समस्तीपुर/विद्यापतिनगर [पदमाकर सिंह लाला] :- गंगा नदी के उत्तर अवस्थित मऊ – बाजिदपुर आज मिथिलांचल ही नहीं बल्कि संपूर्ण देश के अध्यात्म, भक्ति, साहित्य और संस्कृति का संगम स्थल बना हुआ है। इतिहासकारों के मुताबिक अवध के नवाब बाजिद अली शाह के नाम पर स्थापित था यह गांव। वर्तमान में यह बालेश्वर स्थान अब विघापतिधाम के नाम से मशहूर है। इस स्थान पर मैथिली, संस्कृत, बंगला, अवधी व अवहट्ट भाषा के विद्वान कवि कोकिल विघापति समाधिस्थ हुए थे।
यहीं कवि कोकिल विद्यापति जी के आह्वान पर माता गंगा स्वयं विघापति जी को इसी स्थान पर पहुंची तथा उन्हें “कार्तिक शुक्ल त्रयोदशी” को अपने अंक में समेटते हुए लौट गयी थी। किवदंतियों के मुताबिक यहां स्वयं भगवान शिव महाकवि की भक्ति भावना से प्रसन्न होकर स्वस्फूर्त विराजमान हुए थे। समस्तीपुर जिले के दलसिंहसराय से 8 किलोमीटर दक्षिण तथा बेगूसराय जिले के बछवाड़ा प्रखंड से आठ किलोमीटर पश्चिम अवस्थित यह तीर्थ स्थल पक्की सड़कों व रेलमार्ग से जुड़ा हुआ है।
मैथिल कोकिल महाकवि विद्यापति भगवान शिव के अनन्य भक्त थे। इसकी भक्ति भाव से प्रसन्न हो महादेव विद्यापति के घर बतौर नौकर (उगना) बन जीवन के अवसान काल में चमथा गंगा घाट पर स्नान करने के लिए चले। तभी रास्ते में वियावान जंगल में प्यास लगी। विद्यापति को बैचैन देखकर उगना महादेव ने एक पेड़ की आड़ में छिपकर अपनी जटा से गंगाजल एक पात्र में भरकर ले गए।
जल पीते ही विद्यापति ने कहा कि उगना यह तो गंगाजल है। इस बियावान जंगल में यह कहां से आया। विद्यापति द्वारा काफी मान मनौव्वल व इसे अपने जेहन तक ही रखने की बात पर उगना ने राज खोला तो विद्यापति प्रभु के चरणों पर गिर गए। कालांतर में विद्यापति की अनुपस्थिति में उगना द्वारा विद्यापति की पत्नी के एक काम को मनोनुकूल नहीं करने पर। विद्यापति की पत्नी ने खोरनाठी (अर्ध जली लकड़ी) से मार बैठी। तभी घटना की जानकारी मिलते ही विद्यापति के मुख से वह राज खुल गया। महादेव अंतर्ध्यान हो गए।
उसी समय विद्यापति ने उगना महादेव की खोज करने के क्रम में तत्काल मऊ-बाजिदपुर पहुंचेे। निकटवर्ती गंगा तट पर अवसान के समय भक्त विद्यापति की पुकार पर मां जाह्नवी गंगा ने स्वंय उक्त स्थान पर पहुंच विद्यापति को अपने अंक में समेट लिया था। उक्त घटनाक्रम के अवशेष रौंताधार के रूप में आज भी विद्यमान है। किवंदंतियों के अनुसार स्थानीय मलकलीपुर डयोढी के जमींदार गोकुल प्रसाद सिंह की गाय अक्सर उक्त स्थान पर अपना दूध गिरा देते थी। घर पहुंचने पर चरवाहों को डांट पड़ती थी।
चरवाहे द्वारा निगरानी करने के दौरान पता चला कि गाय एक नियत स्थान पर दूध स्वंय गिरा देती थी। जमींदार के अवलोकन पर पता चला कि वहां स्वयंभू शिवलिंग है। तत्काल खपरैल नुमा मंदिर बनवाया गया। बाद में केवटा के जमींदार भेषधारी चौधरी को पुत्र नहीं हो रहा था। उन्होंने मनोयोग से भगवान शिव की पूजा अराधना की। वृद्धावस्था में पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। उन्होंने उस बालक का नाम बालेश्वर रखाा तथा वर्तमान मंदिर का निर्माण सन 1898 ई. में करवाया। तभी से यह बालेश्वर स्थान के नाम से मशहूर है। अब विद्यापतिधाम उगना महादेव मंदिर के रूप में इसकी ख्याति है।
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