क्या है 9वीं अनुसूची, जिससे बिहार के आरक्षण को मिलेगा सुरक्षा कवच; नीतीश सरकार की मांग क्यों?
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नीतीश सरकार की अगुवाई वाली बिहार की गठबंधन सरकार ने बुधवार को फैसला किया कि वह राज्य सरकार की नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में आरक्षण की 65 फीसदी की नई सीमा और संशोधित प्रावधानों को संविधान की 9वीं अनुसूची में शामिल कराने के लिए केंद्र सरकार से आग्रह करेगी। बिहार सरकार की यह कोशिश इसलिए है, ताकि बढ़ाई गई आरक्षण सीमा को कोई कानूनी चुनौती ना दे सके और उसे संवैधानिक सुरक्षा कवच दिया जा सके।
क्या है नौंवीं अनुसूची:
संविधान की नौवीं अनुसूची में केंद्रीय और राज्य कानूनों की एक सूची शामिल है, जिन्हें अदालतों में चुनौती नहीं दी जा सकती है। इसे पहले संविधान संशोधन अधिनियम, 1951 द्वारा जोड़ा गया था। पहले संशोधन में इस अनुसूची में कुल 13 कानूनों को जोड़ा गया था। बाद के विभिन्न संशोधनों के बाद इस अनुसूची में संरक्षित कानूनों की संख्या 284 हो गई है। बता दें कि 1992 में सुप्रीम कोर्ट ने पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण की सीमा 50 प्रतिशत निर्धारित कर दी थी।
किस-किस राज्य ने की ऐसी मांग?
इसी साल छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर संविधान की नौवीं अनुसूची में नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में बढ़ाए गए आरक्षण के 76 फीसदी कोटे की अनुमति देने वाले दो संशोधन विधेयकों को शामिल करने की मांग की थी। उससे पहले पिछले साल नवंबर में झारखंड सरकार ने भी राज्य सरकार की नौकरियों में आरक्षण की सीमा बढ़ाकर 77 फीसदी कर दिया था और उसे प्रस्ताव को संविधान की नौवीं अनुसूची में शामिल करने के लिए केंद्र सरकार को चिट्ठी लिखी थी।
राज्यपाल राजेंद्र विश्वनाथ अर्लेकर से दो विधेयकों को मंजूरी मिलने के साथ ही नयी आरक्षण प्रणाली लागू करने का मार्ग प्रशस्त हो गया था, जिसके बाद नीतीश कुमार सरकार ने मंगलवार को वंचित जातियों के लिए आरक्षण बढ़ाकर 65 प्रतिशत करने के लिए राजपत्रित अधिसूचना जारी की थी।
राज्य के अतिरिक्त मुख्य सचिव (कैबिनेट सचिवालय) एस. सिद्धार्थ ने कैबिनेट की बैठक के बाद पत्रकारों से कहा कि बुधवार को मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में हुई बिहार कैबिनेट की बैठक में केंद्र से इस प्रावधान को संविधान की 9वीं अनुसूची में शामिल करने के अनुरोध के संबंध में प्रस्ताव पारित किया गया। सिद्धार्थ ने कहा, “राज्य सरकार की राय है कि विशेष परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए बढ़े हुए आरक्षण के संशोधित प्रावधानों को संविधान की 9वीं अनुसूची में शामिल करने से वंचित और पिछड़े वर्गों के लिए न्याय सुनिश्चित करने में मदद मिलेगी।”
सिद्धार्थ ने कहा कि सामान्य प्रशासन विभाग ने यह प्रस्ताव पेश किया था। बिहार में जाति सर्वेक्षण के बाद, राज्य सरकार ने इस महीने की शुरुआत में विधानसभा में इसका विश्लेषण पेश किया था। इसके बाद सदन ने आरक्षण बढ़ाने के लिए दो विधेयक पारित किए थे। अब बिहार में अनुसूचित जाति (एससी) के लिए आरक्षण सीमा 16 से बढ़ाकर 20 प्रतिशत, अनुसूचित जनजाति (एसटी) के लिए 1 से बढ़ाकर 2 प्रतिशत, अत्यंत पिछड़ी जाति (ईबीसी) के लिए 18 से बढ़ाकर 25 प्रतिशत और अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के लिए 15 से बढ़ाकर 18 प्रतिशत कर दिया गया है। इस तरह बिहार में जाति-आधारित आरक्षण की कुल मात्रा 50 से बढ़कर 65 फीसदी हो गई है।