दलसिंहसराय का ‘शहीद स्थल’ बना फास्ट फूड का प्रचार स्थल, अब तक नहीं बन सका ‘शहीद स्मारक’
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समस्तीपुर/दलसिंहसराय [लोकेश शरण] :- आज से 81 वर्ष पूर्व ‘अगस्त क्रांति’ के दौरान 15 अगस्त, 1942 की शाम दलसिंहसराय थाना भवन पर तिरंगा ध्वज फहराने के लिए कटिबद्ध लगभग दस हजार (पुलिस रेकार्ड के मुताबिक पांच हजार) की भीड़ को नियंत्रित करने के लिए पुलिस ने पहले लाठीचार्ज किया और फिर अंधाधुंध गोलियां चलाई। इस गोलीकांड में दलसिंहसराय थाना के समीप छह लोग मारे गए और दर्जनों घायल हुए। तब दलसिंहसराय थाना चौक की यह धरती शहीदों व घायलों के खून से लाल हो उठी थी। उनकी चीख़-पुकार से वातावरण गमगीन था। लोग-बाग उस हो-हंगामें और भगदड़ में अपनों की तलाश में बदहवास भाग रहे थे। घायलों को लोग उठापठा कर ले भागे। पुलिस भय के कारण परिजन घायलों को बेहतर चिकित्सा के लिए घर से बाहर नहीं ले जा पाए। इस कारण अनेकों ने असमय अपने प्राण गवांए। उनका अंतिम संस्कार भी रात के अंधेरे में जैसे-तैसे संपन्न हुआ। जबकि कई, घायल अवस्था में गिरफ्तार कर लिए गए।
दलसिंहसराय थाना गोलीकांड में शहीद होने वालों में -सरयुग कापर, चकहबीब (विभूतिपुर), दुर्गा पोद्दार, चैता (उजियारपुर), अनुप महतो, गोसपुर (दलसिंहसराय), बंगाली पासवान, गोसपुर (दलसिंहसराय), जागेश्वर लाल, दलसिंहसराय व अनुसूचित जाति का एक अज्ञात व्यक्ति, चमथा (थाना-बछवारा, जिला-बेगूसराय) शामिल थे। विडंंबना है कि आजादी के बाद से अब तक चमथा के उस ‘अज्ञात शहीद’ का नाम तक खोजा नहीं जा सका है। इतिहासकार प्रो. बलदेव नारायण ने अपनी पुस्तक ‘अगस्त क्रांति’ में दलसिंहसराय के अन्य शहीदों के नामों को तो दर्शाया है लेकिन चमथा के शहीद को-‘चमथा तेघड़ा के एक अज्ञातनामा दुसाध’ के रुप में उल्लेख किया है। एक दूसरे शहीद जागेश्वर लाल के वंशजों का कोई पता नहीं चल पाया है। इन दोनों शहीदों के परिजनों की तलाश में ‘अतीत के आईने में दलसिंहसराय’ के लेखक ने गंभीरता से खोजबीन की थी। कई गांवों का चक्कर लगाने तथा दर्जनों लोगों से साक्षात्कार के बाद भी निराशा हाथ लगी।
दलसिंहसराय थाना गोलीकांड में घायल हुए लोगों को जानना भी यहां प्रासंगिक प्रतीत होता है। पुलिस गोली से काफी संख्या में लोग घायल हुए थे। विभिन्न स्रोतों से जुटाई गई जानकारी के मुताबिक पुलिस गोली से घायल हुए लोगों में-चंद्रकांत याजी-माधोडीह (थाना-सरायरंजन ), शिवनंंदन सिंह-गढ़सिसई व जयनंदन भट्ट-बाजीतपुर (थाना-विद्यापतिनगर), बंगाली धानुक-दलसिंहसराय, शिवनाथ सिंह व कारु ततमा-पगड़ा, बुद्धु गोप-सलखन्नी, डोमी पोद्दार-टरसपुर, देवनारायण चौधरी-ढ़ेपुरा, तेजनारायण चौधरी ‘मास्टर साहेब’-नगरगामा, रामाश्रय चौधरी व बन्नी दास-रामपुर जलालपुर, कल्लड़ मिस्त्री-कोनैला, जोगेश्वर साह-सोठगामा (सभी थाना-दलसिंहसराय), अरहुल कोईरी-बैकुंठपुर (थाना-उजियारपुर) शामिल थे।
दलसिंहसराय थाना चौक पर घटी उपरोक्त युगान्तकारी घटना की याद में आजादी के 76 वर्षों बाद भी शहर में ‘शहीद स्मारक’ का निर्माण नहीं कराया जा सका है। सरकार द्वारा दलसिंहसराय थाना के आधुनिकीकरण पर लाखों रुपए व्यय कर तमाम तरह की सुख सुविधा जुटाने के प्रयास किए गए है। लेकिन थाना प्रांगण के किसी कोने में ‘शहीद स्मारक’ का निर्माण कराने की जहमत किसी ने नहीं उठाई। यह विडंबना नहीं तो और क्या है ? इसे दुर्भाग्यपूर्ण ही कहा जाएगा।
दलसिंहसराय के एक पत्रकार तथा बाद में एक लेखक व इतिहासकार के रुप में शहीद स्मारक के निर्माण के लिए मैं (लोकेश शरण) विभिन्न स्तरों से आवाज उठाता रहा हूं। लेकिन प्रशासनिक लापरवाही व जनप्रतिनिधियों की घोर उदासीनता के कारण स्मारक निर्माण की दिशा में अब तक सार्थक पहल नहीं हो पाई है। ऊपर से लोमहर्षक गोलीकांड के मूक गवाह स्थल-‘थाना चौक’ पर फास्ट फूड का प्रचार बोर्ड लगवा दिया गया है। ऐसी ओछी हरकत दलसिंहसराय थाना पुलिस के सहमति के बगैर संभव नहीं लगता। यह भी हो सकता है कि पुलिस के पास अपनी ‘सेवा’ को प्रदर्शित करने हेतु ‘प्रचार बोर्ड’ लगाने के लिए ‘फंड’ उपलब्ध न हो (?) जिसके कारण उसे सहयोग लेना पड़ा हो…!!! यह शहीदों का अपमान तो है ही यहां के तमाम ‘बुद्धिजीवियों’ के मुँह पर एक करारा तमाचा प्रतीत होता है।