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विद्यापतिनगर के लाल विजय गिरि “बारूद” देश के प्रसिद्ध टीवी शो में हिस्सा ले बढ़ा रहें इलाके का मान

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समस्तीपुर/विद्यापतिनगर [पदमाकर सिंह लाला] :- राष्ट्रीय काव्य मंचों पर समस्तीपुर का “बारूद” धधक रहा है। साहित्य की काव्य विधा में अपनी वीर रस की कविताओं के जरिए विद्यापतिनगर प्रखंड के बढ़ौना गांव निवासी विजय गिरि “बारूद” सामाजिक और राजनीतिक असंगतियों पर आधारित रचनाओं से तत्कालिक सामाजिक चेतना को महत्वपूर्ण आयाम दे रहे हैं।

अकविता आंदोलन के प्रमुख कवियों में शुमार हो चुके विजय बारूद सहज, सजग और अपनी प्रतिभा के बल पर राष्ट्रीय काव्य मंचों पर अपनी साहित्यक जमीन तैयार कर पूरी तार्किकता एवं निर्भीकता के साथ देश के लोकप्रिय टीवी चैनलों दूरदर्शन, रिपब्लिक भारत, शेमारू टीवी, जी न्यूज आदि पर प्रसारित काव्य शो में हिस्सा लिया। करीब एक दशक से साहित्य की सेवा- साधना में पूरी तन्मयता से जुटे बारूद भोपाल (मध्यप्रदेश) में एक निजी कंपनी में कार्यरत हैं।

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शुरुआती दिनों में विभिन्न प्रकार के झंझावातों से गुजरते हुए उन्होंने ये मुकाम हासिल हुआ। अंतरराष्ट्रीय काव्य मंचों की शोभा बढ़ा रहे हास्य कवि व तारक मेहता का उल्टा चश्मा फेम शैलेश लोढ़ा की मेज़बानी में बारूद को लोकप्रिय टीवी शो “वाह भाई वाह” में अपनी वीर रस की कविताओं से खूब प्रसिद्धि मिली। स्वाधीनता आंदोलन के क्रांति नायक शहीद भगत सिंह की फांसी वाली मार्मिक चित्रण पर आधारित रचनाओं ने उन्हें राष्ट्रीय स्तर के वीर रस के कवियों के बीच विशेष पहचान दिलाई।

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विद्यापतिनगर के बढ़ौना गांव निवासी राम पुकार गिरि व माता पुष्पलता गिरि के 49 वर्षीय पुत्र विजय गिरि बारूद ने अपनी कविताओं में एक अलग प्रकार की आक्रामकता का काव्य संसार बनाया। राजधानी दिल्ली, कोलकाता, झारखण्ड, पटना, मध्यप्रदेश, मुंबई आदि बड़े शहरों के सुप्रसिद्ध काव्य मंचों से सम्मानित हो चुके “बारूद” वीर रस की कविताओं से जहां देश के लोगों में राष्ट्रीयता की ज्योति को प्रज्वलित किया। वहीं सत्य निष्ठा का पाठ पढ़ाती रचनाओं से मानवीय मूल्यों को जगाते हुए समस्तीपुर जिले का मान बढ़ाया।

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मंचों पर प्राप्त सम्मान, पुरुस्कार राशि व आय गरीब बेसहारा, बच्चियों में दान कर गौ रक्षा मंच, शहीदों के आश्रितों के कल्याणार्थ तथा बेटी बचाओ मंच से कोई मानदेय नहीं लेने वाले विजय बारूद कहतें हैं कि वीर रस कविता वह होती जो मानवीय मूल्यों को जगाएं। कविता वह जो हमारे स्पंदन में हो, हमारे खून में हो। कविता हृदय की अंगार धधकती हुई ज्वाला होनी चाहिए। उन्होंने चिंता जाहिर करते हुए कहा कि आज की पीढ़ी पाश्चात्य संस्कृति से इतना प्रभावित हो गई कि अपनी सांस्कृतिक वैभव, दर्शन और चिंतन से दूर होती चली गई।कविताओं को समाज में स्थापित करने जरूरत है। केवल पढ़ने की जरूरत नहीं, उनको जीने की जरूरत है।

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