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वीरान जंगल एवं श्मशान के बीच ताजपुर के भेरोखरा स्थित मां काली शक्तिपीठ है आस्था एवं विश्वास का केंद्र

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समस्तीपुर/ताजपुर :- ताजपुर के भेरोखरा वार्ड संख्या-4 स्थित बुढ़िया काली मंदिर शक्ति पीठ के रूप में प्रचलित है जो सैकड़ों वर्ष से आस्था का केंद्र बना हुआ है। यहां भक्तों की हर मन्नतें पूरी होती है। बताया जाता है कि यहां मां काली भक्तो के हर संकट को दूर करती है। वर्षों से आस्था का केंद्र बना हुआ है। कहा जाता है कि माता साक्षात यहां पिंडी के रूप में निवास करती है। वीरान जंगल एवं श्मशान के बीच आज यहां माता का भव्य मंदिर है जो दूर से ही दिखने लगती है। हालांकि मंदिर का निर्माण कब हुआ इसको लेकर लोगो में असमंजस बना रहता है। स्थानीय लोगो ने बताया कि पूर्वज भी मंदिर की चर्चा करते थे। लेकिन उन्हें भी पता नहीं था कि मंदिर का निर्माण कब हुआ है।

स्थानीय लोगों ने बताया कि हमारे पूर्वज कहते थे कि गांव में एक बार महामारी फैल गई थी। इससे गांव में चारों ओर कोहराम मचा हुआ था। असमय लोगों की मृत्यु होने से लोग निराश रहते थे। इसी बीच एक साधु गांव से गुजर रहे थे। लोगों की परेशानी देखकर परेशानी का कारण पूछा। कारण जानने के बाद साधु गांव के लोगों को मां काली सहित सातों बहन का पिंडी स्वरुप निर्माण कर नियमित पूजने की सलाह दी। साथ ही गर्भगृह के बाहर दो जोगनी की स्थापना की गई थी। तब से आज तक उस स्थान पर पिंडी स्वरुप मां काली की पूजा होती आ रही है।

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यहां बलि चढ़ाने की पुरानी परंपरा है :

महाअष्टमी को विधि विधान के साथ छाग बलि चढ़ाया जाता है। स्थानीय लोगो ने बताया कि बुढ़िया काली क्षेत्र में बड़ी काली के रूप में विख्यात है। पिंडी स्वरूप माता की प्रेरणा से उसी गर्भगृह पर भव्य मंदिर का निर्माण कराया गया। मंदिर परिसर में अति प्राचीन पीपल का वृक्ष है जिसे श्रद्धालु ब्रह्म बाबा के रूप में पूजा करते है। लोगों का मानना है कि मंदिर निर्माण के समय ही पीपल का वृक्ष लगाया गया था।

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प्राचीन समय में मंदिर झोपड़ी का था। मंदिर के ऊपर पीपल का विशाल टहनियां झुकी रहती थी। कई बार टहनी टूटकर मंदिर पर गिरा भी लेकिन मंदिर एवं गर्भगृह का कोई नुकसान नहीं हुआ। लोगों की आस्था एवं विश्वास बढ़ता गया। कहा जाता है कि सच्चे मन से माँ के दरवार में जो भी आता है मां उसकी हर मुरादें पूरी करती है। आज उन्हीं स्थानीय लोगों द्वारा पिंडी स्वरुप माता की प्रेरणा से उसी गर्भगृह पर भव्य मंदिर का निर्माण कराया गया है।

यहां शारदीय और बासंतिक नवरात्रा के अवसर पर कलश स्थापना कर पूजा-पाठ, हवन एवं कन्याओं को भोजन एवं दक्षिणा दी जाती है। माता की पूजा अर्चना करने वाले भक्तों को सुख, शांति, समृद्धि की प्राप्ति होती है। इसके कारण यहां नवरात्र के अवसर पर श्रद्धालुओं की भीड़ बढ़ जाती है।

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