बेंगलुरु में समस्तीपुर के रहने वाले इंजीनियर अतुल सुभाष का मामला लगातार सुर्खियों में है और लोगों के जहन में कई सवाल पैदा कर गया है। अतुल सुभाष द्वारा आत्महत्या से पहले बनाई गई वीडियो लोगों को झकझोर रही है कि आखिर हमारे समाज में पुरुषों के हिस्से न्याय क्यों नहीं आ पाता है। हर तरफ सिर्फ एक ही चर्चा है- जस्टिस इज ड्यू। सोशल मीडिया पर लोगों में आक्रोश साफ दिखाई दे रहा है।
बता दें कि अतुल पर उनकी पत्नी नीकिता सिंघानिया ने दहेज उत्पीड़न सहित कई और भी केस दर्ज करवाए थे। जिससे तंग आकर अतुल ने बेंगलुरु में अपने घर पर आत्महत्या कर ली। अतुल की आत्महत्या की जगह पर एक तख्ती भी पुलिस को मिली है जिस पर लिखा है- जस्टिस इज ड्यू, यानि इंसाफ अभी बाकी है।
अतुल सुसाइड मामले के बीच क्या बोला SC?
इस मामले के बीच सुप्रीम कोर्ट ने महिलाओं द्वारा दहेज कानून के गलत इस्तेमाल पर चिंता जताई है। कोर्ट ने कहा कि दहेज उत्पीड़न के मामलों में अदालतों को कानून का दुरुपयोग रोकने के लिए सावधानी बरतनी चाहिए। अदालत ने कहा कि पति के सगे-संबंधियों को फंसाने की प्रवृत्ति को देखते हुए निर्दोष परिवार के सदस्यों को अनावश्यक परेशानी से बचाना चाहिए।
24 पन्नों के सुसाइड नोट और 80 मिनट की वीडियो में दिखा दर्द
बेंगलुरु में 34 वर्षीय व्यक्ति की आत्महत्या के बाद दहेज निषेध कानून के दुरुपयोग पर देशभर में चल रही बहस के बीच सुप्रीम कोर्ट की यह टिप्पणी महत्वपूर्ण है। आत्महत्या से पहले अतुल सुभाष ने 80 मिनट का एक वीडियो रिकॉर्ड किया था, जिसमें उन्होंने अपनी अलग रह रही पत्नी निकिता सिंघानिया (atul subhash wife nikita singhania) और उसके परिवार पर पैसे ऐंठने के लिए उन पर कई मामले दर्ज करने का आरोप लगाया था। अतुल सुभाष ने अपने 24 पन्नों के सुसाइड नोट में हमारे सड़ते हुए सिस्टम, क्रूरता की हद तक सौदेबाजी में में बदल चुके रिश्ते, न्याय व्यवस्था का जीता-जागता सबूत पेश किया है।
अदालतों को बरतनी चाहिए सावधानी- SC
सुप्रीम कोर्ट की सख्त टिप्पणी तेलंगाना हाई कोर्ट के उस आदेश को खारिज करते हुए आई, जिसमें एक व्यक्ति, उसके माता-पिता और परिवार के अन्य सदस्यों के खिलाफ दहेज उत्पीड़न के मामले को खारिज करने से इनकार कर दिया गया था।
कोर्ट ने कहा कि एफआईआर की जांच से पता चलता है कि पत्नी के आरोप ‘अस्पष्ट’ थे। उन्होंने यह भी कहा कि कुछ आरोपियों का इस मामले से कोई संबंध नहीं है और बिना किसी कारण या तर्क के उन्हें अपराध में घसीटा गया है।
अदालत ने कहा, वैवाहिक विवाद से उत्पन्न आपराधिक मामले में परिवार के सदस्यों के नाम का उल्लेख मात्र, बिना किसी विशेष आरोप के उनकी सक्रिय संलिप्तता को शुरू में ही रोक दिया जाना चाहिए।
अदालत ने आगे कहा, न्यायिक अनुभव से यह एक सर्वविदित तथ्य है कि वैवाहिक कलह से उत्पन्न घरेलू विवादों में अक्सर पति के परिवार के सभी सदस्यों को फंसाया जाता है।
न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना और न्यायमूर्ति एन कोटिश्वर सिंह की पीठ ने अपने आदेश में कहा कि ठोस सबूतों के अभाव में इस तरह के व्यापक आरोप अभियोजन का आधार नहीं बन सकते।
पीठ ने कहा, अदालतों को कानूनी प्रावधानों और कानूनी प्रक्रिया के दुरुपयोग को रोकने और निर्दोष परिवार के सदस्यों को अनावश्यक रूप से परेशान करने से बचने के लिए ऐसे मामलों में सावधानी बरतनी चाहिए।
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