बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भारतीय जनता पार्टी (BJP) के साथ गठबंधन तोड़ने के बाद लगातार मिशन-2024 के मोड में दिखते हैं। उन्होंने बीजेपी के विजय रथ को रोकने के लिए विपक्षी एकजुटता की अपील की है। कुछ समय पहले उन्होंने दिल्ली में करीब एक दर्जन नेताओं के साथ मुलाकात भी की थी। इसके बाद शनिवार को अचानक एक खबर आती है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तरह नीतीश कुमार भी उत्तर प्रदेश से लोकसभा चुनाव लड़ सकते हैं।
उनकी पार्टी जनता दल युनाइटेड के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह ने दावा किया कि नीतीश कुमार को यूपी की कई सीटों से चुनाव लड़ने के लिए ऑफर हैं। फूलपुर और मिर्जापुर के पार्टी कार्यकर्ता भी चाहते हैं नीतीश वहां से दावेदारी पेश करें। हालांकि, उन्होंने यह भी कहा कि यह नीतीश कुमार की इच्छा पर है कि वह कहां से चुनाव लड़ेंगे।
जेडीयू ने यह भी दावा किया है कि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव का गठजोड़ पड़ोसी राज्य उत्तर प्रदेश में ताकतवर भाजपा को मात दे सकता है। अब जेडीयू के इस दावे से पहले 2017 में हुए विधानसभा चुनावों पर एक नजर डालने की जरूरत है।
इस चुनाव में समाजवादी पार्टी ने कांग्रेस के साथ गठबंधन किया था और चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने ‘यूपी को ये साथ पसंद है’ का नारा दिया था। पूरे चुनाव के दौरान इस नारे की खूब चर्चा रही, लेकिन नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता के आगे यह फीकी साबित हुआ। नतीजों ने सियासी पंडितों को चौंका दिया। साथ चुनाव लड़ने के बावजूद दोनों ही दलों के वोट प्रतिशत में जबरदस्त झटका लगा। सपा को इस चुनाव में 21.8 प्रतिशत वोट मिले। वहीं, कांग्रेस को सिर्फ 6.25 प्रतिशत वोट बैंक से संतोष करना पड़ा।
आपको बता दें कि अखिलेश यादव ने जब कांग्रेस को एक साथ आने का ऑफर दिया तो कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी को लगा कि साथ मिलकर उत्तर प्रदेश में पार्टी की वापसी का रास्ता निकला जा सकता है। चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने पूरे धूम-धड़ाके के साथ अखिलेश-राहुल की युवा जोड़ी को यूपी के सियासी पिच पर लॉन्च किया। दोनों ने साथ मिलकर कई रैलियों को संबोधित किया और की रोड शो भी किए। अखिलेश यादव ने बड़ा दिल दिखाते हुए कांग्रेस पार्टी को 105 सीटें दे दीं, लेकिन दो दर्जन से अधिक सीटों पर सपा को अपने सिंबल पर ही कैंडिडेट उतारने पड़ गए। नतीजे जब सामने आए तो बीजेपी को 384 में से 312 सीटें हासिल हुईं। वहीं, 311 सीटों पर लड़ने वाली सपा के 47 उम्मीदवार ही चुनाव जीत पाए। 114 सीटों पर लड़ने वाली कांग्रेस पार्टी के तो सिर्फ 7 उम्मीदवार ही विधायक बन पाए।
फूलपुर उत्तर प्रदेश की हाई प्रोफाइल सीट मानी जाती है। यहां से भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू तीन बार सांसद चुने गए थे। इसके अलावा कई अन्य बड़े नेता भी यहां से चुनाव लड़ चुके हैं। लोगों के मन में इन दिनों एक सवाल यह है कि आखिर जेडीयू नीतीश कुमार के लिए यह सीट क्यों चुनना चाह रही है? इस सवाल का जवाब है यहां का जातीय समीकरण।
फूलपुर पटेलों की सीट मानी जाता ही। पटेल यानी कुर्मी, जिस जाति से नीतीश कुमार आते हैं। इस सीट पर 17 प्रतिशत आबादी पटेल समुदाय से ताल्लुक रखते हैं। जेडीयू को उम्मीद है कि अगर सपा नीतीश कुमार को सपोर्ट करती है तो उन्हें यादव और मुसलमाम वोटरों का साथ मिल मिलेगा। आपको बता दें कि इस सीट पर मुसलमान मतदाताओं की संख्या करीब 13 प्रतिशत है। यादवों की भी अच्छी आबादी है। ऐसे में जेडीयू यहां 1+1=2 के फॉर्मूले पर नीतीश कुमार की उम्मीदवारी पेश करती नजर आ रही है। लेकिन, जेडीयू को इस बात का भी ध्यन रखना होगा कि राजनीति में हमेशा यह फॉर्मूला हिट नहीं होता है। 2019 के लोकसभा के चुनाव में भी बुआ-बबुआ की जोड़ी फेल हो गई थी।
2019 के लोकसभा चुनाव से पहले अखिलेश यादव अपनी मुहबोली बुआ और बहुजन समाज पार्टी की मुखिया मायावती के पास पहुंचे। इस चुनाव में दोनों ने यूपी में गठबंधन किया। बिहार की तर्ज पर इसे भी महागठबंधन नाम दिया गया। हालांकि, कांग्रेस ने खुद को इस चुनाव में सपा से अलग रखा। बीजेपी के लिए यूपी को जीतना काफी महत्वपूर्ण था, क्योंकि 2014 के नतीजों ने सभी को चौंका दिया था। अमित शाह की रणनीति ने भगवा खेमे के 71 उम्मीदवारों को जीत दिलाई थी। 2019 के चुनाव में बीजेपी को सिर्फ 9 सीटों का ही नुकसान हुआ। मायावती फायदे में रही। उनके 10 उम्मीदवार सांसद बने। लेकिन नतीजों ने अखिलेश को चौंका दिया। उनकी पार्टी के सिर्फ 5 कैंडिडेट ही जीत पाए।
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