समस्तीपुर:- आयेंगे कि नहीं आयेंगे का संशय अब दूर हो चुका है। उम्र और सेहत के चलते राम मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा अवसर पर अयोध्या आंदोलन के प्रमुख चेहरे लाल कृष्ण आडवाणी की उपस्थिति को लेकर दुविधा बनी हुई थी। खुद लाल कृष्ण आडवाणी जी ने साफ कर दिया है कि इस अवसर पर उपस्थित होना उनका सौभाग्य होगा। जाहिर है कि जब आडवाणी जी आ रहे हैं तो उनकी सोमनाथ से अयोध्या के लिए निकली वह रथयात्रा भी याद की जा रही है जिसने मंदिर आंदोलन को जन आंदोलन बना दिया।
यात्रा के रास्ते में समस्तीपुर जिले में आडवाणी गिरफ्तार कर लिए गए थे। गिरफ्तारी के विरोध में भाजपा की समर्थन वापसी वीपी सिंह सरकार के पतन का कारण बनी थी। यात्रा बीच में रोके जाने के बाद भी अपने मकसद में सफल रही। इससे मंदिर आंदोलन को व्यापक विस्तार मिला। भाजपा की नए क्षेत्रों में पकड़ बनी। खुद आडवाणी का भी नया रूपांतरण हुआ।
23 अक्टूबर को समस्तीपुर में लालकृष्ण आडवाणी की सभा होनी थी। वर्ष 1990 में भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता व पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष लालकृष्ण आडवाणी के द्वारा श्रीराम जन्मभूमि अयोध्या में भव्य मंदिर निर्माण के संकल्प को लेकर गुजरात के सोमनाथ से अयोध्या तक के लिए रथ यात्रा 25 सितंबर 1990 को शुरू की गई थी। इस रथ यात्रा को 30 अक्टूबर को अयोध्या पहुंचना था। लालकृष्ण आडवाणी कार सेवा में शामिल होने वाले थे। देश के अलग-अलग भागों से होते हुए यह रथ यात्रा बिहार में गया से शुरू हुई जो बिहार के अलग-अलग जिले से होते हुए 22 अक्टूबर 1990 की देर शाम समस्तीपुर पहुंची।
23 अक्टूबर 1990 को समस्तीपुर के पटेल मैदान में लालकृष्ण आडवाणी के द्वारा एक विशाल जनसभा को संबोधित किया जाना था। इसको लेकर भारतीय जनता पार्टी, आरएसएस, विद्यार्थी परिषद सहित संघ के तमाम अनुसांगिक संगठनों के द्वारा जबर्दस्त तैयारी की गयी थी। यह रथ यात्रा जब हाजीपुर के बाद समस्तीपुर की सीमा में ताजपुर के कोठिया के पास पहुंची वहीं से जय श्रीराम के नारों के साथ लगातार कार्यकर्ताओं का हुजूम स्वागत कर रहा था। हर चौक-चौराहे पर लोग उस रथ पर पुष्प वर्षा और रथ की आरती उतारते थे।
22 अक्टूबर 1990 की देर शाम समस्तीपुर के सर्किट हाउस रथ पहुंचा और रात्रि विश्राम यहीं करना था। इसके बाद अगले सुबह पटेल मैदान में जनसभा को सम्बोधित करते हुए यात्रा आगे बढ़ती। लालकृष्ण आडवाणी सर्किट हाउस के कमरा नंबर सात में रुके थे। उनके साथ तबके प्रदेश अध्यक्ष कैलाशपति मिश्रा भी परिसदन में ही दूसरे कमरे में रूके थे। इस दौरान पूरा समस्तीपुर शहर हाई अलर्ट पर था। चप्पे-चप्पे पर पुलिस बलों की तैनाती थी। लालकृष्ण आडवाणी जब विश्राम करने चले गए तो सभी प्रमुख कार्यकर्ता भी वहां से कार्यक्रम की तैयारी में चले गए।
श्री राम जन्मभूमि आन्दोलन से जुड़े समस्तीपुर भाजपा के कई वरिष्ठ नेता उस ऐतिहासिक दिन को याद करते हुए बताते हैं कि लालकृष्ण आडवाणी की रथ यात्रा के पहुंचने पर जनसैलाब उमड़ पड़ा था। जगह-जगह सड़क के दोनों किनारे लोग स्वागत में खड़े थे। वो बताते हैं कि जब रथ यात्रा समस्तीपुर जिले के ताजपुर के कोठिया में प्रवेश किया था तो उसी वक्त गिरफ्तारी करने की योजना थी लेकिन जन सैलाब को देखते हुए वहां गिरफ्तारी नहीं हो पाई।
रात्रि 11 बजे वो सर्किट हाउस पहुंचे। 23 अक्टूबर की सुबह सभा होने वाली थी। इसके बाद अहले सुबह ही शहर के पटेल मैदान में एक हेलीकॉप्टर पहुंचा। इसके बाद लालकृष्ण आडवाणी की गिरफ्तारी सर्किट हाउस पहुंच कर की गई। वहां मौजूद कार्यकर्ताओं के द्वारा लालकृष्ण आडवाणी को गिरफ्तार कर जिस गाड़ी से ले जाया जा रहा था उसके सामने आकर रोकने का प्रयास भी किया गया लेकिन पुलिस ने लाठी चार्ज कर सभी को हटा दिया गया। जैसे ही यह खबर फैली पूरा बाजार से लेकर रेलवे तक को बंद करा दिया गया। लेकिन उस समय भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष डॉ. कैलाशपति मिश्र के समझाने के बाद सब कुछ सामान्य हुआ।
बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव ने लालकृष्ण आडवाणी की गिरफ्तारी के लिए पुलिस मुख्यालय मैं तैनात तत्कालीन डीआईजी रामेश्वर उरांव, आईएसएस अधिकारी आरके सिंह (वर्तमान में भाजपा सरकार में मंत्री) को भेजा था जो अहले सुबह सरकारी हेलिकॉप्टर से पटेल मैदान पहुंचे। इसके बाद सर्किट हाउस के कमरा नम्बर 7 में पहुंच आडवाणी को उनकी गिरफ्तारी की जानकारी दी। इसके बाद वह लोग आडवाणी को लेकर पटना होते हुए दुमका चले गए।
आडवाणी की रथयात्रा जब धनबाद से शुरू होने वाली थी तब उन्हें सासाराम के नजदीक गिरफ्तार करने की योजना थी। हालांकि यह योजना लीक हो गई। बाद में धनबाद में गिरफ्तारी का प्लान बना, लेकिन अधिकारियों के बीच मतभेद के बाद यह योजना भी खटाई में पड़ गई। इस बीच आडवाणी की यात्रा का एक पड़ाव समस्तीपुर भी था। लालू यादव उन्हें यहां हर हाल में गिरफ्तार करना चाहते थे। लालकृष्ण आडवाणी समस्तीपुर के सर्किट हाउस में रुके थे और लालू यादव ने अधिकारियों को निर्देश दिया कि उन्हें कहीं न जाने दिया जाए।
हालांकि उस शाम आडवाणी के साथ काफी समर्थक भी थे। ऐसे में उस दौरान गिरफ्तारी के बाद बवाल होने की आशंका भी थी। ऐसे में लालू यादव ने इंतजार करना ठीक समझा। इसके बाद देर रात करीब दो बजे लालू यादव ने पत्रकार बनकर सर्किट हाउस में फोन किया, ताकि यह पता लगाया जा सके कि आडवाणी के साथ कौन-कौन है। फोन आडवाणी के एक सहयोगी ने उठाया और बताया कि वो सो रहे हैं और सारे समर्थक जा चुके हैं। आडवाणी को गिरफ्तार करने का यह सबसे मुफीद मौका था और लालू यादव ने इसमें देरी नहीं की।
25 सितंबर को सोमनाथ से शुरू हुई आडवाणी की रथयात्रा 30 अक्टूबर को अयोध्या पहुंचनी थी, लेकिन 23 अक्टूबर को आडवाणी को समस्तीपुर में गिरफ्तार कर लिया गया। आडवाणी की गिरफ्तारी के बाद केंद्र की सियासत में भूचाल मच गया। BJP ने केंद्र में सत्तासीन वीपी सिंह सरकार से समर्थन वापस ले लिया, जिसमें लालू प्रसाद यादव भी साझीदार थे, और सरकार गिर गई थी। लालकृष्ण आडवाणी के गिरफ्तारी के पहले लालू यादव ने गांधी मैदान में एक रैली की थी, जिसमें उन्होंने भाजपा नेता और इस रथ यात्रा पर जमकर निशाना साधा था।
लालू यादव ने 21 अक्टूबर 1990 को पटना के गांधी मैदान में सांप्रदायिकता विरोधी रैली की। इस रैली में बिहार की जनता को संबोधित करते हुए लालू प्रसाद यादव ने कहा था कि, ‘देशहित में अगर इंसान ही नहीं रहेगा तो मंदिर में घंटी कौन बजाएगा? जब इंसानियत पर खतरा हो, इंसान नहीं रहेगा तो मस्जिद में कौन इबादत देने जाएगा।’ लालू ने उस वक्त कहा था, ’24 घंटे मैं निगाह रखा हूं। हमने अपने शासन की तरफ से पूरा उनकी (आडवाणी की) सुरक्षा का भी व्यवस्था किया, लेकिन दूसरी तरफ हमारा सवाल है अगर एक नेता और एक प्रधानमंत्री का जितना जान का कीमत है, उतना एक आम आदमी का जान का भी कीमत है।’
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