समस्तीपुर :- रामधारी सिंह दिनकर की आज 116वीं जयंती है। इनका जन्म 23 सितंबर 1908 को बिहार के बेगूसराय जिले के सिमरिया गांव में हुआ था। राष्ट्रकवि के बारे में कई दिलचस्प बातें है। इनका बचपन संघर्षों से भरपूर था। यह स्कूल जाने के लिए पैदल चलकर गंगा घाट तक का सफर तय किया करते थे। इसके बाद फिर गंगा के पार उतरकर यह पैदल चलते थे। ‘राष्ट्रकवि’ रामधारी सिंह दिनकर का जन्म एक किसान परिवार में हुआ था। इनका बचपन संघर्षमय रहा था। स्कूल जाने के लिए इन्हें पैदल चल गंगा घाट जाना होता था, फिर गंगा के पार उतर इन्हें पैदल चलना पड़ता था।
राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर का जुड़ाव समस्तीपुर से भी काफी ज्यादा था। उनकी शादी समस्तीपुर जिले के विभूतिपुर अंतर्गत टभका निवासी रक्षा ठाकुर की पुत्री श्याम देवी के साथ 1921 में हुई थी। वहीं उनकी भतीजी (बड़े भाई बसंत सिंह की पुत्री) चंद्रकला की शादी श्रीरामपुर अयोध्या निवासी बैजनाथ मिश्र से हुई थी। वहीं उनकी छोटी भतीजी शोभा की शादी श्रीरामपुर आयोध्या के ही बैजनाथ मिश्र के छोटे भाई शिव सागर मिश्र से हुई थी। इसलिये समस्तीपुर से उनका गहरा नाता रहा है।
समस्तीपुर जिले से उनकी निकटता इस मामले में भी थी कि वे दलसिंहसराय में सब-रजिस्ट्रार के रूप में भी पदस्थापित रहे और महत्वपूर्ण पुस्तकों का प्रणयन भी इसी सोंधी मिटटी से किया। उनकी इस मिट्टी से निकटता इस कदर रही कि वे शहर के मारवाड़ी बाजार स्थित समस्तीपुर अनुमंडलीय खादी ग्रामोद्योग के संस्थापक बड़हिया निवासी प्रखर शिक्षाविद वैद्यनाथ शर्मा के यहां रूकते थे। पांडूलिपियां उन्हें पढऩे के लिए देते थे और समस्तीपुर की इसी उर्वरा धरती पर उनकी रचनाओं को तराशने का कार्य किया जाता था।
साहित्यकार डा. नरेश कुमार विकल बताते हैं कि जब भी सीतामढ़ी, या जहां कहीं भी वे सब रजिस्ट्रार थे वहां गांव से आने और जाने के क्रम में समस्तीपुर में रूकते थे। उन्हें कविता सुनाते थे और वापसी में अपनी तराशी हुई पांडुलिपियां ले जाते थे। जब अनुमंडलीय खादी ग्रामोद्योग से बैजनाथ शर्मा का तबादला पटना हो गया तो दिनकर जी का हर शनिवार और रविवार आना-जाना बंद सा हो गया। इसके साथ ही खत्म हो गया दिनकर जी का रात-रात भर काव्य पाठ का सिलसिला। इसके बाद समस्तीपुर गोशाला में आयोजित कवि सम्मेलनों में दो बार भाग लिया। स्व. दिनकर की याद में ससुराल के लोगों ने वहां उनकी प्रतिमा भी स्थापित कर रखी है। यहां सलाना साहित्यिक जलसा भी होता है।
रामधारी सिंह दिनकर ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हिन्दी को पहचान दिलाई थी। बीसवीं सदी में जिन लेखकों ने हिंदी भाषा और साहित्य को राष्ट्रीयस्तर पर ही नहीं, बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलायी, उनमें रामधारी सिंह दिनकर का नाम सर्वोपरि है। वह एक ऐसे लेखक थे, जिनमें राष्ट्रीय चेतना, सामाजिक चेतना के साथ साथ सांस्कृतिक चेतना भी गहरे रूप से मौजूद थी।
वह उद्घोष और उद्बोधन के कवि थे, तो प्रेम और सौंदर्य के भी कवि थे। वह सत्ता के करीब थे, तो व्यवस्था के एक आलोचक भी थे। दिनकर पर राष्ट्रीय पुस्तक न्यास से हाल ही में एक पुस्तक आयी है। उनके गृह जिले बेगूसराय में जन्में वरिष्ठ पत्रकार और प्रसार भारती के वरिष्ठ सेवानिवृत्त अधिकारी सुधांशु रंजन ने इस किताब को लिखा है। पत्रकार अरविंद कुमार ने इस किताब के बहाने दिनकर को उनकी 116वीं जयंती पर याद किया है।
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