राजस्थान में ‘दशरथ मांझी’ बने छात्र, टीचर का ट्रांसफर रुकवाने को 50 दिन में पहाड़ काटकर बनाया रास्ता
राजस्थान से बिहार के दशरथ मांझी जैसी कहानी सामने आई है। बिहार में पत्नी को खो देने के बाद दशरथ मांझी ने पहाड़ का सीना चीरकर गांव वालों के लिए रास्ता बनाया जबकि राजस्थान में दशरथ मांझी की भूमिका छात्रों ने निभाई और उन्होंने शिक्षा की चाह में पहाड़ काटकर शिक्षक के लिए रास्ता बनाया है।
राजस्थान में गांव वालों की मदद से छात्रों द्वारा पहाड़ काटकर रास्ता बनाने का मामला गुजरात सीमा के पास उदयपुर जिले के कोटड़ा उपखंड की ग्राम पंचायत खुणा के गांव पीपलीखेत का है। यह इलाका आदिवासी बाहुल्य है।
जानकारी के अनुसार 20 साल पहले गांव पीपलीखेत में राजकीय प्राथमिक विद्यालय खोला गया था, मगर स्कूल तक पहुंचने के लिए सुगम रास्ता नहीं है। ऐसे में कोई टीचर यहां थोड़े दिन रुकने के बाद ट्रांसफर करवा लेता था।
उदयपुर जिला मुख्यालय से 150 किलोमीटर दूर गांव पीपलीखेत के सरकारी स्कूल में शिक्षा विभाग ने संविदा पर शिक्षा मित्र लगा रखे थे। जून 2022 में यहां पर पहली बार स्थायी थर्ड ग्रेड टीचर समरथ मीणा को लगाया गया।
पड़ोसी जिले प्रतापगढ़ के अरनोद के रहने वाले समरथ मीणा स्कूल पहुंचे तो उन्हें सेई नदी पार करनी पड़ी और फिर पहाड़ का ऊबड़-खाबड़ रास्ता भी, जो करीब छह किलोमीटर लंबा था। सेई नदी में घुटनों तक पानी भरा हुआ था।
शिक्षक समरथ मीणा ने जैसे तैसे गांव पीपलीखेत के सरकारी स्कूल में एक साल गुजारा और फिर रास्ता नहीं होने की वजह से साल 2023 में यहां से ट्रांसफर का मन बनाया। जून 2023 में छात्रों ने ग्रामीणों को यह बात बताई। इस पर 24 जून 2023 को ग्रामीणों ने बैठक की, जिसमें शिक्षक समरथ मीणा को भी बुलाया।
बैठक में ग्रामीणों और विद्यार्थियों ने शिक्षक समरथ मीणा से उनके रास्ते वाली समस्या के समाधान के लिए तीन माह मांगे और फिर उनसे यहीं पर रहने की गुजारिश की। इस पर वे सहमत हो गए। ग्रामीणों ने उनसे वादा किया कि 15 अगस्त 2023 को वे बाइक से स्कूल तक आ जा सकेंगे। तब तक ग्रामीण रास्ता समतल कर देंगे।
टीचर से किए वादे को पूरा करने के लिए छात्र और ग्रामीण जी-जान से जुट गए। 35 लोगों की टीम बनाई और सबको अलग-अलग टास्क दिया। सबसे पहले गांव से स्कूल की ओर जाने वाले रास्ते से बड़े-बड़े पत्थर हटाए। फिर सुबह से शाम तक फावड़ा, गैंती, हथौड़ा आदि लेकर पहाड़ को काटकर रास्ता बनाया।
ग्रामीण 50 दिन रोजाना आठ घंटे मेहनत करते रहे। 15 अगस्त से पहले इस काम को पूरा कर लिया। फिर शिक्षक समरथ मीणा अपनी बाइक से ही स्कूल पहुंचे। ग्रामीणों व छात्रों की मेहनत को देखकर समरथ मीणा ने तय किया है कि वे यहां से ट्रांसफर नहीं करवाएंगे।
मीडिया से बातचीत में शिक्षक समरथ मीणा ने बताया कि मुझे 12 किलोमीटर का रास्ता बड़े संघर्ष से पार करना पड़ता था। पैदल नदी पार करने के बाद छह किमी का रास्ता पहाड़ से होकर गुजरता था। ग्रामीणों व छात्रों ने वो कर दिखाया जो सरकार भी नहीं कर पाई। इसलिए अब यहीं पर रहकर बच्चों को पढ़ाऊंगा।