समस्तीपुर :- लखनऊ-आगरा एक्सप्रेस-वे पर बिहार से दिल्ली जा रही एक बस के उन्नाव में दुर्घटनाग्रस्त होने से 18 लोगों की मौत के बाद पटना से लखनऊ तक सरकार हरकत में है। ट्रेन में टिकट नहीं मिलने के कारण बिहार के अलग-अलग शहरों से हर रोज लगभग 350-400 बस दिल्ली आती है। इनमें ज्यादातर टूरिस्ट परमिट पर चलती हैं जो एक बार सिर्फ 14 दिन के लिए मिलता है और उसे अधिकतम दो बार 28 दिन के लिए ही बढ़ाया जा सकता है। उन्नाव में हादसे का शिकार बनी बस का ना परमिट था, ना फिटनेस और ना ही प्रदूषण। जाहिर है कि बिहार से दिल्ली तक रास्ते में ट्रांसपोर्ट से लेकर पुलिस विभाग तक की जेब गर्म कर अवैध तरीके से बसें चलाई जा रही हैं।
हाल ही में जनता दल यूनाइटेड के प्रदेश कार्यालय पटना में जनसुनवाई कार्यक्रम के दौरान परिवहन मंत्री शीला कुमारी ने बिहार में अन्य राज्यों के लिए चलने वाली बसों के परमिट की कड़ाई से जांच कराने की बात कही है। साथ ही उन्होंने कहा कि हम इस मामले में पहले से ही सजग हैं। उन्होंने बस संचालकों से अपील करते हुए कहा कि वो थोड़े से लाभ के लिए आम लोगों की जिंदगी दांव पर न लगाएं।
बिहार के तमाम जिलों से रोजाना करीब 350 बसें दिल्ली तथा दूसरे राज्यों की ओर आती-जाती हैं। इनमें बड़ी संख्या में स्लीपर वाली डबल डेकर बसें शामिल हैं। इसके पीछे मोटर मालिकों की तगड़ी जुगाड़ है। ये लोग अक्सर पुरानी रिजेक्ट हो चुकी बसों को अपने हिसाब से जोड़-तोड़ करके कामचलाऊ बना लेते हैं। इनमें सुरक्षा से जुडे़ किसी भी तरह का कोई इंतजाम नहीं होता है, मसलन बैठने के लिए ढ़ंग की सीट नहीं होती, इमरजेंसी गेट नहीं होता आदि।
इन बसों को टूरिस्ट परमिट से पास कराके सड़का पर चलाया जाता है। ये बसें बिहार के समस्तीपुर, मुजफ्फरपुर, दरभंगा, मधुबनी, सीतामढ़ी, मोतिहारी और बेतिया जैसे तमाम शहरों से चलती हैं। ये दिल्ली के अलावा उत्तर प्रदेश और राजस्थान के लिए भी जाती हैं। इनमें से कुछ बसों को जरूरी कागजों/ दस्तावेजों की मदद से चलाया जाता है। बाकी अधिकांश को रास्ते में पड़ने वाले थानों और यातायात से जुड़े अधिकारियों की मिलीभगत से चलाया जाता है। साथ ही अधिकांश बार ये लोग वैकल्पिक रास्तों का सहारा लेते हैं ताकि चेकिंग से बच सकें।
समस्तीपुर में जब समस्तीपुर टाउन मीडिया टीम पड़ताल पर निकली तो घंटो इंतजार के बाद दिल्ली से समस्तीपुर जिला के रोसड़ा आ रही यमुना बस मुसरीघरारी में मिल गई। काफी मशक्क्त के बाद किसी तरह टीम बस के अंदर जाकर पड़ताल शुरू करती है। पड़ताल देख बस के कंडक्टर बाहर निकलर गायब हो गया। वहीं यात्रियों ने अपने अनुभव को साझा करते हुए कई बाते बताई। जब बस के ड्राइवर से परमिट व फिटनेस कागजातों की मांग की गई तो वह कुछ भी नहीं बताया। सिर्फ कहा कि वह मैनेजर के पास है। सवाल यह उठता है की रोजाना बस दिल्ली से बिहार आती जाती है और कागजात बस में रहने की जगह मैनेजर के पास है। दो मिनट में बस खुल जाती है। टीम इसके बाद यमुना ट्रेवल्स के ऑफिस दलसिंहसराय के बल्लोचक पहुंचती है तो वहां भी मैनेजर गायब मिलता है।
ट्रेवल कार्य से जुड़े सूत्र बताते हैं कि बस की परमिट नहीं होती है। उसकी जगह वह टूरिस्ट परमिट का इस्तेमाल किया करते हैं। जगह-जगह जांच पर रूपये देकर सेटलमेंट कर लेते हैं। वहीं एक बस के जानकर का कहना था की बस में केवल लेबर क्लास के लोग ही दिल्ली से आते जाते हैं। अभी गेहूं कटनी समाप्त होने के बाद सभी बिहार में धान रोपाई के लिए वापस लौट रहे हैं।
लंबी दूरी तय करने के दौरान अक्सर ये गाड़ियां सिंगल ड्राइवर के भरोसे होती हैं। जबकि 18-24 घंटे के सफर के लिए कम से कम दो ड्राइवर होना जरूरी होता है। इस कारण अक्सर लगातार गाड़ी चलाने से भी नींद आने की संभावना बढ़ जाती है। इससे हादसा होने की गुंजाइश लगातार बनी रहती है। इन लंबी दूरी की अधिकांश डग्गामारी वाली बसों का परमिट नहीं होता है। लेते भी हैं तो 14 दिनों वाला टूरिस्ट परमिट लेते हैं। इन बसों को गुप-चुप तरीके से चलाया जाता है। इनमें क्षमता से अधिक यात्रियों को जबरन ठूंस-ठूंसकर भरा जाता है ताकि मोटर मालिक अधिक मुनाफा कमा सके।
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