न खतियान, न दस्तावेज, जमीन सर्वे में रैयतों को करना होगा अब बस ये काम
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बिहार में जमीन सर्वे का काम चल रहा है. हर दिन एक नयी समस्या सरकार और रैयतों के बीच देखने को मिल रही है. हजारों की संख्या में ऐसे रैयत सामने आ रहे हैं जिनके पास जमीन तो है, लेकिन उसके कागजात नहीं हैं. सरकार के पास भी उनकी जमीन से संबंधित कोई दस्तावेज नहीं है. सरकार ने ऐसे रैयतों को राहत देने के लिए अब नया फरमान निकाला है. जिन रैयतों के पास खतियान या कबाला दस्तावेज नहीं है, उन्हें अपनी बंदोबस्ती की रशीद जमा करनी होगी. अगर बंदोबस्ती रशीद भी उनके पास नहीं है तो उन्हें जमींदारी हस्तानांतरण के समय से अब तक उस जमीन पर शांतिपूर्ण कब्जा दिखाना होगा. ऐसे रैयतों को सरकार नये सिरे से जमीन बंदोबस्त करने पर विचार कर रही है.
दस्तावेज नहीं होने पर भी बंदोबस्त रहेगी जमीन
माना जा रहा है कि सरकार ने यह कदम जमीन विवादों को खत्म करने और लोगों को बंदोबस्ती हक दिलाने के लिए उठाया है. इस संबंध में जानकारी देते हुए भूमि राजस्व मंत्री दिलीप जायसवाल ने कहा कि कई लोगों के पास ज़मीन के पुराने दस्तावेज नहीं हैं. ऐसे लोगों को अब परेशान होने की जरूरत नहीं है. अगर कोई परिवार 50 साल से अधिक समय से किसी जमीन पर रह रहा है, तो उसकी बंदोबस्ती मानी जायेगी.
इसके लिए जरूरी नहीं कि उनके पास पुराने कागजात हों. उन्होंने कहा कि कई बार प्राकृतिक आपदाओं के कारण जरूरी कागजात खो जाते हैं. जैसे, बाढ़ से प्रभावित इलाकों में अक्सर कागजात खराब हो जाते हैं। कई बार दीमक या आग लगने से भी दस्तावेज नष्ट हो जाते हैं. ऐसा भी होता है कि सरकारी दफ्तरों में रिकॉर्ड ही नहीं मिलता. ऐसे मामलों में लोगों को दस्तावेज दिखाने की जरूरत नहीं होगी.
रसीद दिखाने से बच जायेगी बंदोबस्ती
विभागीय अधिकारी की माने तो एक रशीद दिखा देने से जमीन की बंदोबस्ती कायम रह जायेगी. अगर वो भी नहीं है तो 50 साल से जमीन पर कब्जा रहने का प्रमाण देना होगा. विभाग उसे ही बंदोबस्त मान लेगा. वंशावली के लिए भी अब आसान प्रक्रिया होगी. स्व-प्रमाणित वंशावली की तरह आपसी बंटवारा भी मान्य होगा, किसी और से प्रमाणित कराने की जरूरत नहीं होगी. सरकार का कहना है कि आपसी सहमति से बंटी हुई जमीन पर भी कोई आपत्ति नहीं है. इस सर्वे से लाखों लोगों को फायदा होगा.