Bihar

पीएम मोदी चाहते हैं…. दलित, पिछड़े और आदिवासी सचिवालय में नहीं बल्कि शौचालय में बैठें, नीतीश, मांझी और चिराग की भी यही मंशा: तेजस्वी यादव

केंद्र सरकार ने संघ लोक सेवा आयोग में लेटरल एंट्री को लेकर विज्ञापन जारी किया है। जिसको लेकर देश की सियासत गरमाई हुई है। विपक्ष इसको लेकर केंद्र सरकार को घेर रहे हैं। बिहार के नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव भी इसको लेकर केंद्र सरकार पर हमला बोला है। तेजस्वी ने अपने सोशल मीडिया पर ट्विट कर 18 बिंदुओं में अपनी बातों को सामने रखा है। साथ ही तेजस्वी यादव पीएम मोदी को लेकर कहा है कि वो चाहते हैं कि दलित, पिछड़े और आदिवासी सचिवालय में नहीं बल्कि शौचालय में बैठे।

तेजस्वी यादव ने ट्विट कर कहा कि, दलित, पिछड़े और आदिवासी सचिवालय में नहीं बल्कि शौचालय में बैठे- मोदी सरकार। साथ ही तेजस्वी ने 18 बिंदुओं में अपनी बातों को रखते हुए कहा है कि बीजेपी वाले उच्च सेवाओं में आरएसएस के लोगों को बिना परीक्षा दिए भरना चाहते हैं।

तेजस्वी ने कहा कि, 1. प्रधानमंत्री मोदी संविधान और आरक्षण को खत्म कर असंवैधानिक तरीके से लैटरल एंट्री के ज़रिए उच्च सेवाओं में 𝐈𝐀𝐒/𝐈𝐏𝐒 की जगह, बिना परीक्षा दिए 𝐑𝐒𝐒 के लोगों को भर रहे है।

𝟐. संविधान सम्मत उच्च सेवाओं में भर्ती संघ लोक सेवा आयोग द्वारा सिविल सेवा परीक्षा के माध्यम से होती है जिसमे प्रारंभिक, मुख्य परीक्षा एवं साक्षात्कार होता है। इसमें 𝐒𝐂 𝐒𝐓 𝐎𝐁𝐂 और 𝐄𝐖𝐒 के लिए रिजर्वेशन लागू होता है। लेकिन लेटरल एंट्री में भर्ती सिर्फ साक्षात्कार के माध्यम से हो रही है और बिना परीक्षा के। इसमें सभी लोग भाग भी नही ले सकते।

𝟑. प्रधानमंत्री मोदी आरक्षण विरोधी है इसलिए इन उच्च पदों में आरक्षण को खत्म करने के लिए इसे एकल पद दिखाया गया है जबकि कुल पद 𝟒𝟓 है। अगर इसमें आरक्षण लागू होगा तो इनमें से 𝟓𝟎% पद दलितों, पिछड़ों और आदिवासियों को मिलते। बिना परीक्षा की ऐसी सीधी नियुक्ति में 𝐒𝐂, 𝐒𝐓 और 𝐎𝐁𝐂 का सीधा 𝟏𝟎𝟎% नुक़सान हो गया है।

𝟒. 𝐍𝐃𝐀 समर्थित मोदी सरकार का यह फैसला गैरकानूनी है क्योंकि यह सरकार के खुद के 𝐃𝐎𝐏𝐓 द्वारा 𝟐𝟎𝟐𝟐 में जारी सर्कुलर का उल्लंघन है क्योंकि इसके अनुसार कोई भी टेम्परेरी भर्ती भी अगर 𝟒𝟓 दिन से ज्यादा है तो इसमे आरक्षण लागू करना अनिवार्य है।

𝟓. यह सरकार की नकारात्मक मानसिकता को दर्शाता है क्योंकि अधिकांश 𝐈𝐀𝐒 𝐈𝐏𝐒 अधिकारी देश के बड़े संस्थान जैसे 𝐈𝐈𝐓, 𝐈𝐈𝐌, 𝐀𝐈𝐈𝐌𝐒, 𝐉𝐍𝐔, 𝐈𝐈𝐒𝐂 से आते है। फिर इनमे से कई के पास निजी क्षेत्र की बड़ी कंपनियों में कार्य करने का अच्छा अनुभव भी है फिर भी सरकार बाहर के निजी क्षेत्र के लोगों को क्यों बुलाना चाहती है? यह संदेहास्पद है तथा सरकार की दलितों, पिछड़ों के प्रति नफ़रत को दर्शाता है।

𝟔. यह भाई-भतीजावाद एवं विशेष विचारधारा के लोगों की बैक डोर एंट्री है अन्यथा तो 𝐈𝐀𝐒 𝐈𝐏𝐒 में भर्ती युवा हर क्षेत्र के विशेषज्ञ है। जरूरत है सिर्फ सही अधिकारी की सही पोस्टिंग करने की। लेकिन पोस्टिंग के वक़्त मोदी सरकार अधिकारियों की जाति के आधार पर प्राथमिकता देती है उसी का कारण है कि केंद्रीय सरकार में सचिव स्तर पर 𝐒𝐂/𝐒𝐓 और 𝐎𝐁𝐂 अधिकारी ना के बराबर है।

𝟕. यह निर्णय समानता के सिद्धांत के खिलाफ है। एक 𝐈𝐀𝐒 अधिकारी को भी 𝐉𝐨𝐢𝐧𝐭 𝐒𝐞𝐜𝐫𝐞𝐭𝐚𝐫𝐲 (संयुक्त सचिव) बनने में कम से कम 𝟏𝟔 साल लगते है लेकिन लेटरल एंट्री में निजी क्षेत्र के व्यक्ति को 𝟏𝟓 साल सिर्फ किसी कंपनी में काम करने से सीधे 𝐉𝐨𝐢𝐧𝐭 𝐒𝐞𝐜𝐫𝐞𝐭𝐚𝐫𝐲 बनाने की तैयारी है।

𝟖. यह देश के भविष्य तथा देश की 𝟗𝟎 फ़ीसदी बहुजन आबादी के साथ खिलवाड़ और समझौता जैसा है क्योंकि 𝐉𝐒 (संयुक्त सचिव) स्तर पर सरकार की नीतियां बनती है और काफी संवेदनशील मुद्दे डील किये जाते है। यहाँ पर निजी क्षेत्र से लोगों को उठाकर सीधे भर्ती करना देश की आर्थिक, सामरिक एवं डिजिटल सुरक्षा एवं गोपनीयता के साथ समझौते जैसा हो सकता है।

𝟗. संविधान के ज़रिए 𝐔𝐏𝐒𝐂 की सिविल सेवा परीक्षा उत्तीर्ण कर संविधान की शपथ लेकर नियुक्त इस स्तर के 𝐈𝐀𝐒/𝐈𝐏𝐒 अधिकारी सरकार की मंशा अनुसार पूर्णतः ग़लत कार्य नहीं करेंगे इसलिए इन पदों पर खास विचारधारा के खास लोगों को रखा जा रहा है।

𝟏𝟎. इससे कंफ्लिक्ट ऑफ इंटरेस्ट (हितों का टकराव) भी पैदा होगा। अगर कोई टेलीकॉम कंपनी का अधिकारी आकर अगर संचार मंत्रालय में संयुक्त सचिव बनाया जाएगा तो इसकी पूरी संभावना है कि यह व्यक्ति अपनी कंपनी के अनुसार सरकारी नीतियां बनाकर उसे फायदा पहुचाने की कोशिश करेगा।

𝟏𝟏. यह एक गैर जिम्मेदाराना व्यवस्था है इसमें निजी क्षेत्र के व्यक्ति पर सरकार का कोई कंट्रोल नही होगा इससे ऐसी आशंका होगी कि वह व्यक्ति जिम्मेदारी और सत्यनिष्ठा के साथ काम नही कर पायेगा। अपने स्तर पर गलत कार्य कर ये निजी क्षेत्र के लोग देश छोड़ भाग जाएंगे अथवा भगा दिए जाएंगे।

𝟏𝟐. ऐसी व्यवस्था में नीतियां कारपोरेट को ध्यान में रखकर बनेगी ना कि गाँव, गरीब, ग्रामीण, किसान और आम जनमानस व देशहित को ध्यान में रखकर।

𝟏𝟑. पिछड़े, दलित और आदिवासियों को मोदी जी 𝐃𝐞𝐜𝐢𝐬𝐢𝐨𝐧 𝐌𝐚𝐤𝐢𝐧𝐠 और 𝐏𝐨𝐥𝐢𝐜𝐲 𝐌𝐚𝐤𝐢𝐧𝐠 में सम्मिलित क्यों नहीं करना चाहते?

𝟏𝟒. क्या मोदी जी और 𝐍𝐃𝐀 नेताओं को देश की आबादी के 𝟗𝟎 फ़ीसदी 𝐒𝐂/𝐒𝐓 और 𝐎𝐁𝐂 में विशेषज्ञ नहीं मिलते? अगर मिलते है तो फिर उन्हें आजादी के 𝟕𝟕 साल बाद भी अवसर क्यों नहीं मिलते तथा उनका प्रतिनिधित्व नगण्य क्यों है?

𝟏𝟓. यदि इन 𝐒𝐂/𝐒𝐓/𝐎𝐁𝐂 और सामान्य वर्ग के गरीब तबकों से विशेषज्ञ नहीं मिलते है तो उसकी दोषी भी यह सरकार है , अगर संविधान के मार्फ़त भी उन्हें अब मौक़ा नहीं मिलेगा तो फिर कब मिलेगा? क्या नीति निर्माण और निर्णय लेने वाले पदों पर फिर दलित पिछड़े कभी आ ही नहीं पायेंगे?

𝟏𝟔. अगर मेरे आरोप गलत है तो मैं मोदी सरकार को चुनौती देता हूँ कि 𝟐𝟎𝟏𝟖 से अब तक सैंकड़ों पदों को लैटरल एंट्री के द्वारा भरा गया इनमें से कितने 𝐒𝐂 𝐒𝐓 𝐎𝐁𝐂 की नियुक्ति की गयी? सरकार कुल नियुक्त आँकड़े और उनमें नियुक्त 𝐒𝐂 𝐒𝐓 𝐎𝐁𝐂 के आँकड़े बताएँ? कोई हुआ ही नहीं इसलिए सरकार कभी यह आँकड़ा नहीं देगी?

𝟏𝟕. दलितों, पिछड़ों और आदिवासियों का इन नियुक्तियों में आरक्षण समाप्त करवाने तथा संविधान प्रदत्त हक़-अधिकार छिनवाने में श्री चंद्रबाबु नायडू, नीतीश कुमार, जीतनराम माँझी, चिराग पासवान, अनुप्रिया पटेल, एकनाथ शिंदे, जयंत चौधरी सहित 𝐍𝐃𝐀 के सहयोगी दल भी बराबर के भागीदार एवं दोषी है।

𝟏𝟖. क्या लैटरल एंट्री के ज़रिए आरक्षण समाप्त कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, 𝐑𝐒𝐒 और एनडीए के लोग यह संदेश देना चाहते है कि दलित, पिछड़ा और आदिवासियों की जगह सचिवालय में बैठने की नहीं बल्कि शौचालय साफ़ करने में है?

 

Avinash Roy

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