समस्तीपुर :- बेतहाशा गर्मी व वर्षा के अभाव में लोगों की परेशानी बढ़ती ही जा रही है। वहीं भूजल का स्तर अबतक के अपने सबसे निचले स्तर पर पहुंच गया है। वर्षा के दिनों में अमूमन 6-7 फीट पर रहने वाला भूजल स्तर वर्तमान में 33 फीट नीचे पहुंच गया है। यह हालात नदी किनारे व आसपास बसे लोगों के साथ है। नदी से दूरी वाले स्थलों पर यह दायरा 40 फीट से उपर तक पहुंचने की संभावना है। बीते चार वर्षो में यह पहला मौका है जब भूजल स्तर इतना नीचे गया है। नजीजतन लोग त्राहिमाम करने को विवश है।
वैज्ञानिक डॉ. रविश ने बताया कि कृषि में सिंचाई के लिए भूजल पर अत्यधिक निर्भरता, वर्षा जल संचयन व ग्राउंड वाटर रिचार्ज का अभाव जैसे कई कारण है। वैज्ञानिक ने बताया कि बिजली पंप सिंचाई की सुविधा होने से किसान डीजल इंजन की अपेक्षा अधिक सिंचाई कर रहे हैं। यही हालात नल-जल योजना के तहत लोगों के घरो तक पानी पहुंचाने का है। इसके कारण काफी मात्रा में भूजल का दोहन हो रहा है। जिसके कारण दिनों-दिन वाटर लेबल नीचे जा रहा है।
वैज्ञानिक ने बताया कि भूमि का कम से कम 10 प्रतिशत हिस्सा को वर्षा जल संरक्षण में इस्तेमाल करना एक बेहतर विकल्प है। इसके अलावा मेड़ बंदी से वर्षा जल संरक्षण करने से मृदा व जल दोनों संरक्षित रहता है। जिसका उपयोग किसान रबी फसलो की सिंचाई तक कर सकते हैं। यह भूजल को रिचार्ज करने में भी सहायक होता है।
इसके अलावा किसानों को आधुनिक सिंचाई पद्वति के तहत ड्रीप, स्प्रीक्लर, रेनगन का इस्तेमाल करना चाहिए। तो दूसरी ओर प्राकृतिक संसाधन को संरक्षित करने वाली तकनीक के तहत जीरो टिलेज, लेजर लेबलर, बेड प्लान्टिंग तकनीको का इस्तेमाल को बढ़ावा देना चाहिए। उन्होंने बताया कि तालाब, जल संरक्षण के साथ ग्राउंड वाटर रिचार्ज का बेहतर विकल्प है।
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