बांग्लादेश की राजधानी ढाका में हिंसा शुरू होने के बाद बिहार के मछली कारोबार पर बुरा असर पड़ा है। पिछले एक हफ्ते से कोसी, सीमांचल, मिथिलांचल, पूर्वी बिहार की मछलियां नहीं भेजी जा रही हैं। बांग्लादेश के आयातकों (इम्पोर्टर) ने शांति-व्यवस्था पटरी पर लौटने तक सौदा बंद कर दिया है। कई आयातकों ने कोलकाता स्थित एक्सपोर्टरों से कहा कि हालात ठीक होने पर दोबारा कारोबार करेंगे। अब सावन खत्म होने पर है। तीन दिन बाद बिहार में ही मछलियों की खपत बढ़ने लगेगी। ऐसे में स्थानीय मछलियां भरपूर मात्रा में बाजार में उपलब्ध रहेंगी।
बिहार राज्य मत्स्यजीवी सहयोग समिति के निदेशक नरेश सहनी ने बताया कि प्रतिदिन बंगाल के रास्ते बिहार से करीब 150 टन मछलियां बांग्लादेश जाती थीं। इसमें खगड़यिा, दरभंगा, मधुबनी, सुपौल, नवगछिया, कटिहार आदि से बड़े पैमाने पर निर्यात होती थीं। मत्स्य कृषकों को लोकल से अधिक कीमत भी मिल जाती थी और पैसा अग्रिम मिलता था। अब बांग्लादेश से अस्थायी रूप से संपर्क भंग है तो यहां की मछलियां पश्चिमी बंगाल और पूर्वोत्तर राज्यों में ही बेचनी पड़ेंगी। जिसकी कीमत बांग्लादेश के मुकाबले कम मिलेगी। इंटरनेशनल क्लेक्टिव इन सपोर्ट ऑफ फिश वर्कर्स (आईसीएसएफ) की रिपोर्ट के मुताबिक वित्तीय वर्ष 2022-23 में बांग्लादेश में 49 लाख टन की मछलियां खपत हुईं।
यहां की जरूरत के लिए डिपार्टमेंट ऑफ फिश अथॉरिटी, दिल्ली ने फ्रोजेन और ड्राई फिश 16 हजार टन बांग्लादेश को उपलब्ध कराया। इसके अलावा बिहार में 8.46 हजार टन उत्पादन से 16-17 प्रतिशत बांग्लादेश भेजा गया।
फिश इंपोर्ट एंड एक्सपोर्ट कंपनी से जुड़े श्यामल दास बताते हैं, बांग्लादेश का मुख्य आहार मछली है। यहां मछलियों की जरूरत की पूर्ति थाईलैंड से होती थी। पिछले पांच साल में थाईलैंड में मछली उत्पादन में बेतहाशा कमी आई तो पड़ोसी देश भारत से फिर आवक बढ़ गई। बंगाल से मछलियां कार्गो से एक्सपोर्ट होने लगी। ऐसे में बिहार से मछलियां मंगाकर बांग्लादेश भेजी गईं।
भागलपुर के जिला मत्स्य पदाधिकारी कृष्ण कन्हैया का कहना है कि इससे कोई असर नहीं पड़ेगा। उनका दावा है कि बांग्लादेश मछलियां नहीं जाएंगी तो यहां के बाजार में बिकेंगी। आंध्र प्रदेश से मछलियों की आवक कम होगी। इसका आर्थिक लाभ मछली विक्रेताओं को होगा। वे कहते हैं कि बिहार के मछली उत्पादकों को चिंता करने की जरूरत नहीं है।
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