मिथिला में माछ-मड़ुआ आज, महिलाएं कल से रखेंगी जितिया व्रत, जानें पूरी डिटेल्स…
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हिंदू धर्म में जीउतपुत्रीका व्रत महिलाओं के लिए बेहद कठिन व्रत माना जाता है. इस व्रत को महिलाएं निर्जला रहकर करती हैं. हर साल आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को जीवित्पुत्रिका व्रत या जीउतपुत्रीका व्रत करने का विधान है. महिलाएं इस दिन निर्जला व्रत रखती है. देश के अलग-अलग हिस्सों में इस व्रत को जिउतिया, जितिया, जीवित्पुत्रिका, जीमूतवाहन व्रत के नाम से जाना जाता है. इस साल मिथिला में यह व्रत 16 सितंबर 2022 को शुरू होगा और 19 सितंबर 2022 तक चलेगा.
व्रत के एक दिन पहले नाहा कर खाना जो स्त्री जितिया व्रत को रखती है, वह एक दिन पहले मड़ुआ की रोटी और मछली बनाती है. इस दिन मछली खाना जितना जरूरी माना गया है उतना ही अन्य महिलाओं में इसे बांटना भी शुभ माना गया है. वैसे वैष्णव महिलाएं पकवान बनाती है. सेघा नमक से तथा बिना लहसुन प्याज का खाना शुद्धता से बना कर खाती है. आइए जानते है तिथि और शुभ मुहूर्त से संबंधित पूरी जानकारी…
यहां करें व्रत को लेकर अपनी दुविध दूर
यह व्रत सप्तमी से रहित और उदयातिथि की अष्टमी को व्रत किया जाता है. यानि सप्तमी विद्ध अष्टमी, जिस दिन हो उस दिन व्रत नहीं करके शुद्ध अष्टमी को व्रत करें और नवमी तिथि में पारण करें. यदि इस पर ध्यान नहीं दिया गया तो व्रत का फल नहीं मिलता है.
मिथिला की महिलाएं 17 सितंबर को रखेगी जिवितपुत्रिका महाअष्टमी व्रत :
- इस साल 16 सितंबर 2022 दिन शनिवार को माछ मड़ुआ होगा.
- 17 सितंबर 2022 दिन रविवार को निर्जला व्रत रखा जाएगा.
- 18 सितंबर की शाम को 4 बजकर 39 मिनट के बाद पारण करेंगी
नोट: 18 सितंबर की शाम को 4 बजकर 39 मिनट के बाद पारण कर सकती है. इस व्रत में उनको सप्तमी युक्त अष्टमी तिथि मिलेगी. जो महिलाएं महालक्ष्मी की व्रत करती है, उनके लिए चंद्रोदय काल में अष्टमी तिथि मिल रही मिल रही है. उनके लिए यह व्रत शुभ है.
बिहार के अन्य जिलों में 18 सितंबर को महिलाएं करेंगी जिवितपुत्रिका व्रत :
- जिवितपुत्रिका व्रत की शुरुआत नहाय खाए से होती है.
- इस साल 17 सितंबर 2022 दिन शनिवार को नहाए खाए होगा.
- 18 सितंबर 2022 दिन रविवार को निर्जला व्रत रखा जाएगा.
- 19 सितंबर को व्रत का पारण किया जाएगा सूर्य उदय के बाद.
व्रत कैसे करें :
स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें. इसके बाद भगवान जीमूतवाहन की पूजा करें. इसके लिए कुशा से बनी जीमूतवाहन की प्रतिमा को धूप-दीप, चावल, पुष्प आदि अर्पित करें. इस व्रत में मिट्टी और गाय के गोबर से चील व सियारिन की मूर्ति बनाई जाती है. इनके माथे पर लाल सिंदूर का टीका लगाया जाता है. पूजा समाप्त होने के बाद जीवित्पुत्रिका व्रत की कथा सुनी जाती है. पारण के बाद यथाशक्ति दान और दक्षिणा दें.