महापर्व छठ का चार दिवसीय अनुष्ठान शुक्रवार को रवियोग में नहाय-खाय के साथ शुरू हो गया। व्रतियों ने नदी, कुआं तथा जल में गंगाजल मिलाकर स्नान कर अरवा चावल, चना दाल, लौकी की सब्जी, आंवले की चटनी का प्रसाद ग्रहण कर व्रत की शुरुआत की। कार्तिक शुक्ल पंचमी यानी शनिवार को उत्तराषाढ़ा नक्षत्र व सर्वार्थसिद्धि योग में खरना व्रती पूरे दिन का उपवास कर देर शाम भगवान भास्कर की पूजा कर प्रसाद ग्रहण करेंगी।
खरना का प्रसाद ग्रहण करने के बाद व्रती 36 घंटे का निर्जला अनुष्ठान का संकल्प लेंगी। षष्ठी यानी रविवार (19 नवंबर) की शाम अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ दिया जायेगा। अनुष्ठान के अंतिम दिन सप्तमी सोमवार 20 नवंबर को उदीयमान सूर्य को अर्घदेकर आयु- आरोग्यता, यश का आशीर्वाद लेंगे।
पंडित अमित झा ने अथर्ववेद के हवाले से बताया कि षष्ठी देवी भगवान सूर्य की मानस बहन हैं। यही कारण है की भगवान भास्कर के साथ उनकी बहन षष्ठी देवी की पूजा होती है। प्रकृति के षष्टम अंश से षष्ठी माता उत्पन्न हुई हैं। उन्हें बालकों की रक्षा करने वाले भगवान विष्णु द्वारा रची माया भी माना जाता है। बालक के जन्म के छठे दिन भी षष्ठी मईया की पूजा की जाती है। षष्ठी देवी को देवसेना भी कहा गया है।
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