताकत
सभी पार्टियों ने भले अलग-अलग कुशवाहा नेताओं पर दांव लगाया, लेकिन बिहार में कुशवाहा के स्वीकार्य नेता अभी भी उपेंद्र कुशवाहा ही हैं। उपेंद्र कुशवाहा कभी भी मास लीडर नहीं रहे। उनकी पहचान एक कास्ट लीडर के रूप में है। बिहार में जातीय गणना की रिपोर्ट के मुताबिक बिहार में कुशवाहा की आबादी लगभग 4.2% है। कुशवाहा भले सीट जीत नहीं पाए, लेकिन सीट को हरवाने में वो सफल रहते हैं।
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