जिस सियासी मंत्र से लालू-नीतीश बिहार पर कर रहे 30 साल से राज, उसी का PM मोदी क्यों कर रहे जाप?
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प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के 44वें स्थापना दिवस पर पार्टी मुख्यालय में पार्टी पदाधिकारियों एवं कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए कहा कि सामाजिक न्याय भाजपा के लिए सिर्फ राजनीतिक नारा नहीं, बल्कि आस्था का विषय है। उन्होंने कहा कि उनकी पार्टी बजरंग बली की तरह विशाल चुनौतियों से पार पाने में सक्षम है और कार्यकर्ताओं की भक्ति, समर्पण, शक्ति एवं ‘राष्ट्र प्रथम’ के मंत्र के बल पर देश में नयी राजनीतिक संस्कृति का सूत्रपात करने में सफल हुई है।
अगले साल लोकसभा चुनाव होने हैं। उससे पहले इस साल कई राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं। इनमें कर्नाटक, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, तेलंगाना भी शामिल है। इन राज्यों में बड़ी आबादी वैसे समुदाय की है जो दशकों से वंचित रहे हैं और सामाजिक न्याय की बाट जोहते रहे हैं। आजादी के 75 साल बाद भी आदिवासी समुदाय का बड़ा हिस्सा सरकारी योजनाओं की पहुंच से दूर है।
क्या है सामाजिक न्याय?
सामाजिक न्याय का मतलब समाज में सभी लोगों को समान मानने वाली सामाजिक विचारधारा से है। इस व्यवस्था में किसी के साथ भी सामाजिक,सांस्कृतिक धार्मिक या आर्थिक पूर्वाग्रहों के आधार पर भेदभाव नहीं होना चाहिए। इसमें उन लोगों या समुदायों पर शासन का विशेष ध्यान अपेक्षित होता है, जो दशकों से सामाजिक उपेक्षा का शिकार रहे हैं और देश की विकासधारा से वंचित रहे हैं। ऐसे समुदाय में अधिकांशत: अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, कई पिछड़ी जातियां, धार्मिक अल्पसंख्यक समूह शामिल हैं। ये समुदाय दशकों से जातीय और सामाजिक-आर्थिक भेदभाव की वजह से सरकारी योजनाओं से वंचित रहे हैं।
पीएम मोदी का सामाजिक न्याय:
पीएम मोदी ने कहा कि सामाजिक न्याय के नाम पर कई राजनीतिक दलों ने देश के साथ खिलवाड़ किया है। उन्होंने अपने परिवारों का कल्याण सुनिश्चित किया, लोगों का नहीं। दूसरी ओर, भाजपा के लिए सामाजिक न्याय कोई राजनीतिक नारा नहीं, बल्कि एक ‘आस्था का अनुच्छेद’ रहा है। उन्होंने कहा कि भाजपा सामाजिक न्याय को जीती है। इसकी भावना का अक्षरश: पालन करती है। 80 करोड़ लोगों को मुफ्त राशन मिलना सामाजिक न्याय का प्रतिबिंब है। 50 करोड़ गरीबों को बिना भेदभाव 5 लाख रुपये तक मुफ्त इलाज की सुविधा मिलना सामाजिक न्याय की सशक्त अभव्यिक्ति है।
उन्होंने कहा कि 45 करोड़ गरीबों के बिना भेदभाव जनधन खाते खोलना सामाजिक न्याय के समावेशी एजेंडे का जीता जागता उदहारण है। 11 करोड़ लोगों को शौचालय मिलना ही तो सामाजिक न्याय है। बिना तुष्टिकरण और भेदभाव किए भाजपा सामाजिक न्याय के इरादों को सच्चे अर्थों में साकार करने वाला एक पर्याय बन कर उभरी है।
नीतीश-लालू का सियासी मंत्र क्या?
1990 में जब लालू यादव ने बिहार की सत्ता संभाली, तभी से बिहार में सामाजिक न्याय की व्याख्या नए तरीके से होने लगी। हालांकि, उनसे पहले कर्पूरी ठाकुर और दारोगा प्रसाद जैसे अन्य मुख्यमंत्री भी हुए जिन्होंने समाज के पिछड़े-अल्पसंख्यक, दबे-कुचले और शोषित समाज को मुख्यधारा में लाने की कोशिशें कीं और योजनाएं बनाईं लेकिन उनका कार्यकाल इतना संक्षिप्त रहा कि उपलब्धियां नगण्य रहीं। लालू यादव के शासन में आने के बाद से इस सामाजिक धारणा ने सामाजिक बदलाव लाया। बदले में लालू यादव की सत्ता पर पकड़ मजबूत हुई।
दरअसल, लालू ने एकतरफ मुस्लिम अल्पसंख्यकों को बीजेपी के राम मंदिर आंदोलन के बरक्स अपनी छत्रछाया देकर उनका वोट अपने पाले में खींचा तो दूसरी तरफ दलितों-पिछड़ों के साथ उन्हीं के बीच का होने का एहसास कराकर उनका वोट खींचा। 2005 तक उनके सामाजिक न्याय के समीकरण ने उन्हें और उनकी पत्नी राबड़ी देवी को सत्ता पर बिठाए रखा। बाद में उन्हीं के छोटे सियासी भाई नीतीश कुमार ने उन्हीं के रास्ते पर चलते हुए उस सामाजिक न्याय की सियासी अवधारणा में विखंडन किया और महादलित और अति पिछड़ा का वर्गीकरण कर वोटों को अपनी तरफ खींचा। मुस्लिम वोटों के लिए भी नीतीश ने सामाजिक न्याय की अवधारणा में पसमांदा समाज के बैनर तले सियासी फायदे उठाए। ये दोनों नेता बिहार पर तीन दशक से भी लंबे समय से शासन कर रहे हैं।
मोदी के सामाजिक न्याय मंत्र के क्या मायने?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी इस बात को भली भांति जानते हैं कि बिना दलितों और पिछड़ों का वोट हासिल किए, वह सत्ता पर बने नहीं रह सकते हैं। इसलिए ‘सबका साथ, सबका विकास’ का नारा देनेवाले मोदी ने 2019 में अपने नारे में ‘सबका विश्वास’ जोड़ा ताकि अल्पसंख्यक समुदाय जो बीजेपी से कटता रहा है उस विश्वास की परंपरा में खुद को न सिर्फ कनेक्ट करे बल्कि उनके बीच वह विश्वास बहाली भी हो, जो गैर बीजेपी सरकारों के दौर में होता रहा है।
2024 की लड़ाई से पहले जब 16 विपक्षी दल एकजुट हो रहे हैं और वे सभी दल आरक्षण और जातीय जनगणना का दांव चल रहे हैं, तब पीएम मोदी ने अपने पार्टी कार्यकर्ताओं को लोगों का दिल जीतने का मंत्र दिया है। पीएम इसके लिए अपने 10 सालों की उपलब्धियों खासकर दलितों, पिछड़ों, अल्पसंख्यकों, महिलाओं के लिए किए गए कार्यों के सहारे चुनावी लक्ष्मण रेखा खींचना चाहते हैं। तभी तो वह उन सभी योजनाओं का नाम गिना रहे हैं जो पिछले दो कार्यकाल के दौरान उन्होंने शुरू किए हैं।
पीएम ने कहा कि भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ताओं के रूप में, हमें खुद को चुनाव जीतने तक सीमित नहीं रखना चाहिए। हमें लोगों का दिल जीतना सुनिश्चित करना चाहिए। हमें प्रत्येक चुनाव उसी स्तर की ऊर्जा और कड़ी मेहनत के साथ लड़ना है जैसा कि हम 1980 के दशक से करते आ रहे हैं।
सामाजिक न्याय की स्थापना में मोदी क्या कर रहे?
बीजेपी पिछड़ा वर्ग और दलितों का वोट पाने या उसे अपने ही पाले में बरकरार रखने के लिए लगातार सियासी और सामाजिक दांव चलती रही है। अभी हाल ही में बीजेपी ने नीतीश के लव-कुश फार्मूले को फेल करने के लिए कुशवाहा समाज पर डोरे डाले हैं और उसी समाज के युवा को प्रदेश बीजेपी का अध्यक्ष बनाया है। इसी तरह बीजेपी ने राजस्थान में जाट वोट के लिए जगदीप धनखड़ को उप राष्ट्रपति की कुर्सी तक पहुंचाया और आदिवासियों के बीच गुड गवर्नेंस और हितैषी होने का संदेश देने के लिए द्रौपदी मुर्मू को राष्ट्रपति के पद पर बैठाने समेत कई राजनीतिक दांव चले हैं।
कहना न होगा कि सामाजिक न्याय वोट पाने का सियासी मंत्र और तंत्र बन गया है, जिसके सहारे वंचित समुदायों के कुछ लोगों को मलाईदार ओहदों पर बिठाकर उस समाज को वोट खींचने की कोशिश दशकों से होती रही है।