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लालू यादव को स्वर्ण मुकुट पहनाने वाले रतन सिंह कौन? बेगूसराय के बाहुबली ने मचाई राजनीतिक खलबली

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राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) के अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री लालू यादव को कांग्रेस पार्टी के कार्यक्रम में सोना का मुकुट पहनाकर बेगूसराय के बाहुबली नेता रतन सिंह ने राजनीतिक गलियारों में खलबली मचा दी है। लालू को बिहार कांग्रेस अध्यक्ष अखिलेश प्रसाद सिंह ने श्रीकृष्ण सिंह जयंती समारोह में बतौर मुख्य अतिथि बुलाया था। रतन सिंह लगभग 20 साल पहले जिला परिषद चुनाव से राजनीति में सक्रिय हुए थे और तब वो आरजेडी से ही जुड़े थे।

जिला पार्षद का चुनाव जीतने के बाद रतन सिंह चेयरमैन पद का चुनाव लड़ गए और सीपीआई कैंडिडेट के खिलाफ एक साथ आरजेडी और बीजेपी से जुड़े जिला पार्षदों का समर्थन जुटा लिया। पहले खुद जिला परिषद अध्यक्ष बने। बाद में पत्नी भी डिस्ट्रिक्ट बोर्ड चेयरमैन बनीं। राजनीति से पहले बाकी बाहुबली नेताओं की तरह उन पर भी कई तरह के केस-मुकदमे हुए और तमाम तरह के आरोप लगे जो कोर्ट में साबित नहीं हो सके।

रतन सिंह को बतौर जिला परिषद अध्यक्ष पूरे जिला में अपना प्रभाव फैलाने का मौका मिला इसलिए उन्होंने पिछले दो दशक में जिला परिषद की राजनीति नहीं छोड़ी। जब रतन सिंह राजनीति में आए उस समय मंत्री श्रीनारायण यादव आरजेडी के जिला में गार्जियन कहे जाते थे। दूसरी तरफ भोला सिंह थे जो निर्दलीय से शुरू होकर सीपीआई, कांग्रेस, आरजेडी के रास्ते बीजेपी में पहुंच चुके थे। दोनों का समर्थन रतन सिंह को मिला। खिलाफ रह गई सीपीआई लेकिन उसके साथ भी आगे चलकर संबंध सुधर गए।

जब 2004 का लोकसभा चुनाव आया तो बलिया लोकसभा सीट के लिए आरजेडी से जो दो नाम चल रहे थे उसमें एक नाम मंत्री श्रीनारायण यादव के बेटे ललन यादव का और दूसरा रतन सिंह का ही था। लेकिन लालू ने यह सीट गठबंधन में रामविलास पासवान की लोजपा को दे दिया। एलजेपी के टिकट पर जीतकर सांसद बने सूरजभान सिंह भी बाहुबली थे और अंडरवर्ल्ड में रतन सिंह के विरोधी माने जाते थे। राजनीति के साथ ये सब दोस्त बन गए।

रतन सिंह की तब तक आरजेडी में ही रहे अखिलेश प्रसाद सिंह के साथ अच्छी बनने लगी थी। 2004 के बाद भी कई बार रतन सिंह का नाम उछला लेकिन कभी टिकट नहीं मिला। फिर बिहार में ही सरकार बदल गई। एनडीए सरकार के दौरान भी रतन सिंह का जलवा कम नहीं हुआ। वो एक के बाद एक जिला परिषद चुनाव जीतते रहे। कभी खुद, कभी पत्नी या कोई समर्थक चेयरमैन बनता रहा। फिर ऐसा समय आ गया कि रतन सिंह को बीजेपी और सीपीआई के अलावा सारे दल अपना ही मानने लगे। कभी वो आरजेडी के लगते, कभी जेडीयू के लगते, कभी कांग्रेस के लगते। उन्होंने भी इस इमेज को बनने ही दिया कि वो सबके हैं।

रतन सिंह के बाद उनके परिवार से दामाद रजनीश सिंह राजनीति में आए। कांग्रेसी परिवार में पैदा रजनीश भाजपा में शामिल हुए। पहली बार जिला पार्षद बने और फिर स्थानीय निकाय कोटे की विधान परिषद सीट का चुनाव लड़े और जीत गए। ससुर की तरह रजनीश ने भी विधान पार्षद चुनाव में सीपीआई को हराया। बीजेपी का संगठन साथ था ही, ससुर रतन सिंह का भी सिर पर हाथ था। रजनीश सिंह बीजेपी की राजनीति में तेजी से चमके और पार्टी के प्रदेश महासचिव से लेकर राष्ट्रीय सचिव तक बने। रजनीश लगातार दो बार एमएलसी चुनाव जीतने के बाद पिछला चुनाव हार गए।

बेगूसराय एमपी भोला सिंह के निधन के बाद रजनीश 2019 के लोकसभा चुनाव में टिकट के लिए प्रयासरत थे लेकिन बीजेपी ने गिरिराज सिंह को नवादा से भेज दिया। गिरिराज सिंह का टिकट कटने की संभावना कम है लेकिन 2024 के चुनाव में बीजेपी कैंडिडेट बनने के लिए रजनीश सिंह फिर से जोर लगा रहे हैं। टिकट की रेस में रजनीश सिंह का मुकाबला राज्यसभा सांसद राकेश सिन्हा से है जिनके लगातार बेगूसराय में जमे रहने से गिरिराज सिंह बहुत नाराज रहते हैं।

रतन सिंह कभी भाजपाई नहीं हुए लेकिन दामाद को जिताने के लिए उन्होंने दलगत सीमाओं का हिसाब नहीं रखा। ससुर-दामाद का राजनीतिक समीकरण जिला में हमेशा चर्चा का विषय बना रहता है। दोनों एक-दूसरे की मदद करें या ना करें, लेकिन रास्ते नहीं काटते। रतन सिंह का प्रभाव बेगूसराय जिले के हर इलाके में है। बेगूसराय, मटिहानी, तेघड़ा और चेरिया बरियारपुर विधानसभा सीट भूमिहार वोट की बहुलता के कारण रतन सिंह की चाहत में रही है। लड़ना तो रतन सिंह 2004 में ही लोकसभा चुनाव चाहते थे लेकिन सीट लोजपा को चली गई। 2025 में विधानसभा और 2024 में लोकसभा का चुनाव उनके लिए हसरत पूरा करने का मौका है।

इंडिया गठबंधन में बेगूसराय लोकसभा सीट पर सीपीआई का दावा है लेकिन बात बिगड़ी तो दावा आरजेडी का हो जाएगा। 2019 में सीपीआई के टिकट पर लड़कर दूसरे नंबर पर रहे कन्हैया कुमार अब कांग्रेसी हैं। तीसरे नंबर पर रहे आरजेडी के तनवीर हसन फिर लड़े तो ध्रुवीकरण के एक्सपर्ट गिरिराज सिंह को जीतने के लिए कुछ भी करने की जरूरत नहीं होगी। सीट कांग्रेस को गई तो भी कन्हैया कुमार को लालू रोकेंगे क्योंकि वो नहीं चाहते कि तेजस्वी यादव के सामने कोई युवा विकल्प बने। ये वो राजनीतिक स्थिति है जिसमें कांग्रेस और आरजेडी के सामने रतन सिंह का परिवार एक मजबूत विकल्प हो सकता है। कांग्रेस का मामला हैंडल करने के लिए रतन सिंह के पास अखिलेश सिंह पहले से हैं। लालू का दिल आ गया तो प्रसाद ससुर को मिलेगा या दामाद को, बस ये एक सवाल है जिसका जवाब बेगूसराय के लोग खोज रहे हैं।

Avinash Roy

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